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UP में 7 साल की बच्ची के दुष्कर्म में क्या सिर्फ अपराधी दोषी है या पूरा समाज?

woman written 'give voice to rape survivors' on her arms as sign of protest

रेप कल्चर! भारत में आग की तरह फैलती हुई वो बलात्कार संस्कृति, जो दिनों-दिन आगे की ओर बढ़ रही है। समाज के रक्षक और नेता इस आग को हवा दे रहे हैं। उनको यकीन है कि उनके घर की बहू-बेटियों के साथ यह अनर्थ कभी नहीं हो सकता लेकिन यह उनकी बहुत बड़ी खुशफहमी है। हवस और अन्याय का तांडव जब अपनी चरम पर आता है तब उसको कुछ भी दिखाई नहीं देता है। यहां तक कि बहन और माँ जैसे सभी  रिश्तों को भी वो भूल जाता है।

निर्भया, बुलन्दशहर, कठुआ, उन्नाव, या मुम्बई का वह रेप जिसे कम ही लोग जानते हैं। जहां एक ओर एक फोटो जर्नलिस्ट के साथ हुआ गैंग रेप पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ था। वहीं, दूसरी तरफ हाथरस बलात्कार में लगाई हुई आग की लौ मद्धम भी नहीं हुई थी कि तभी समाज ने हमको एक और घटना से रूबरू करवा दिया।

लेकिन इसके बावजूद भी सरकार और प्रशासन चुप हैं और यहां के मुख्यमंत्री जी ने तो अपने होठों को सिल लिया है। जी हां, माननीय मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, जिनको मैं व्यक्तिगत तौर पर ना तो योगी बुला सकता हूं और ना ही आदित्यनाथ, क्योंकि दोनों ही शब्द अपने आप में बहुत मायने रखते हैं।

बलात्कारी मानसिकता सज़ा से खत्म नहीं हो सकती

उत्तरप्रदेश के गोरखपुर के गगहा इलाके में हवस के दानवों ने एक बार फिर  इंसानियत की सीमा लांघ दी। 7 साल की बच्ची से रेप किया। रेप से पहले उसके मुंह में कपड़ा ठूंस दिया। बलात्कार के दौरान उसको इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि एक छोटी सी बच्ची का दम भी घुट सकता है।

हमारे समाज में लोग बोलते हैं, लड़की ने छोटे कपड़े पहने होंगे, रात को बाहर गई होगी और भी ना जाने क्या-क्या, अनाप- शनाप बकते हैं लेकिन यहां तो एक छोटी सी बच्ची को नहीं बख्शा जा रहा है। कहां जा रहा है भारत?

गौरतलब है कि 7 साल की बच्ची से बलात्कार करने वाला 38 साल का सिंटू रावत मुंबई की जेल से निकला हुआ एक कैदी है, जो मुंबई से एक रेप के लिए ही सज़ा काटकर आया है। अभी उसको 5 महीने ही हुए थे मुंबई से गाँव आए हुए और उसने फिर एक घटना को अंजाम दे दिया।

पहले वह लड़की की माँ को परेशान करता था। इसके बाद उसने उसकी बेटी को ही शिकार बना लिया। यह एक वीभत्स घटना है। समाज से डरकर माँ ने इस बात को छुपाए रखा मगर समय बीतने के साथ फिर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज़ करवाई गई। ऐसी खबरें पढ़कर मन में बस यही सवाल उठता है कि कौन सी ऐसी सोच होती होगी, जो इंसान से इंसानियत को ही दूर कर देती है।

भारत में हर चौथी लड़की बलात्कार की शिकार

एन.सी.आर. बी की रिपोर्ट की तरफ नज़र दौड़ाने पर पाएंगे कि हर चौथी लड़की बलात्कार या इव टीज़िंग का शिकार है। वहीं 94% लड़कियों के बलात्कार में परिचित शामिल थे। 72.2 प्रतिशत पीड़ित लड़कियां 18 साल से अधिक उम्र की थीं, जबकि 27.8% की उम्र 18 साल से कम थी।

रिपोर्ट में बताया गया है कि 2018 में छेड़छाड़ और बलात्कार के कुल 33,356 केस दर्ज़ किए गए। 2017 में यही आंकड़े 32,559 थे और 2016 में 38,947 थे। रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में 51.9 फीसदी दुष्कर्म पीड़िताएं (17,636) 18 से 30 आयुवर्ग की थीं।

18 प्रतिशत (6,108) की उम्र 30 से ज़्यादा और 45 वर्ष से कम थी। 2.1 फीसदी  (727) की उम्र 45 से ज़्यादा और 60 वर्ष से कम थी जबकि 0.2 प्रतिशत (73) की उम्र 60 साल से ज़्यादा थी।

मौजूदा रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक, 14.1 प्रतिशत दुष्कर्म पीड़िताएं (4,779) 16 से 18 आयु वर्ग के बीच की थीं।  इसके बाद 10.6 प्रतिशत (3,616) 12 से 16 आयुवर्ग की थीं। 6 से 12 साल के बीच की रेप पीड़ित महिलाएं 2.2 प्रतिशत (757)  उम्र की  थीं, जबकि 0.8 प्रतिशत (281) की उम्र छह साल से कम थी।

उपरोक्त रिपोर्ट के आंकड़ों में हम देख सकते हैं कि छोटी बच्चियों से लेकर 60 से भी ऊपर की महिलाओं के साथ भी बलात्कार के कई मामले सामने आए हैं।

अशिक्षा और कुंठा से पैदा होते बलात्कारी 

गरीबी का रोना रोने वाले हमारे देश के कई ऐसे अभिभावक हैं, जो कम उम्र में ही लड़को को काम में लगा देते हैं। स्कूल इसलिए नहीं भेजते, क्योंकि उनको लगता है पढ़-लिखकर कौन सी नौकरी मिलने वाली है लेकिन वे यह नहीं समझते कि पढ़ाई से इंसान महज़ पैसा ही नहीं कमाता है, बल्कि अपने समाज को जागरूक भी करता है। सोच में सकारात्मक दृष्टि का निर्माण करता है, अपने नज़रिए को छानता है।

बच्चों को काम पर लगा दिया जाता है। साथ ही उनको सिखाया जाता है कि लड़कियों से दूर रहना है। समाज इस बात की इजाज़त नहीं देता और भी क्या-क्या बातें ज़हन में भर दी जाती हैं। ऐसे में लड़के यही सोचते हैं कि ऐसा क्या खास है लड़कियों में जो हमको उनसे दूर रखा जा रहा है? उनके मन की यही कुंठा बलात्कार के रूप में बाहर की ओर आती है। एक बलात्कार में ना जाने किन बातों का समावेश होता होगा? किन-किन लोगों का साथ होता है, यह बात कोई नहीं जानता?

महिलाओं को पीछे धकेलती पितृसतात्मक सोच

जिन लोगों के ऊपर पितृसत्ता जैसी रूढ़ि का नशा सर चढ़कर बोलता है, उनके लिए बलात्कार शब्द ऐसा हो गया है मानो समाज को मौका मिल गया हो कि महिलाओं का बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं। समाज में महिलाओं की जो हालत है, उससे कोई भी अंजान नहीं है। ऐसे में आजकल ज़्यादातर घरों में यही सुनने को मिलता है।

“अरे वहां नहीं जाना, रास्ता सुनसान है।”, “ऐसे कपड़े मत पहनो।”, “उससे बात मत करो।” ऐसे ना जाने कितने डॉयलॉग्स हमारी निजी ज़िंदगी में हमारे सामने खड़े होते हैं लेकिन ऐसी परस्थितियों मे लड़कियों को समझाने से कहीं अच्छा है घर के हवसी लड़को को बेड़ियों में ज़कड़कर रखा जाए, वर्ना  देश को बलात्कारी देश बनने में ज़्यादा देर नहीं लगेगी।


सोर्स- इंडिया डॉट कॉम

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