वर्ष 1949 में भरुच के पीरामण गाँव से शुरू हुई राजनीतिक यात्रा अंततोगत्वा वर्ष 2020 में पीरामण गाँव की मिट्टी में सुपुर्द -ए -खाक (विलीन) हों गई.
अहमद भाई का निधन कांग्रेस पार्टी के लिए अपूर्णीय क्षति है. अहमद भाई तीन बार लोकसभा और पाँच बार राज्य सभा सांसद रहें.वे वर्ष 1985 में राजीव गाँधी जी के संसदीय सचिव बने और बाद में कांग्रेस के कोषाध्यक्ष के तौर पर भी अपनी भूमिका निभाई. वे कांग्रेस के एक ऐसे नेता थे जो सदैव मीडिया के समक्ष राजनीतिक बयानों से दुरी बनाये रखते थे किंतु वे कांग्रेस की हर नीतिगत व निर्णय प्रक्रिया में शामिल होते थे. यहाँ तक की इसी वर्ष राजस्थान में राजनीतिक संकट के दौरान भी उन्होंने कांग्रेस को अक्षुण्ण रखने में अग्रिम भूमिका निभाई थी.
अहमद भाई प्रथम बार लोकसभा में वर्ष 1977 में भरुच से चुनाव जीतकर पहुँचे थे और फिर उन्होंने निरंतर तीन बार लोकसभा का चुनाव जीता. किंतु वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में उनको पराभव का सामना करना पड़ा तथा 1991 के चुनाव में भी उनको पराजय मिली. उसके पश्चात अहमद भाई ने राज्य सभा का मार्ग चुना. अहमद भाई निरंतर पाँच बार राज्य सभा सदस्य रहें तथा पार्टी के अग्रिम राजनीतिक संकट के निराकरणकार के तौर पर भूमिका निभाई. जब वर्ष 1997 में उन्होंने सोनिया जी को राजनीति में प्रवेशकर कांग्रेस की कमान संभालने के लिए आग्रह किया तब वे सोनिया जी के राजनीतिक सलाहकार व सचिव के रूप में पार्टी में उभरे. वर्ष 2004 से 2014 तक उन्होंने कांग्रेस के प्रत्येक राजनीतिक संकटो का समाधान कर राजनीतिक स्थिरता बनाई रखी. वे सदैव अपनी कार्य कुशलता, मृदु भाषी और कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकार के तौर पर जाने जायेंगे.
अहमद भाई की इसी कार्य करने की शैली ने उन्हें अहमद पटेल से अहमद भाई बनाया था.