शर्म का घागरा पहनकर, ग़ैरत की चादर खो देना,
नज़रे नीची रखना और मूहं ना खोलना,
किसी के दर्द पर मरहम लगाना ना भूलना
और अपने दर्द सबसे छुपाना।
ध्यान रखना कोई रोएना और
अपने आंसु आने मत देना,
चोट लगे तो सहलेना और
ज़ख्म अपने दिखा मत देना,
बोलना पर अवाज़ कानों तक आने मत देना।
सोचना पर सोच को सीमित रखना,
सुन लेना और खुद खामौश ही रहना,
साथ देना पर साथ दिखाई ना देना,
चलना पर थोढा पीछे रह जाना,
चाहना पर किसी को चाहत मत बनाना,
और शर्म का घागरा पहनकर,
ग़ैरत की चादर मत ओढना।