हया, बेहया और इज़्जत किसी की
क्यों लगाए हैं ये इल्ज़ाम हम पर?
पूछूंगी तो बता पाओगे तुम?
क्या बोझ नहीं यह इल्ज़ाम हम पर?
कर दिया अगर सवाल कोई
क्या शक की नज़रें डालोगे हम पर?
कर दी अगर कोई बात हक की
तो क्या हाथ उठाओगे हम पर?
हया, बेहया और इज़्जत किसी की
क्यों लगाते हो ये इल्ज़ाम हम पर?
बेवजूद हैं हम बिना तुम्हारे
क्या वाज़िब हैं ये इल्ज़ाम हम पर?
क्यों कहती हो इन्हें इल्ज़ाम तुम?
क्या कहूं और ज़रा बता दो तुम।
क्यों हो गए अब चुप तुम?
है अगर कोई दूसरा नाम तो जता दो तुम।
बार-बार ये पूछूंगी, जवाब है तो बता दो तुम
हया, बेहया और इज़्जत किसी की
आखिर क्यों लगाए हैं ये इल्ज़ाम हम पर?
चलो कोई चाहत है भी तो
चलो गलत हम हैं भी तो
ये इल्ज़ाम भी सही तो नहीं हम पर।
कह लो चलो बेहया हो तुम
पर इल्ज़ाम बेहयाई का हटालो तुम।
मर्दों का समाज तो सब जानता है
इसे इल्ज़ाम जो लगाना आता हम पर।
इन सवालों का जवाब दे दो तुम
ना रही मैं तो रह पाओगे तुम?
सवालों को जवाब कर दो तुम।
हया, बेहया और इज़्जत किसी की
लगाए तुमने ये इल्ज़ाम हम पर।