अभी हाल ही में बाज़ार में चर्चा गर्म थी कि फलाने की लड़की की ढिमाकों के लड़कों ने इज़्जत लूट ली। मैंने जब से यह सुना है, मैं तब से बहुत व्याकुल और चिंतित हूं और बहुत सारे सवालों ने मुझे आ घेरा है। कौन सी इज़्जत थी? वह इज़्जत कैसी थी? कहां से वह आई थी? कहां वह चली गई? जिसने भी लूटा है, क्यों उसको लूटा है?
ऐसी क्या वजह थी कि उसको लूटने पर आना पड़ा? लूटा है तो गलत किया मगर यह लड़कियों को ‘टांगों के बीच’ से अलग और कोई जगह नहीं मिलती अपनी इज्ज़त रखने के लिए? यह लड़कियों की इज्ज़त टांगो के बीच में क्या करती है? लड़कों की इज़्जत क्यों नहीं लूटती? वैसे लड़कों की इज़्जत टांगों के बीच ही होती है या यहां-वहां?
याद आया अरे हां, लड़कों की इज़्जत भी लड़कियों की टांगों के बीच ही होती है, बस टांगें बदल जाती हैं। उसकी माँ-बहन-बेटी की हो जाती है। इसका मतलब है कि उस लड़की के साथ कई मर्दों की भी इज़्जत लूटी है मगर उसकी चर्चा नहीं हुई है।
यार समझ नहीं आता कि लड़की की टांगें हैं या इज़्जत का खज़ाना है? इज़्जत का जो वहीं एक ठिकाना है और अगर मैं थोड़ा असभ्य हो जाऊं तो कह सकता हूं कि इसका मतलब सबकी इज़्जत रोज़ मूत्र से धुलती है। अगर इसी दिशा में थोड़ा और सोच लेता हूं तो एक और प्रश्न यह भी बनता है कि आदमी खुद अपनी इज्ज़त लुटवाने के लिए अपने हिसाब से अपने जैसा एक और आदमी ढूंढता है, जिसे वह अपनी इज़्जत लूटने का ठेका भी देता है और अपनी इज़्जत लूटने के बदले उसे सम्मान भी देता है और तो और सामान, बेड, गद्दे, तकिया इत्यादि भी।
एक ऐसी लड़की की इज़्जत लुटी है, जिसकी कभी किसी ने कोई इज़्जत नहीं की गई। माँ-बाप के लिए जो पराया धन रही, भाई के लिए जो हमेशा सरदर्द रही, मोहल्ले के लड़कों से लेकर स्कूल कॉलेज और ऑफिस तक के लड़कों के लिए जो माल थी।
जो दूर से उसे देख अनुमान लगाया करते थे कि उनके लिए वह चालू भी थी। दोस्तों के लिए फर्लट व टाइम पास करने का साधन थी। वैसे बचपन में नवरात्रों में ये भी देवी का रूप रह चुकी हैं मगर बढ़ती उर्म के साथ बढ़ते वक्षों और नितम्बों ने इसे माल बना दिया था। जो उन जवान लड़कों का मन डोला रहे थे, जिनकी खुद की माँ-बहन व बेटियों के वक्ष व नितम्ब भी कुछ ऐसे ही थे मगर इज़्जत लूटने का भी नियम है।
पुरुषों के हिसाब से औरतें सिर्फ वक्ष, नितम्ब व योनि से जुड़े मांस का लोथड़ा मात्र हैं, जो हवस मिटाने व बच्चे पैदा करने की एक वस्तु मात्र है। यह जो इज़्जत है, जो लूट गई है, वह योनि में समाहित रहती है। मतलब योनि से उन लड़कियों का खून नहीं, बल्कि किसी मर्द की इज़्जत बहती है, क्योंकि भारतीय समाज में औरत की खूद की कोई इज़्जत नहीं होती। वे तो उल्टा मर्दों की इज़्जत को अपनी टांगों में छुपाए फिरती हैं।
यहां विडंबना यह है कि वह खुद भी रोज़ उसे लूटते हैं मगर वह लुटती तभी है, जब उसे कोई और दूसरा मर्द लूटता है। बहुत कन्फ्यूज़न हो गया ना? मुझे भी लगता है मगर यही सच है अगर इतिहास पढ़ोगे तो पता चलेगा कि योनि सिर्फ इज़्जत का गोदाम ही नहीं, बल्कि विजय की पताका फहराने का स्थान भी है।
वह इज़्जत, जिसे राजा युद्ध में जीत जाते थे। उनकी विजय पताका हारे हुए राज्य की तमाम औरतों की योनि पर फहराई जाती थी, जिसे भारतीय समाज में इज़्जत कहा जाता है, वह कुल जमा एक योनि है, जिसमें औरत की इज़्जत के साथ उससे जुड़े हर शख्स की इज़्जत कैद होती है, जिसे कोई भी मानसिक बीमार, भटका, राक्षस व सेक्स का भूखा आदमी थोड़ी सी दानवों की हरकत कर लूट लेता है।
जिसे पुरुषों ने अपनी चित्त अपनी पट्ट के सिद्धांतों पर रचा है, इस लेख के माध्यम से मैं यह कहना चाहता हूं कि लड़कियों की इज़्जत टांगों के बीच में नहीं होती है। जब कोई दैत्य उसकी योनि को ज़बरदस्ती उसकी इच्छाओं के विपरीत केवल अपनी कुंठाओ के अनुसार रौंद देता है, तो उसे इज़्जत लूटना नहीं, बल्कि बलात्कार कहा जाना चाहिए। योनि उसके शरीर का एक अंग है, वह खुद नहीं, उसकी अस्मिता, उसकी पहचान, उसकी इज़्जत, उसकी आत्मा सब अलग-अलग अवधारणाएं हैं।
आज ज़रूरत है कि औरतों की इज़्जत को टांगों के बीच से निकालकर दिल में लाया जाए। आज ज़रूरत है कि औरतों को मांस का लोथड़ा नहीं, बल्कि मांस के लोथड़ों में सांस देने वाले रूप के तौर पर स्वीकारा जाए। अंतिम बात, उनका सम्मान करने की नौटंकी बंद कर वास्तविक रूप में उन्हें मान्यता दी जाए।