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“जय श्री राम बोल इंसानों का कत्ल करने वाले लोगों को आतंकवादी क्यों ना कहा जाए?”

पेरिस में अल्लाहु अकबर कहते हुए टीचर का सर कलम कर दिया गया। टीचर ने स्कूल में हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कार्टून दिखाया था, बस उसी कार्टून से हत्यारे की भावनाएं आहत हो गईं और क्या सही, क्या गलत का फैसला खुद ही कर डाला।

सर कलम करने के बाद अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर करते हुए खुद को इंसाफ करने वाला समंझने लगा। खुद को मज़हब-ए-इस्लाम का लड़ाकू समझने लगा लेकिन भारतीय मीडिया के अनुसार, जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने उसे भी मार गिराया। वो अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन कुछ लोग उसे शहीद कह रहे हैं, तो कुछ लोग आतंकी।

वो शहीद है या आतंकी, यह तो अल्लाह ही जानता है लेकिन फिलहाल वो मज़हब-ए-इस्लाम पर उंगली उठाने के लिए मौका परस्त लोगों को मज़बूर कर गया है। ऐसे ही लोगों ने तमाम मुस्लिमों को खामियाज़ा भुगतवाया है।

‘अल्लाहु अकबर’ का नारा लगाते हुए किसी का कत्ल करना इस्लाम का हिस्सा नहीं हो सकता है। कुरान में साफ लिखा है कि एक बेगुनाह का कत्ल सारी इंसानियत का कत्ल है। टीचर गुनाहगार या बेगुनाह, यह अल्लाह ही जानता है, आप या मैं नहीं जान सकते लेकिन कुछ लोग लिख रहे हैं कि गुस्ताख़-ए-रसूल की एक सज़ा, सर तन से जुदा।

आप मुझे बताइए कि क्या उस शख्स ने नबी को देखा था? क्या उसने नबी को कभी सुना जो उनकी तस्वीर बना डाली?आपको कैसे मालूम कि उसने नबी का ही कार्टून दिखाया? आपका ईमान कैसा है जो बात बात पर आहत हो जाता है?ईमान का दारोमदार नियत पर है, यदि आपका मज़हब, ईमान चुटकियों में आहत हो जाता है, तो आपका ईमान कमज़ोर है, धर्म नहीं।

भारतीय कवि कुमार विश्वास ने ट्वीट करते हुए लिखा, “इस्लाम पर ईमान लाने वाले लोगों को ऐसे जाहिलों के खिलाफ डटकर बोलना चाहिए, विरोध व बहिष्कार करना चाहिए! ज़रा-ज़रा बातों पर फ़तवा देने वालों को इस वीभत्सता के ख़िलाफ़ फ़तवा जारी करना चाहिए! याद रखिए मेरे बोलने का वह असर नहीं होगा जो आपका होगा! ऐसे मौक़ों पर ख़ामोशी गुनाह होगी।”

कुमार विश्वास की बातों पर गौर कीजिए कि आखिर एक व्यक्ति की वजह से इस्लाम का उल्लेख किसलिए करना पड़ा?क्यों आज पूरे मज़हब पर उंगली उठाई जा रही है? यदि आप “जय श्री राम” बोल इंसानों की हत्या करने वाले व्यक्तियों को गुंडे, आतंकवादी, हिन्दू आतंकवादी कहते हैं, तो पेरिस में टीचर का सर कलम करने वाले व्यक्ति को भी आतंकवादी कहना चाहिए, क्योंकि उसने भी कत्ल करते हुए अल्लाह के नाम का सहारा लिया।

यदि आप इस व्यक्ति को मज़हब-ए-इस्लाम का जंगजूं कहते हैं, तो ‘जय श्री राम’ बोल इंसानों की हत्या करने वाले लोगों को भी हिन्दू धर्म का लड़ाकू कहना चाहिए।

अब इस व्यक्ति के लिए तमाम मुस्लिमों और उनके धर्म गुरुओं को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है, उनकी आलोचनाएं की जा रही हैं, उन पर लफ़्फ़ाज़ी हमले किए जा रहे हैं। मुस्लिमों से सवाल करने वाले भी ध्यान दें कि यदि आप पेरिस में टीचर का सर कलम करने वाले व्यक्ति को आतंकवादी कह रहे हैं, उसके लिए तमाम मुस्लिमों को दोषी ठहरा रहे हैं, तो पहले अपने गिरेबां में झांके और दामन पर लगे दाग को धोने की कोशिश करें।

“जय श्री राम” बोल इंसानों का कत्ल करने वाले लोगों को भी आतंकवादी कहिए और उनके इन गुनाहों की खुद ज़िम्मेदारी लीजिए। यदि ‘अल्लाहु अकबर’ कहते हुए किसी का कत्ल कर देना आतंकवाद है, तो जय श्री राम बोल हत्या करना भी आतंकवाद ही है।

यदि उसके लिए तमाम मुस्लिम दोषी हैं, तो भारत में मॉब लिंचिंग में सैकड़ों लोगों को मारने वाले लोगों के धर्म के लोग भी ज़िम्मेदार हैं। किसी की गलती के लिए उसका मज़हब ज़िम्मेदार नहीं हो सकता है। कोई सा भी धर्म बुरा नहीं होता है, बुरे होते हैं धर्म को मानने वाले कुछ लोग।

मुस्लिमों को ध्यान रखना चाहिए कि नबी ने जिस रास्ते को अपनाया, क्या आप भी उस रास्ते पर चल रहे हैं? नबी पर तरह-तरह के ज़ुल्म हुए, दुश्मनों ने कांटो पर चलाया लेकिन तमाम ज़ुल्म सहने के बाद भी दुश्मनों को दुआएं दी, दुश्मनों ने नबी पर टिप्प्णी की लेकिन दुआएं देते रहें।

जो कांटो पर चले और ज़ुल्म सहकर भी दुआएं दे

ये ख़ूबी तो फ़क़त मेरे रसूल-ए-मेहरबां में है।

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