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पूछता है भारत कि क्यों गिर रहा है टीवी पत्रकारिता का स्तर?

मुंबई पुलिस ने प्रेस वार्ता करके जिस तरीके से खबरिया चैनलों की टीआरपी के खेल को सामने लाया है उससे पता चलता है कि टीवी पत्रकारिता का स्तर कितना गिर गया है। जो अपने स्टूडियो में बैठकर इतने दिन लोगों के लिए जज बने हुए थे, आज क्यों भाग रहे हैं वे सवालों से?

क्यों वे धर्म और राष्टवाद की आड़ में अपने आपको बचा रहे हैं? ‘पूछता है भारत’ कि कब तक करोगे यह खेल? कब तक आप देश की जनता से विश्वासघात करते रहोगे? पूछता है भारत कि कब तक आप देश की सच में आवाज़ बनोगे?

देश में पत्रकारिता का गिरता स्तर बेहद शर्मनाक है

आज जिस तरीके से भारत में पत्रकारिता का स्तर गिर रहा है, वह बेहद शर्मनाक है। क्योंकि लोकतंत्र में मीडिया को एक स्तम्भ माना जाता है। आज जिस तरीके की पत्रकारिता हो रही है, उससे धीरे-धीरे जनता का विश्वास खत्म हो रहा है। भाषा की मर्यादा को भी भूल टीआरपी  के लिए कुछ भी पत्रकारिता कर रहे हैं।

न्यूज़ वालों को देश की सरकार से सवाल करना चाहिए। सरकार चाहे किसी भी पार्टी की क्यों ना हो? किसी को धमकी, यह उसकी सेना है, उसके प्यादे हैं, देख लूंगा मैं, मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं, मैं आ रहा हूं, जैसे कई शब्द हैं जिनको बोलना एक पत्रकार के लिए शोभा नहीं देता। फिर भी ये लोग इनका प्रयोग केवल अपनी टीआरपी के लिए करते हैं।

आज भारत जैसे देश में हर किसी से सम्मान के साथ बात किया जाता है मगर टीवी पत्रकार तो यह मर्यादा तोड़ रहे हैं। वे देश के आम इन्सान का क्या सम्मान करेंगे, उनको यह नहीं पता कि एक महिला के साथ कैसे बात करना है? जो देश के लोगों का सम्मान नहीं कर सकता है, वह किसी देश का क्या सम्मान करेगा?

पत्रकार को सवाल करने का पूरा अधिकार है, उसको करना भी चाहिए मगर अपने शब्दों का चयन सही से करने के साथ सामने वाले इंसान का भी सम्मान करना चाहिए।

जिस तरीके से कोई भी घटना होती है और इसको न्यूज़ में ऐसे दिखाया जाता कि कोर्ट में आरोप जाने से पहले टीवी पत्रकारिता वाले उस घटना पर फैसला सुना देते हैं। इन पत्रकारों को जज बोलना गलत नहीं होगा, क्योंकि वे पत्रकारिता कम और फैसले ज़्यादा सुनाते हैं।

अब लोगों को लगने लगा है कि उनकी आवाज़ टीवी मीडिया के माध्यम से लोकतंत्र में उठ पाएगी भी या नहीं? देश की 90% जनता को केवल बेवकूफ बनाया जाता है। वास्तविक मुद्दे टीवी पत्रकारिता से गायब हो हो गए हैं।

आज पूछता है भारत कि कहां हैं भारत के ये मुद्दे

आज भारत में बेरोज़गारी इतनी बढ़ी हुई है मगर लोगों के रोज़गार पर कितने न्यूज़ वाले बात रख रहे हैं? आज देश के युवा रोज़गार के लिए भटक रहे हैं, ऐसे में उनकी आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं है!

भारत में आज रेप के मुद्दे पर कोई बात करने वाला नहीं है, जो धर्म की बात करते हैं उनको आवाज़ उठानी चाहिए। देश की बेटियों के साथ रेप हो जाता है और मरने से पहले उनकी आवाज़ कोई नहीं उठाता है। प्रतिदिन देश में कितने रेप होते हैं और न्यूज़ चैनलों में कितने मामलों पर चर्चा होती है? चर्चा होती भी है तो किसी लड़की के मर जाने के बाद या उसके साथ कोई घटना नहीं हो तब तक दिखाना उनके लिए फायदेमंद नहीं होता है।

मज़दूर इस कोरोना जैसी महामारी के समय परेशान हो रहे हैं। किसने उनकी आवाज़ बनकर सरकार से सवाल किया? कहा गया इनके लिए उनकी देशभक्ति? क्या ये देश के निवासी नहीं हैं? आज पूछता है भारत कि इनकी आवाज़ कौन बनेगा?

जब एक लड़की अपने परिवार के बुज़ुर्ग सदस्य को साईकिल पर हज़ार किलोमीटर तक ले आती है, उनकी आवाज़ फिर भी आपको सुनाई नहीं देती। कितने मज़दूर मरे ट्रेन से कटकर, कितने घर आने के लिए चले और कितने सड़क पर ही मर गए। है किसी के पास इसकी जानकारी? नहीं होगी, क्योंकि इनसे आपको टीआरपी नहीं मिलेगी और ना ही पैसा मिलेगा, तो आप क्यों इनकी आवाज़ उठाएंगे?

आज जिसे आप अन्न दाता कहते हैं, उनकी हालत को कोई नहीं समझ सकता और समझ भी रहे होंगे तो जान-बूझकर अनजान बने हुए हैं। जिस तरीके से राजस्थान, हरियाणा, पंजाब अन्य जगह पर किसानों के साथ मारपीट हुई, क्या उनकी आवाज़ बनकर सरकार से सवाल किया गया? ऐसे तो बहुत किसान करते हैं मगर जब उनकी बात सरकार के सामने रखने की आती है, तो सरकारों की गोदी में जाकर बैठ जाते हैं भारतीय टीवी पत्रकारिता वाले।

आज भारत में मंहगाई आसमान पर है। लोगों के पास रोज़गार नहीं है और इस मंहगाई में वे कैसे जीवन-यापन कर रहे हैं, कभी सवाल किया नहीं उन्होंने सरकार से? देश की जीडीपी इतने नीचे गिरी कि इसका कोई स्तर नहीं रहा फिर भी सम्पूर्ण टीवी पत्रकारिता चुप है, क्या यह मुद्दा नहीं है?

ये तो सामान्य से मुद्दे हैं, जिनके बारे में बात की गई है जो आम जन और देश के प्रत्येक नागरिक से जुड़े हुए हैं। जो आजकल की टीवी पत्रकारिता से मानो किसी ने मिटा दिया हो। टीवी पत्रकारिता का एकमात्र उद्देश्य टीआरपी हासिल करना और विज्ञापन लेकर कमाई करना बच गया है। वैसे भी न्यूज़ से पिछले कुछ सालों से जनता का विश्वास उठता जा रहा है। 

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