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वह शानदार मेला, जिसका इंतज़ार करते हैं छत्तीसगढ़ के आदिवासी सालभर

मेलों का हमारे ग्रामीण वनांचल क्षेत्रों की संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। यह अतिशयोक्ति नहीं होगी अगर कहा जाए कि मेला ही वह स्थान है जहां सांस्कृतिक जीवन की सभी वस्तुओं का क्रय-विक्रय किया जाता है।

चाहे वह आध्यात्मिक, भौतिक दृष्टि से हो या फिर मनोरंजन की दृष्टि से, हमारे लिए सभी उपयोगी वस्तु एक ही स्थान पर उपलब्ध होती हैं। कहीं-कहीं इसे मड़ाई के नाम से भी जाना जाता है। 

मेले में लोग करते हैं मनपसंद चीज़ों की खरीदारी

छत्तीसगढ़ में मेले का मतलब मेलना, फेंकना होता है। जिससे यह आशय होता है कि लोग मेले में जाकर खरीददारी करें, घुमे-फिरें, खाए-पिएं और मौज-मस्ती करें। मेले में जिन्हें भी अपने साथ में लाएं चाहे वह परिवार के लोग हों या दोस्त-यार, सभी के साथ मेले का आनंद लें।

मेले के बारे में मेरी मनपसंद बात यह है कि यहां सभी जाति-धर्म के लोग भाईचारे के साथ मिल-जुलकर घूमते-फिरते और खरीदारी करते हैं। कोई किसी की ना ही जाति पूछता है और ना धर्म। मेले में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता, सब अपने सामर्थ्य के अनुसार खरीदारी करते हैं।

मेले की तस्वीर

मेले का नज़ारा होता है शानदार

हमारे कटघोरा में लोग मेले में जाने के लिए बहुत ही उत्साहित रहते हैं। पूरे परिवार एक साथ मेला घूमने जाते हैं। मेला साल में एक ही बार आता है।

ऐसे में लोग खुद के लिए और अपने परिवार के लिए साल भर एक-एक रुपये जोड़ते हैं, ताकि पूरा परिवार मेला जा सके। लोग मेले को एक त्यौहार के रूप में मनाते हैं।

छत्तीसगढ़ के कई क्षेत्रों में होता है मेले का आयोजन 

मेले का आयोजन अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग अवधि के लिए किया जाता है। यह अवधि कहीं पंद्रह दिन, कहीं सप्ताह भर और बस्तर को देखें, तो यहां के मेले पचहत्तर दिनों तक चलते हैं। पूरा बस्तर ही नहीं, बल्कि पूरे देश से लोग बस्तर के मेले में घूमने आते हैं। यह मेला पूरे देश में अपनी लोक संस्कृति कला के लिए प्रसिद्ध है। 

कुछ महत्वपूर्ण अवसर जैसे मांघ पूर्णिमा, महा शिवरात्रि, दशहरा, नाग-पंचमी, सावन सोमवार की अंतिम तिथि, शीत व चैत नव रात्रि, बसंत-पंचमी इन अवसरों के मेले का महत्व विशेष होता है। हर प्रांत व क्षेत्र में अलग-अलग तिथियों पर मेले का आयोजन किया जाता है, जिसकी तैयारी व्यापारी वर्ग के लोग करते रहते हैं। 

हमारे छत्तीसगढ़ का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण इलाका है। कई गाँव में वाहनों की व्यवस्था नहीं हो पाती। गाँव और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग मेले के दिन सुबह से ही पैदल मेले के लिए निकल पड़ते हैं। बच्चों को कंधे पर बिठाकर लोग उन्हें मेला घुमाने ले जाते हैं। यह दृश्य बहुत ही मनोरम होता है और दिल को छू लेता है। 

मेले में एक दुकान

मेले में अनेक प्रकार की चीज़ें बेची जाती हैं

मेले में सभी ज़रूरी चीज़ें मिल जाती हैं। जो कभी-कभी कई क्षेत्रों में घूम-घूमकर भी नहीं मिल पाती। यहां छोटी-से-छोटी और बड़ी-से-बड़ी वस्तु चाहे वह घर के उपयोग के लिए हों या घर के बाहर उपयोगी हों, यह सब मेले में काफी कम दामों में ही उपलब्ध होता है।

कपड़ों से लेकर जूतों तक, बच्चों के खिलौनों से लेकर आभूषण तक, लोग अपनी अपनी ज़रूरतों और दिलचस्पी के मुताबिक चीज़ें खरीदते हैं।

बच्चों का झूला

मेला है लोगों के लिए आनंद का साधन 

गाँव के लोगों के लिए मेला एक खुशी और आनंद देने वाला त्यौहार है, क्योंकि लोग इसकी तैयारी साल भर करते हैं। बड़े उल्लास के साथ अति उत्साह पूर्वक इसकी राह देखते हैं।

मेले में आकर लोगों को अच्छी चीज़ें मिलती हैं बड़े झूले-झूलने का और अलग व्यंजन और मिठाइयां खाने-पीने का भी मौका मिलता है। सबसे ज़्यादा खुशी इसमें बच्चों को होती है, क्योंकि अनेक प्रकार के झूले, खेल, जादूगर और आकर्षक वस्तुएं उन्हें देखने और अनुभव करने को मिलती हैं। बच्चों का सबसे प्रिय झूला होता है डिस्को डांस झूला और सांप झूला। 

मौत का कुंआ

मौत का कुंआ होता है सबसे बड़ा आकर्षण

मेले का सबसे बड़ा आकर्षण होता है मौत का कुंआ, जिसे हर व्यक्ति देखना चाहता है। मेले की राह हर साल लोग आतुरता से देखते हैं। मेला आने पर पूरा का पूरा गाँव मेला देखने चल पड़ता है।

यह बहुत ही आनंदी वातावरण निर्माण करता है। मैं आशा करता हूं यह मेले ऐसे ही हर साल आयोजित किए जाएं।


लेखक के बारे में- राकेश नागदेव छत्तीसगढ़ के निवासी हैं और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करते हैं। यह खुद की दुकान भी चलाते हैं। इन्हें लोगों के साथ मिलजुल कर रहना पसंद है और यह लोगों को अपने काम और कार्य से खुश करना चाहते हैं। इन्हें गाने का और जंगलों में प्रकृति के बीच समय बिताने का बहुत शौक है।

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