तुम्हारे नाम में क्या रखा है?
कुछ नहीं, कुछ नहीं रखा था नाम में जब तक धरती पर ‘रेंगता’ था
अब रेंगता हूं समाज में
मेरे नाम, सिर्फ नाम में क्या नहीं रखा है?
मेरे नाम में छिपा है
किस ज़िले के किस इलाके से हूं मैं?
किस मोहल्ले में बिलखता आया हूं
मेरी गली किस “धार्मिक इमारत” के सजदे में रहती है
मेरे नाम में तुम्हारी ‘जड़’ की सच्चाइयां रखी हैं
मेरे नाम में अदब, तहज़ीब, खान-पान, तीज-त्यौहार, बढ़ई के औज़ार
साड़ी के गोटे में छिपी जात
‘बोली’ के लहज़े में पुरखों की हर बात।
मेरे नाम को पहनाया है तुमने पायजामा
कहा है तुमने कभी नक्सली, कभी देशद्रोही जमात
और तुम पूछते हो मेरे नाम में क्या रखा है?
स्कूल की आखरी बेंच मेरे नाम की है
पानी की एक टंकी, खेलने का मैदान
निकलने का समय तय किया है,
कैसी किताबें मेरी आंखें पढ़ेंगी
रात को लैंप में फिर से मिट्टी का तेल डलेगा या आ जाएगी बिजली कुछ हफ्तों बाद।
अस्सी प्रतिशत ‘गटर’, दस प्रतिशत ‘बिरयानी वाले’ या बचे दस प्रतिशत ‘ऊंची कुर्सी पर खोखले दिमाग’ के ताने
और तुम पूछते हो मुझसे मेरे नाम में क्या रखा है?
नाम बताने भर से रॉड से पीटा जाऊंगा,
पेट भरने के लिए “आधार” छप जाऊंगा
फटी, मैली शर्ट पर थूक जम जाएगा।
मैं, मेरे नाम भर से जिस मिट्टी में जन्म लिया उसी का कातिल बन जाऊंगा
ब्याह में शहनाई बजेगी, घोड़ी पर चढ़ा जाएगा
या सेहरा उतारकर किसी का जूता चूमा जाएगा,
एक जानवर के ‘पॉलिटिकल प्यार’ में मेरी खाल को काढ़ लिया जाएगा
चलती ट्रेन से उतारकर पटरी पर फेंका जाएगा।
मैं कहां तक के बंजर का मालिक हूं
यह मेरे नाम से पहचाना जाएगा
और तुम पूछते हो मुझसे मेरे नाम में क्या रखा है?
मैं बताता हूं मेरे नाम में क्या-क्या रखा है
मेरे नाम में रिसता लहू ‘इंकलाब’ की चाह रखता है
जहान भर की कोशिशें कर लो
नाम पर मेरे कालिखें पोत दो
लाकर धारदार चाकू मेरे नाम के पेट-पीठ में गोद दो,
तुम्हारे चाकू से लिपटा मेरा नाम
मेरे नाम में तुम्हारे शोषण का पूरा इतिहास रखा है।
तुम पूछते हो मेरे नाम में क्या रखा है?
गलत पूछते हो, पूछो मुझसे
तुम्हारे नाम में क्या नहीं रखा है?