2 अक्टूबर को अशोक कुमार पांडेय की किताब “उसने गाँधी को क्यों मारा: साज़िश और स्त्रोतों की पड़ताल” राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित होकर रिलीज़ हुई। इसके पहले हिंद पॉकेट बुक्स से छपी “गाँधी वध क्यों?” जैसी एक किताब भी मौजूद है।
आज के दौर में सूचनाओं का सबसे बड़ा स्त्रोत गूगल और सोशल मीडिया बनता जा रहा है। यही नहीं, सोशल मीडिया पर गाँधी के बारे में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर नई पीढ़ी को वास्तविकता से महरूम किया गया। उनकी हत्या करने वाले व्यक्ति को उनके समकक्ष रखने का प्रयास चल रहा है।
उस पीढ़ी को उस यथास्थिति से बाहर निकालने के कोशिश में अशोक कुमार पांडेय सफल दिखते हैं। वह इसलिए भी क्योंकि किताब के तीसरे खंड, जिसमें 55 करोड़: दुष्प्रचार की राजनीति, गाँधी नहीं थे विभाजन के ज़िम्मेदार, गाँधी के उपवास और कश्मीर पर झूठा राग जैसे अन्य चैप्टर गाँधी के बारे में बोये गए विशाल विष वृक्ष को जड़मूल से उखाड़ फेंकने की कोशिश करता है।
इस अध्याय की ज़रूरत संभवत: लेखक ने इसलिए भी महसूस की होगी, क्योंकि गाँधी के बारे में भ्रम की राजनीति को काउंटर करने के बाद ही गाँधी के बारे में लोगों को पढ़ने-समझने के लिए मजबूर किया जा सकता है। वैसे भी गाँधी दुनिया के उन गिने-चुने व्यक्तियों में से हैं, जिन पर सबसे अधिक लिखा गया है।
किताब का दूसरा अध्याय “गाँधी हत्या एक क्रोनोलॉजी” उन कारणों की पड़ताल करने का प्रयास दिखाता है, जो महात्मा गाँधी के हत्या के कारण बनें। अशोक कुमार पांडेय जिन कारणों को तथ्य के रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं, उसमें हिंदू राष्ट्र के सपने का अंत और आज़ादी मिलने के बाद बन रही परिस्थितियों में गाँधी के प्रयोगों को जांचते-परखते हैं।
इसी क्रम में बाबा साहब अंबेडकर के साथ मतभिन्नता, महात्मा गाँधी के पूरे जीवन में हुए कुल हमले, भारतीय राजनीति में उनका प्रवेश, आज़ादी की लड़ाई को खास से आम बनाने की उनकी रणनीति, उनकी हत्या की साज़िश की रणनीतियां और उनकी हत्या की जांच की गई कपूर आयोग की कार्यनीति को भी जांचते-परखते हुए तथ्यों को सामने लाने का प्रयास करते हैं। जिसमें वो कामयाब भी होते हैं, क्योंकि यही अध्याय इस किताब का मुख्य अंश है।
पहला अध्याय: “वह कौन थे, लाल किले के गुनहगार”
किताब अपने पहले अध्याय “वह कौन थे, लाल किले के गुनहगार” में महात्मा गाँधी की हत्या की साज़िश में शामिल लोगों को परिचय देने भर की कोशिश है। साथ ही साथ यह भी बताने की कोशिश है कि इतिहास उन लोगों के साथ उनके अंदर पल रहे विचारधारा को भी जाने-पहचाने, जो एक समान्य इंसान को किसी की हत्या करने तक के लिए तैयार करता है।
किताब महात्मा गाँधी की हत्या के कारणों को जानने-समझने के लिए अधिक पढ़ी जाएगी। वहीं, गाँधी और बाबा साहब के मतभिन्नताओं को स्पष्ट करने के तथ्यों के कारण आलोचना के कटघरे में घसीट ली जाएगी।
बहरहाल, इस बात से हम स्वतंत्र नहीं हो सकते हैं। मौजूदा दौर में महापुरुषों के मध्य लोगों में नुरा-कुश्ती कराने की ज़िद्द है, जो एक को महान और दूसरे को कपटी दिखाना चाहता है। किताब नेहरू-पटेल के संबंधो में गाँधी की भूमिका पर भी हल्की सी रौशनी भी डालता है।
बहरहाल अशोक कुमार पांडेय ने हिंदी पाठकों के लिए कश्मीरनामा, कश्मीर और कश्मीरी पंडित के बाद “उसने गांधी को क्यों मारा” एक अच्छी किताब प्रस्तुत की है। जिसकी आलोचना करने के लिए भी पढ़ना ज़रूरी है और किताब ज़रूर पढ़ी जानी चाहिए।