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क्या बिहार के प्रवासी मज़दूर नीतीश कुमार पर भरोसा कर पाएंगे?

प्रवासी मज़दूर, महिला मतदाता और देशभर में 21 मिलियन से ज़्यादा मिसिंग महिला मतदाताएं जिनकी अच्छी खासी तादाद बिहार में भी है, वे बिहार विधानसभा चुनाव पर असर डाल सकते हैं।

अगर सरकारी दावों की बात करें तो कोरोना काल में देशभर से घर लौटे एक करोड़ से ज़्यादा मज़दूरों में से 50 लाख से ज़्यादा मज़दूर अकेले सिर्फ बिहार के थे। ऐसे में ये मज़दूर बिहार सरकार के लिए चुनावी मौसम में सर दर्द बन गए हैं। पहले उनके वापसी के समय जब वे रास्ते में थे तब सरकार को खरी खोटी सुननी पड़ी थी। वहीं, पहुंचने के बाद बिहार में उनके लिए रोज़गार के अवसरों का इंतज़ाम करना सरकार के लिए बेहद मुश्किल हो गया है।

बिहार में पिछले कुछ चुनावों में देखा गया है कि महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत मर्दों के मुकाबले ज़्यादा था। वजह ज़्यादातर कामगारों और मज़दूरों का दूसरों राज्यों में रोज़ी-रोटी की तलाश में होना होता था लेकिन इस बार के चुनावी मौसम में मामला अलग है। राजनीति के पंडितों की माने तो इस बार पुरुषों का प्रतिशत थोड़ा ज़्यादा हो सकता है या पिछले चुनाव की तुलना में बहुत ही काम फर्क रह जाएगा।

चुनाव आयोग के मुताबिक, कुल मज़दूरों में से तकरीबन 16 लाख वैध मतदाता होंगे यानि कि इतने लोग अपने मतों का इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही ये 16 लाख मज़दूर पचास लाख वोटों पर भी असर डालेंगे।

वहीं, अगर हम बात प्रवासी मज़दूर वोटरों की करें तो राज्य में होने वाले ज़्यादातर चुनावों में राज्य के 45 से 60 लाख मज़दूर, जो दूसरे राज्यों में रहते हैं, संविधान द्वारा दिए गए अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते थे। उसके पीछे की वजह दूसरे राज्यों से अपने घरेलू राज्य के विधानसभा क्षेत्रों के लिए वोट करने का कोई प्रावधान ना होना है।

अगर देखा जाए तो पिछले लोकसभा चुनाव में सर्विसेज़ से जुड़े 16 लाख से ज़्यादा कर्मियों ने पोस्टल बैलेट के ज़रिये अपने मतों का इस्तेमाल किया था लेकिन अभी तक ऐसी कोई सुविधा इन प्रवासी मज़दूरों के लिए नहीं की गई है और इस तरह ये प्रवासी मज़दूर लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व में भागीदार बनने से वंचित रह जाते हैं, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहे जाने वाले भारत के लिए शर्म की बात ज़रूर होगी।

वहीं दूसरी ओर एक अनुमान के मुताबिक, मुल्क भर में 21 मिलियन यानि दो करोड़ दस लाख से ज़्यादा महिलाएं वोटिंग के अधिकारों से वंचित हैं, जो वोट करने लायक तो हैं मगर उनका नाम वोटर लिस्ट से गायब है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के हर लोकसभा सीट से लगभग तीस हज़ार महिला वोटरों के नाम गायब हैं, जिसमें बिहार के महिलाओं की अच्छी खासी तादाद भी शामिल है।

अगर इन गायब महिलाओं को औसतन 243 सीटों पर बांटा जाए तो इनकी तादाद हर सीट पर इतनी होती है, जितने से अकसर किसी भी उम्मीदवार के लिए विधानसभा चुनावों में हार-जीत का फैसला होता है। अब देखना यह भी दिलचस्प होगा कि दूसरे राज्यों से आए मज़दूर, सरकार से खफा होकर दूसरी सियासी पार्टियों का रुख करते हैं या एक बार फिर नीतीश पर भरोसा जताते हैं।

लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व के सबसे शक्तिशाली कर्ताधर्ता और 1950 से अब तक देश में लगभग 400 विधानसभा और लोकसभा चुनावों का सफलतापूर्वक आयोजन करा चुके चुनाव आयोग के लिए कोरोना काल में चुनाव और मत सूची में नए वोटरों को शामिल करना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा।

सीमित संसाधनों में चुनाव आयोग कोरोना काल में इतने बड़े चुनाव को कैसे हैंडल करती है, यह देखना भी काफी दिलचस्प होगा। बिहार में पहले चरण का मतदान 28 अक्टूबर को होना है, दूसरे और तीसरे चरण के लिए 3 और 7 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। जबकि 10 नवंबर को वोटों की गिनती होगी।

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