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सैनिटरी पैड्स में ऐसा क्या है कि उन्हें काली पॉलीथिन में छुपाने की ज़रूरत?

पूरा विश्व जानता है कि पीरियड्स होना एक नैचुरल प्रक्रिया है। यह हर महिला के लिए गौरवान्वित होने वाली बात है। भारत में भी कई धर्म में जब लड़कियों को पीरियड्स शुरू होते हैं, तो कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

मेरे खुद के घर में जब किसी लड़की को मासिक धर्म शुरू होते हैं, तो उस वक्त यही बात होती है कि लड़की में कुछ कमी नहीं है, शादीशुदा ज़िंदगी आराम से गुज़रेगी। देश में जिस बात के लिए कुछ लोगों का समुदाय खुशियां मनाता है, वहीं बाद में इस पीरियड्स को नापाक समझा जाता है।

महावारी है, कोई अपराध नहीं है!

लड़कियों को जब पहली बार मासिक धर्म शुरू होता है, उस समय लड़कियां घबरा जाती हैं। सहेलियों से तो दूर की बात, वो अपनी माँ तक से बताने में झिझकती हैं। वजह है जागरूकता की कमी, घर का माहौल और घर के पुरुष सदस्यों का डर। अक्सर लड़कियों को पता ही नहीं होता कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।

उनको लगता है अगर उन्होंने घर में यह बात बताई तो उनको गलत समझा जाएगा, उनके चरित्र पर उँगकी उठाई जाएगी। यह एक ऐसी अवधारणा है जो समाज में महिलाओं की स्तिथि को अंदर।से खोखला कर रही है।

ग्रामीण क्षेत्रों में कपड़े की छुपाई या संक्रमण को न्योता

जैसे-तैसे लड़कियां इस बात को अपनी माँ से शेयर भी करती हैं तो उनको बोला जाता है, “चुप कर, धीरे बोल, किसी को बताना मत और भी ना जाने क्या-क्या।” ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं ना जाने किन-किन चीज़ों का इस्तेमाल करती हैं। उनको ज्ञान ही नहीं होता कि साफ सूती कपड़ा भी लगाया जा सकता है।

कई जगह तो चावल की भूसी और साल के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है। इस्तेमाल किए गए कपड़ों को 5-6 पॉलीथिन में रखकर कहीं भी डाल दिया जाता है। ऐसा लगता है जैसे लड़कियों ने कोई मर्डर कर दिया और उसके खून से सने कपड़े कहीं ठिकाने लगाने होंगे।

शहरी इलाकों में काली पॉलीथिन का प्रयोग

बात शहरी जीवन की करें तो यहां पर पैड तो मुहैया हो जाते हैं आराम से मगर फिर वही बात सामने आती है, छुपाने की। जी हां, वह भी काली पॉलीथिन में। ऐसा क्या है पैड में? उसको छुपाने की क्या ज़रूरत है? कंडोम तो पुरुष समुदाय खुलेआम खरीदते हैं। वहीं, जब पैड की बात आती है तो घर की महिलाएं याद आती हैं।

अब चाहे वो गर्भवती हो, बीमार हो या किसी परेशानी में हो, इसमें महिलाओं को कोई रियायत नहीं दी जाती है। कहा जाता है, छुपाकर लाना, हो सके तो लेडिज़ केमिस्ट शॉप से लिया करो। क्यों? पुरुष से जाकर साफ शब्दों में क्यों नहीं बोल सकते कि “भैया, एक पैकेट पैड का दे दो।” आप खुद से सवाल करें, क्या आपने कभी लड़कियों और महिलाओं को केमिस्ट की दुकान पर यह कहते हुए सुना है?

सबको हर तरह से जीने का हक है

क्या महिलाओं के पास ज़ुबान नहीं है? उनके पास सब कुछ है सिवाय पुरुषवादी समाज की इजाज़त नहीं है बस! यह एक तरीका बना दिया गया। पैड और पीरियड्स की बात करना नैतिकता के खिलाफ है। काली पॉलीथिन का ज़माना अब गुज़ार देना चाहिए। आज कल तो लोग सरेआम ड्रग्स और ना जाने क्या-क्या खरीदते हैं। यहां तो प्राकृतिक तरीके को निशाना बनाया जाता है।

पीरियड्स के दौरान वेजाइनल फ्लूड द्वारा निकलने वाले खून को रोकना तो होगा ही। अब यह तो है नहीं कि यह सब हमारे हाथ में है। इसको कवर करने की क्या ज़रूरत? यह कोई अपराध नहीं है।

तो काली पॉलीथिन को हवाओं में उड़ाओ और घर से निकलकर केमिस्ट की दुकान पर जाकर खुद बोलो, भैया, मुझे पैड का पैकेट दे दो।” वहां जाकर ज़रूरी नहीं झिझकने या पुरुष लोगो के काउंटर छोड़ने की, बेझिझक आवाज़ लगाएं। चीख चीखकर बता दें कि यह कोई पाप या अपराध नहीं। ये वही खून है जिससे आप पैदा हुए।

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