टाइटल
- सृष्टि चक्र को संतुलित करने का महासम्मेलन: आदिवासी एकता परिषद
- 28 सालों से देश-दुनिया में अपनी तरह का अनूठा सम्मेलन आदिवासी एकता परिषद इस वर्ष झाबुआ में
मध्यप्रदेश के झाबुआ ज़िले में 22 नवंबर 2020 को 28 वें आदिवासी एकता परिषद के सांस्कृतिक एकता महा सम्मेलन की बैठक हुई, इसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, दादर नगर हवेली सहित भारत के सभी आदिवासी आबादी वाले राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ 13,14 और 15 जनवरी 2021 को होने वाले तीन दिवसीय आदिवासी एकता परिषद के 28 वें सांस्कृतिक एकता महासम्मेलन की योजना के लिए झाबुआ में उपस्थित थे। बैठक में अगले वर्ष जनवरी में आयोजित होने वाले आदिवासी एकता परिषद के तीन दिवसीय सांस्कृतिक एकता सम्मेलन की तैयारियों की सफलता पर विस्तार से चर्चा हुई।
आदिवासी एकता परिषद देश, दुनिया का एकमात्र ऐसा संगठन है, जो लगातार पर्यावरण संतुलन बनाए रखने और सामाजिक, सांस्कृतिक विषयों के बारे में जागरूकता फैला रहा है। जब पूरी दुनिया, हर देश प्रकृति के संरक्षण के लिए लड़ रहा है, जहां विकास के नाम पर शोषणकारी जीवन शैली और संस्कृतियों का दोहन किया जाता है। जिससे मानवीय मूल्यों पर भी गहरा प्रभाव महसूस किया जा रहा है, जो दुनिया के सभी बुद्धिजीवियों के लिए चिंताजनक है। आदिवासी एकता परिषद भारतवर्ष में पिछले 28 वर्षों से आदिवासी क्षेत्रों और गैर आदिवासी क्षेत्रों में वैचारिक रूप से जनमानस के बीच प्रकृति के प्रति संवेदना उजागर करके, जीवसृष्टि का अस्तित्व बरकरार रखने के लिए प्राकर्तिक संसाधनो को मालिक की हैसियत से ना देख कर जीव सृष्टि के नजरिए से देखने की दृष्टि पैदा करने का काम कर रहा है।
जल, जंगल, ज़मीन को आदिवासी मूल्यों से बचाए जाने का प्रयास
जहां जल,जंगल,ज़मीन ये सिर्फ कमाने का और सिर्फ मुनाफे का साधन ना बने बल्कि सृष्टि-चक्र को संतुलित रखने के माध्यम के तौर पर लोग इसे स्वीकार करें और आने वाली विपदा-आपदा से लोग एवं प्रकृति सुरक्षित रहें और इसके लिए लोग स्वयं अपनी संवेदना प्रकट करे इसी मंशा से आदिवासी एकता परिषद 28 वर्षो से कार्यरत है। विश्व में मानव कल्याण, समता,सहभागिता के सिद्धांतों का केंद्रबिंदु बनाकर लोगो के बीच मानवता स्थापित करने का कार्य कर रहा है।
भारत के लोकतंत्र के परिपेक्ष्य में संविधान सर्वोपरी है और संविधान में रखे गये मूल उद्देश्य, देश के सभी वर्ग के लोगों को मिले। यह सार्थक हो इसलिए ये परिषद जागृति का कार्य भी कर रहा है। प्राकृतिक संसाधन प्रकृति, जल, जंगल और ज़मीन के बिना मानव एवं जीवसृष्टि के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है और इसे आदिवासी जीवनमूल्यों से ही बचाया जा सकता है इसलिए इस औधोगिक युग में आदिवासी जीवन मूल्यों को बरकरार रखकर ही जीवसृष्टि की सही कल्पना की जा सकती है।
संविधान निर्माताओं ने भी भारत के संविधान की 5 वी सूची में आदिवासी संस्कृति को सुरक्षित रखने का प्रावधान रखा है, क्योंकि आदिवासी संस्कृति में आदिवासी जीवनमूल्यों का दर्शन होता है और आदिवासी जीवन मूल्यों से ही विश्व मे खड़े हो रहे प्राकृतिक संकटो से बचा जा सकता है और इन्हीं सिद्धान्तों पर आदिवासी एकता परिषद 28 वर्षो से कार्यरत है।
2021 का सांस्कृतिक महासम्मेलन 13,14 और 15 जनवरी को मध्यप्रदेश के झाबुआ में होगा
जिसमें अलग-अलग राज्यों से रैली प्रारंभ होगी और इस रैली का घोषवाक्य ‘आदिवासियत बचाओ यात्रा’ रखा गया है यह आदिवासीयों को बचाने का संदेश देते हुए सभी राज्य की रैली अलग-अलग गाँव से होकर महासम्मेलन के स्थल पर पहुंचेगी। महासम्मेलन में देश और दुनिया को जनता और जीवसृष्टि के अस्तित्व को लेकर संदेश दिया जाएगा। वर्षो से दुनिया में आदिवासी एकता परिषद वैचारिक आंदोलन चला रही है, जिसमें आदिवासीयों की सामाजिक संस्कृति बचे, संस्कृति से प्रकृति बचे और प्रकृति को सुरक्षित रखने के लिए आदिवासी जीवनमूल्य बचे रहें। संस्कृति और प्रकृति के लिए जनता में संवेदना स्थापित हो यह परिषद ऐसे बिंदुओं पर काम कर रही हैं।
आदिवासी एकता परिषद के महासचिव अशोकभाई चौधरी ने कहा, गौरतलब है कि आदिवासी एकता परिषद के सांस्कृतिक एकता महासम्मेलन में हर साल लगभग चार से पांच लाख लोग इकट्ठा होते हैं, इस कार्य के लिए आदिवासी एकता परिषद के कार्यकर्ता अलग-अलग इलाके से गांव, शहर, ज़िला, राज्य क्षेत्र और यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र तक का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। पिछले 28 वर्षों से हर साल आयोजित होने वाले कार्यक्रम के लिए इस साल मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में आयोजन होने जा रहा है। इस कार्यक्रम को कोविड-19 की विकट परिस्थिति में सफल कैसे बनाया जाए, इस पर आयोजन समिति के सदस्यों द्वारा विस्तृत चर्चा की गई।