ऊर्दू के मशहूर शायर बशीर बद्र, जिनकी शायरी को लुत्फ़-ए-एहसास का सरमाया कहा जाता है, इश्क की अहमियत पर कहते हैं।
बशीर बद्र के इश्क़ का उनवान
‘कोई फूल सा हाथ कांधे पर था
मेरे पांव शोलों पर चलते रहे।
बशीर बद्र की पंक्तियों मे जिस हाथ का ज़िक्र आया है। वह हाथ इश्क का नहीं तो औरत का है। इश्क की तुलना फूल, खुशबु और शबनम से तुलना कोई नई बात नही। औरत को इश्क का पर्याय कहा जा सकता है। वह खुशबु की तरह भली, शबनम की तरह साफ होती है।
आज इंसान भीड़ मे रहकर भी खुद को अकेला महसूस कर रहा है। रोज़मर्रा के जीवन मे मशीन, तकनीक, व्यापार और कठोरता हावी हो गए हैं। ज़िन्दगी बहुत ज्यादा मशीनी और व्यापार मूलक राह पर चल रही है। भाग- दौड़ के युग मे ज़िन्दगी मे प्यार और एहसास के लिए हमारे पास वक्त नही है।
गुलज़ार के शेरों से आबाद है दुनिया
गुलज़ार का यह शेर कितनी गहराई से हमें इसका एहसास करा जाता है..
शाम से आंख में नमी सी है
आज फिर वक्त की कमी है।
करीब हर आदमी ही अपनी ज़ात के खोल मे सिमटा हुआ नज़र आता है। इस हालत मे ‘प्यार और एहसास की मूर्ति ‘औरत‘ ही हमें ज़िंदगी की मंझधार से विजयी होकर निकलने का हौसला देती है।
मजरूह, जिगर की नज़रे करम का नमूना
गीतकार मजरुह सुल्तानपुरी ने बड़े खूबसूरत अंदाज़ में व्यक्त किया।
मुझे नही किसी शायरी विषय की तलाश,
तेरी निगाह के जादू मेरे जहन मे रहे।
शायर जिगर मुरादाबादी के भी मिलते जुलते विचार हैं।
आज क्या बात है कि फूलो का,
रंग तेरी हंसी से जुदा है।
प्रियसी की एक नज़र और कामयाबी
इस सिलसिले मे मशहूर लेखक शेक्सपियर कहते हैं।
जिसने पहली नज़र मे प्यार नही किया
समझो उसने प्यार ही नही किया।
शेक्सपीयर की टिप्पणी पर गौर कर इस बात का बख़ूबी अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि प्यार की एक नज़र मे इलाही ने कितना असर दिया है। प्रेयसी की एक नज़र किसी की ज़िंदगी मे इंकलाब ला कर ज़िंदगी क रुख पलट सकती है।
इस सिलसिले में काज़मी का यह शेर काबिले गौर है।
आफ़तो के दौर मे, चैन की घड़ी है तू
दोस्तो के दरमियान, वजह-ए-दोस्ती है तू।
प्यार खरीदने के लिए दिल नहीं, बल्कि जज़्बातों की ज़रूरत है
आज आम लोगो का मानना है कि ज़िंदगी मे सबसे ज़रुरी रुपया-पैसा है। रुपया से सब कुछ खरीदे जा सकने का ख्याल गलत है। दौलत से बेशक इंसान बहुत कुछ हासिल कर सकता है, लेकिन सब कुछ नही। धन- दौलत से आदमी ‘दिल की खुशी’ नही खरीद पाता है। खुशी का अनमोल और बेशकीमती तोहफा रुपया-पैसा से शायद कभी भी नही खरीदा जा सकता है।
कहा जाता है कि ‘निर्धन’ वह नही जिसके पास रुपया-पैसा नही। बल्कि निर्धन वह है जिसके दामन मे किसी का सच्चा प्यार नही होता। किसी की खूबसूरत यादों के जुगनु आँखों मे ना होना गरीबी की सबसे बडी निशानी है।
मशहूर शायर बशीर बद्र ने इसे अपने लफ्जों में यूं कहा है।
उजाले अपनी यादों के साथ रहने दो
ना जाने किस गली ज़िंदगी की शाम हो जाए।
किसी की यादें मझधार मे फंसी जिंदगी को किनारा देकर उसे इम्तिहान की घड़ी से जीतकर बाहर निकलने का हौसला देती हैं।
गीतकार जान निसार अख्तर कहते हैं।
ये इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबें
इक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं।
मोहब्बत की गूंजती आवाज़
इश्क मे प्रेमी को दुनिया की हर चीज़ नई खूबसूरती नज़र आती है। वह हर एक बात को नये नज़रिए से देखकर उसका ज़िक्र करता है। एक ऐसा एहसास जिसमे सूखी पत्तियों से भी बिछ्ड़े हमसफ़र के कदमों की आहट सुनाई दे, वह प्यार, इश्क और मुहब्बत ही है।
जावेद अख्तर कहते हैं।
हमें जब से मुहब्बत हो गई है
यह दुनिया खूबसूरत हो गई है।
दुनिया मे किसी अपने के होने की चाहत हर किसी को होती है।
गुलज़ार के लिखे फिल्मी गीत की यह पंक्तियां काबिले एहसास हैं।
कोई होता जिसको अपना हम कह लेते
पास ना हो दूर ही होता,
लेकिन कोई मेरा अपना।
जीवन की विषमता, कठोरता, बर्बरता, मशीनीकरण, व्यापार, राजनीति और शोषण के ध्रुवों पर तमाम होती उम्र मे ‘लुत्फ़-ए- एहसास’ से वंचित हैं हम।