एक चिकित्सक के नाते मुझे हर रोज़ दिल दहला देने वाली कहानियों का सामना करना पड़ता है। कुछ ऐसा ही 21 वर्षीय युवा सौरभ के साथ भी हुआ, सौरभ बहुत ही ऊर्जावान और महत्वाकांक्षी युवा था। वो एक उत्साही मेडिकल छात्र के साथ-साथ एक फिटनेस फ्रीक भी था। उसने हाल ही में अपनी परीक्षा पास करी थी और एक अस्पताल में नौकरी करने लगा था।
धीरे-धीरे उसका वज़न और उसकी भूख कम होने लगी। टेस्ट करवाने के बाद पता चला कि उसे पल्मोनरी ट्यूबरकुलोसिस है। इलाज के पहले चरण में उसकी सेहत में थोड़ा सुधार ज़रूर आया। वो 6 महीनों के इलाज के बाद मेरे पास आया। तब जांच के बाद मुझे पता चला कि उसे XDR-TB है और वो बहुत ही ज़्यादा खतरनाक है। सौरभ की लड़ाई बहुत ही दर्दनाक थी लेकिन ढाई साल के संघर्ष के बाद सौरव इस सब से भी बाहर आया। मैंने सौरभ का संघर्ष देखा और मुझे सौरभ पर गर्व है। लेकिन हर कोई सौरभ जितना खुश नसीब नहीं होता।
अब सवाल ये है कि भारत जैसे देश को TB की बीमारी से कैसे लड़ना चाहिए?
TB से लड़ने के लिए सबसे बड़ा हथियार है जागरूकता अभियान और सरकार द्वारा चलायी गई स्वास्थ्य सेवाओं का सही उपयोग। इसके लिए सरकार को स्वास्थ्य सेवा प्रणाली, सामाजिक सहायता प्रणाली और कॉरपोरेट जगत को मिलकर काम करने की ज़रूरत है।
सरकार पूरी कोशिश कर रही है बेहतर और सस्ती दवाईयां को उपलब्ध कराने की और कई राज्यों में गरीब रोगियों का इलाज भी मुफ़ में हो रहा है। हालांकि भारत जैसे देश को TB मुक्त करना फिलहाल संभव नहीं है।
TB बहुत आसानी से फैलता है और अनजाने में की गई खासी संभावित रूप से कई लोगों को संक्रमित कर सकती है। एक पेशेंट TB से संक्रमित है वो कितने और लोगों को इसका शिकार अभी तक बना चुका है। इसका अंदाज़ा लगाना नामुमकिन है। इसकी रोकथाम करना बहुत ज़रूरी है।
इसलिए सबसे सरल, किफायती और असरदार निवारण है जागरूकता।
सामाजिक और सामुदायिक स्तर पर इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना और रोकथाम करना ही भारत के लिए सबसे असरदार उपाय हैं।
स्वास्थ्य प्रणाली और उससे जुड़े सभी हेल्थकेयर वर्कर्स को लोगों तक इसकी जानकारी पहुंचानी पड़ेगी। TV, अखबार, रेडियो जैसे माध्यम से लोगों को जागरूक करना पड़ेगा। ताकि और लोगों को संक्रमित होने से बचाया जा सके।
सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वो सामंजस्य से काम करें और रोगियों को कम से कम कीमत पर उनकी दवाईयां और इलाज उपलब्ध करा सके।
निजी क्षेत्र को दवाइयों के तर्कसंगत उपयोग को सुनिश्चित करना होगा और इस बात पर ज़ोर देना होगा की DR-T B को फैलने से रोका जाए। कोई भी व्यक्ति TB से संक्रमित क्यों न हो उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने का और अपने सपने पूरे करने का हक है। यह हक उससे नहीं छीना जाना चाहिये।
इस बीमारी के प्रति हीन भावना आज भी हमारे समाज में कितने लोगों को और कितने परिवारों को तबाह कर देती है। कुछ लोग तो इसका इलाज पैसों की कमी के कारण नहीं करा पाते हैं। उनकी नौकरी चली जाती है, वो अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं।
कई लोग अवसाद का शिकार हो जाते हैं |
ऐसे में सरकार को आर्थिक अभियान सुनिश्चित करना चाहिए ,कि हर मरीज़ इस बीमारी से दृढ़ता से लड़ सके। TB जैसी व्यापक बीमारी से लड़ने के लिए हर दफ़्तर में इसके बारे में पूरी जागरूकता होनी चाहिए और इससे संबंधित सभी नीतियों का सही से पालन होना चाहिए।
आज के समय में सबसे ज़्यादा आवश्यक है TB के मरीज़ों की मदद करना आर्थिक मदद एवं मानसिक मदद और उन को हौसला देना कि वो इस बीमारी से लड़कर जीत कर वापस पहले की तरह अपनी ज़िंदगी व्यतीत कर पाएंगे।
हमें ज़रूरत है TB कॉल सेंटर और हेल्पलाइन सेंटर की जो एक मरीज़ को सही परामर्श दे सकें। ये बात सुनिश्चित करें कि कोई भी व्यक्ति पैसों के अभाव के कारण अपना इलाज कराने में असफल न हो। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो हम सभी के संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाती है। हमें सनोत्रीउम की स्थापना पर ज़ोर देना चाहिए ताकि जब तक रोगी पूरी तरह से ठीक न हो और रोग मुक्त न हो तब तक उसकी देखभाल अच्छी तरह से की जाएगी। हमें इस बीमारी से होने वाली अवसाद और मानसिक हानि को भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए और मरीज़ों को अधिक से अधिक मदद पहुंचाने का संकल्प लेना चाहिए।
याद रखें हमारी ज़रा सी लापरवाही भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकती है|