Site icon Youth Ki Awaaz

15 वर्षीय दलित लड़की का जलना आत्महत्या या सोची-समझी साज़िश?

protest rape culture

हम एक ऐसे दौर में हैं, जब हर घटना हर खबर हर अत्याचार एक आम सी बात लगती है। जैसे यह लिखते वक्त मुझे ये घटना किसी पिछली घटना का आईना लग रही है या कहें आगे घटने वाली किसी घटना की परछाई। खैर, जब घटनाएं घटने से नहीं चूक रहीं, तो हम जैसे भला लिखने से क्यों ऊबने लगे।

रोज़ की तरह ही सामने आने वाली एक घटना यह है कि हाल ही में बुलंदशहर से एक खबर सामने आई है, जिसमें 15 वर्षीय दलित नाबालिग को ज़िंदा जला दिया गया है। वहीं, देर शाम दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में नाबालिग ने दम भी  तोड़ दिया।

पुलिस के अनुसार, “लड़की रेप सर्वाइवर थी, स्थानीय निवासी द्वारा ही उसका बलात्कार किया गया था। साथ ही उसके परिवार पर FIR वापस लेने के लिए दबाव भी बनाया जा रहा था। परिवार वालों द्वारा जो एफआईआर दर्ज़ की गई, उसमें कहा गया है कि उनके घर में सात लोग घुस आए और उनकी बेटी को पेट्रोल डालकर जला दिया।”

बुलंदशहर के एसएसपी संतोष कुमार सिंह ने कहा, “अगस्त में नाबालिग के साथ बलात्कार हुआ था और आरोपी को पकड़ लिया गया था, जो कि अब भी जेल में है। फिर मंगलवार को हमें खबर मिली कि यह वही लड़की है, जिसे  संदिग्ध परस्थितियों में जला पाया गया। रात 11 बजे तक हमें पता था कि लड़की ने आत्महत्या की कोशिश की है लेकिन परिवार वालों का कहना है सात लोगों ने मिलकर उसे जलाया है।”

परिवार वालों को धमकाया गया

उन्होंने आगे कहा, “सातों के खिलाफ मामला दर्ज़ किया  गया है, जिनमें से तीन को गिरफ़्तार भी कर लिया गया है।” वहीं, सर्वाइवर के परिवार वालों का कहना है कि सातों आरोपी उस आरोपी के परिचित या रिश्तेदार हैं, जो कि अभी जेल में है, जिस पर पॉस्को और एससी-एसटी के मामले दर्ज़ हैं।

सर्वाइवर के अंकल का कहना है, “हमें एफआईआर वापस लेने के लिए कई दिनों से धमकाया जा रहा था। वहीं, सोमवार को लगभग रात  8.30 बजे एक अंजान नंबर से फोन आया, जिसमें कहा गया कि अपनी शिकायत वापस ले लो, वरना इसका अंजाम बुरा होगा। फिर जब रात के लगभग 9.30 बजे घर पर कोई नहीं था, तब हमारी बेटी को जला दिया गया।”

परिवार वालों के अनुसार, जब लड़की जली तब उसकी माँ किसी पड़ोसी के घर थी। बुलंदशहर से दिल्ली RML में ले जाने के 15 मिनिट बाद ही उसे मृत घोषित कर दिया गया था।

पुलिस के अनुसार, आईपीसी की धारा 307 (जान से मारने), 147 (लड़ाई-दंगा), 506 (धमकी), 452 (अत्याचार) और एससी-एसटी  के तहत मामला दर्ज़ किया गया है। साथ ही दोनों घटनाओं को लिंक कर छानबीन की जाएगी।

बुलंदशहर की आग हाथरस से अलग तो नहीं

तर्क और घटना दोनों ही अपनी जगह ठीक है। अपराध हुआ है तो कार्रवाई भी निश्चित तौर पर होगी लेकिन मैं चाहती हूं कोई प्रशासन, पुलिस, मंत्री, नेता या आम नागरिक मुझे वो तारीख दे जाए जब उस तारीख के बाद हमें खबर के तौर पर ऐसी घटनाओं को दर्ज़ नहीं करानी पड़े। हम जो संस्कारों और आदर्शों का देश बने फिरते हैं, ये हमारे कैसे संस्कार हैं जो रोज़ ही ऐसी घटनाओं को अंजाम देते नहीं थकते। कितनी ही घटनाएं तो हमारी टेबलों से आपके दरवाज़ों तक खबर बनकर भी नहीं पहुंच पाती हैं।

एक रेप सर्वाइवर जो अपराधी थी ही नहीं, उसे किस अपराध में जला दिया गया? विचारणीय है कि हम ऐसी घटनाओं को कैसे देखते हैं या हम इन घटनाओं को देख तो रहे हैं लेकिन इनकी लौ अब हम तक नहीं पहुंच रही है। क्या कोई ऐसा कानून नहीं बनाया जा सकता जो सर्वाइवर्स को डराने की बजाय अपराधी को डराए। यह कोई पहला मामला नहीं है जहां किसी सर्वाइवर को जलाया गया हो और किसी सर्वाइवर के परिवार को धमकाया गया हो।

इन घटनाओं के आंकड़े इतने हैं कि आप पढ़ते-पढ़ते थक जाएंगे। इसलिए घटनाओं को भुला देना  शायद ज़्यादा सहज हो जाता है। हाथरस की घटना को अभी कुछ ज़्यादा समय नहीं हुआ है। वहां लगाई आग आज भले ही बुझ गई हो लेकिन जब तक ऐसे अपराध और अपराधियों को कड़ी सज़ा नहीं दी जाती, तब तक इन बेटियों के लिए लगाई आग में आक्रोश के अंगारे सुगबुगाते रहेंगे और हर घटना पर आपसे, हमसे और इस समाज से पूछते रहेंगे कि आखिर हम कब तक जलें?

ऐसी हर एक घटना के हम सब उतने ही अपराधी हैं, जितना अपराधकर्ता है, क्योंकि मुंह फेर लेने से दुनिया बदल सकती तो सब कुछ बदल गया होता।

Exit mobile version