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कविता: “ना मालूम था एक दिन संविधान की राख पर उपजता वर्तमान बनूंगा”

Indian Constitution

गणतन्त्र का रक्षक, लोकतंत्र का पहरेदार बनूंगा
सम्प्रभुता की सम्पन्नता, पंथनिरपेक्षता का सम्मान बनूंगा
न्याय त्रिविधि समाहित कर, विधि शास्त्र प्रधान बनूंगा
प्रतिष्ठा, अवसर की समता, गरिमा का संधान बनूंगा।

 

विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, उपासना का अधिमान बनूंगा
राष्ट्रीय एकता, अखंडता एवं बंधुता का प्रमाण बनूंगा
सोचा था मैं अंबेडकर का ड्राफ्ट एक दिन भारत का संविधान बनूंगा।

 

ना सोचा था कभी हरा भरा बगीचा मैं, अंदर से तार-तार बनूंगा
भारत का संविधान मैं, एक टूटा सा अरमान बनूंगा
दबे कुचलों की आवाज़ नहीं, गुंडो का हथियार बनूंगा
क्रांति की अगन नहीं, दंगे की मशाल बनूंगा।

 

सम्पूर्ण प्रभुत्व का प्रतिनिधि नहीं, स्वामित्व का द्योतक बनूंगा
मानव की पहचान नहीं, मानवता का हत्यारा बनूंगा
शहीदों के लहू की स्याही से बना था जो संविधान,
ना मालूम था एक दिन उन्हीं की राख पर उपजता वर्तमान बनूंगा
सोचा था मैं अम्बेडकर का ड्राफ्ट एक दिन भारत का संविधान बनूंगा।

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