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“लोगों को मुफ्त में मिलने वाले शौचालयों में पानी की कोई सुविधा नहीं है”

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

स्वच्छ भारत मिशन के तहत केन्द्र सरकार ने बिते कुछ वर्षों में देश के अलग-अलग इलाकों में लोगों के घरों में शौचालय बनवाए हैं। केन्द्र सराकर की ओर से दावे किए गए कि स्वच्छता के मद्देनज़र यह एक सराहनीय कार्य है, जिसके ज़रिये शौच के लिए अब लोगों को खेतों में नहीं जाना पड़ेगा।

ठीक है, मैं मानता हूं कि ग्रामीण महिलाओं को भी खेतों में शौच के लिए नहीं जाना पड़ेगा मगर हमें स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनाए जाने वाले शौचालयों की गुणवत्ता पर भी चर्चा करने की ज़रूरत है। इस विषय पर सोचने के बाद हम यह जान पाएंगे कि स्वच्छ भारत मिशन के नाम पर शौचालयों की गुणवत्ता के साथ मज़ाक किया गया है।

मैंने अपने दुमका ज़िले के आस-पास के ग्रामीण इलाकों में देखा है कि जो भी शौचालय बनवाए गए हैं, उनमें पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। यानि कि शौचालयों के बाहर एक छोटी सी जगह है जिसमें पानी इकट्ठा करने के बाद ही प्रयोग किया जा सकता है।

अब यह तो आपको भी पता है कि एक गाँव में कितने चापाकल होते हैं। हर रोज़ उनमें पानी डालना कतई संभव नहीं है। इस वजह से औसत शौचालयों को लोगों ने स्टोर रूम बना दिया है। ऐसे में हम कैसे दावा कर सकते हैं कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत ‘हर घर शौचालय’ योजना सफल है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

मैं मानता हूं कि सरकार की अच्छी पहल है मगर इन शौचालयों को बनवाने की ज़िम्मेदारी जिन लोगों को दी गई थी, क्या उन्होंने अपने काम को ईमानदारी से किया है? आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि एक शौचालय निर्माण के लिए सरकार 12,000 रुपये देती है, जो राशि मुखिया और जल-सहिया के ज्वॉइंट अकाउंट में जमा कर दिए जाते हैं।

मैंने देखा है मेरे पास वाले घरों में किस तरीके से खराब क्वालिटी की ईंट से शौचालय का निर्माण होता है। ढाई-ढाई फिट के दो गड्डे किए जाते हैं, जिनमें मल भर जाने के बाद उन गड्ढों को बंद कर दूसरा गड्ढा किया जाता है। जब सुनने में ही ये चीज़ें इतनी जटिल हैं फिर तो प्रयोग करने में लोगों को कितनी परेशानी होती होगी, इसका अंदाज़ा हम लगा सकते हैं।

अभी लगभग एक साल पहले की बात है जब मेरे गाँव में कई लड़के हाथ में मोबाइल लेकर आए और कुछ लोगों को हड़काते हुए कहा कि आपमें से जिन लोगों ने शौचालय नहीं बनवाए हैं, उनके नाम पर एफआईआर दर्ज़ किया जाएगा। यह बात बोलकर उन लड़कों ने कई ग्रामीणों से पैसे वसूल लिए।

इन उदाहरणों के ज़रिये इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि किस तरीके से सराकारी पैसों की लूट हो रही है। मैंने सरकारी योजनाओं में होने वाले भ्रष्टाचार को बहुत करीब से देखा है मगर पहली दफा इसपर लिख रहा हूं।

अब तक खामोश इसलिए था क्योंकि कहीं ना कहीं सब कुछ ठीक होने की उम्मीद थी, जो अब टूट चुकी है। आपसे भी अनुरोध है कि सराकरी योजनाओं में गड़बड़ियों की जो भी खबरें हैं, उन्हें मुखरता से उठाइए। हम और आप यदि इस काम को नहीं करेंगे, तो आखिर करेगा कौन?

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