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“राहुल गाँधी, क्या आप सिख दंगों के लिए ईमानदारी से मांफी मांगेंगे?”

राहुल गाँधी

राहुल गाँधी

श्रीमान राहुल गाँधी,

अध्यक्ष, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस

आज भारत बहुत ही नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है। हिंदुत्ववादी ताकतों के हमले मुस्लिमों, आदिवासियों, दलितों व मज़दूर-किसानों पर बढ़ते जा रहे हैं। इन हमलों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले कलाकारों, लेखकों, नाटककारों, छात्रों और बुद्धिजीवियों की भी आवाज़ दबाने के लिए दमन जारी है।

आज आप भारत की राजनीति के विपक्ष के मज़बूत चेहरे हैं। आपको भारत का एक बड़ा तबका हिन्दुत्ववादी सत्ता के खिलाफ लड़ने वाला योद्धा के तौर पर देखता है। उनको लगता है कि आप हिन्दुत्व की सत्ता के हमलों से उनको बचाएंगे। उनको लगता है कि आप जिस पार्टी के मुखिया हैं, उस पार्टी का भारत की आज़ादी के दौर में ऐसे नेताओं ने नेतृत्व किया है, जिनका धर्मनिरपेक्षता, बहुलतावाद व स्वायत्तता के पक्ष में एक मज़बूत पक्ष रहा है। वहीं उनका साम्प्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता, जातिय कट्टरता के खिलाफ भी मज़बूत पक्ष रहा है।

आज जो भारत का धर्मनिरपेक्ष कानून है, वहां अलग-अलग राष्ट्रीयता, संस्कृति और क्षेत्रों को स्वायत्तता है। उसके पीछे आम जनमानस का बहुत बड़ा संघर्ष है। उस संघर्ष ने साम्प्रदायिक व फासीवादी ताकतों को नकारते हुए देश का नेतृत्व काँग्रेस को दिया। कॉंग्रेस में उस समय महात्मा गाँधी और जवाहर लाल नेहरू नेतृत्वकारी भूमिका में थे। आप उन दोनों नेताओं के वारिस हैं। गाँधी सरनेम आपके परिवार को महात्मा गाँधी का ही दिया हुआ है। भारत का एक बड़ा तबका जाने-अनजाने आप में नेहरू और महात्मा गाँधी को देखता है।

महात्मा गाँधी जी धार्मिक होते हुए भी साम्प्रदायिकता, फासीवाद व कट्टर हिन्दुतत्व के खिलाफ एक महान योद्धा थे। इसी कारण हिंदुत्ववादी आंतकवादियों ने उनकी जान ले ली। वहीं जवाहर लाल नेहरू, जो उस समय के प्रगतिशील आंदोलन के अगुवा दस्ते के रूप में मज़बूती से खड़े थे।

देश की सत्ता की बागडोर हाथों में आने के बाद नेहरू वो सब नहीं कर पाएं जो उनके विचार थे। इसके पीछे सत्ता के लिए विचारों से समझौता भी हो सकता है फिर भी उन्होंने बहुत से मुद्दों पर मज़बूती से संघर्ष किया, जिसकी झलक आपको संविधान में दिखती है।

लेकिन क्या उनके वारिसों ने उनके विचारों को आगे बढ़ाया? उनके वारिस के तौर पर पूर्व प्रधानमंत्री आपकी दादी व आपके पिता जी ने अपनी सत्ता बनाS रखने के लिए हिन्तुत्व के साथ पिछले दरवाज़े से गठजोड़ ही किया। दोनों ने नरम हिन्तुत्व की राजनीति के तौर पर अपने आपको पेश किया।

साम्प्रदायिक सिख दंगे हो या पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी द्वारा राम जन्मभूमि का ताला खुलवाने व रामराज्य लाने की घोषणा साफ-साफ नेहरू के विचारों के एकदम उल्ट थी। ऐसे ही आज आप नरम हिंदुत्व के एजेंडे के रास्ते पर हो। अपने आपको हिन्दू साबित करने के लिए आप कभी सोमनाथ मंदिर जाते हो तो कभी कैलास मानसरोवर जाते हो ताकि भाजपा द्वारा आपकी बनाई हिन्दू विरोधी छवि को आप नकार सकें।

मैं अब दोबारा आपसे मुखातिब होता हूं। आप अपने आपको सैद्धान्तिक राजनीतिज्ञ के तौर पर पेश करते हो। आपने अपने आपको काँग्रेस की तरफ से भारत का प्रधानमंत्री का दावेदार भी पेश किया है।

लेकिन मेरा आपसे सवाल है कि आप वैचारिक तौर पर जवाहर लाल नेहरू के साथ खड़े हो या अपनी दादी व पिताजी के साथ खड़े हो? क्या आप ईमानदारी से स्वीकार कर सकते हो कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा देश में लगाया आपातकाल संविधान का गला घोंटकर लोकतंत्र की हत्या थी?

क्या आप सिख दंगों के लिए ईमानदारी से माफी मांगते हुए स्वीकारोगे कि उस समय बहुत बड़ी गलती हुई थी, जिसकी भरपाई करना नामुकिन है लेकिन भविष्य में ऐसी किसी भी घटना के समर्थन में मैं नहीं खड़ा होऊंगा।

आज आप फासीवादी सत्ता द्वारा गिरफ्तार वामपन्थी विचारकों की गिरफ्तारी का विरोध करते हो लेकिन क्या आप यह भी स्वीकार करोगे कि इन्हीं 5 में से 4 विचारकों को आपकी सरकार निर्दोष होते हुए भी वर्षों जेल में सड़ा चुकी है? 90% अपंग प्रोफेसर GN साईं हो या कोबाड गाँधी, जिनको आपकी सरकार ने सिर्फ जेल में इसलिए डाल दिया, क्योकि वे मेहनतकश आवाम की बात कर रहे थे। कॉमरेड आज़ाद, जो माओवादियों की तरफ से आपकी सरकार से शांति वार्ता की तरफ बढ़ रहे थे, जिनको आपकी सरकार ने फेक एनकाउंटर में मार दिया।

क्या आप स्वीकारोगे कि जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता को आपकी पार्टी की सरकारों ने कम़जोर किया है व देश के अलग-अलग हिस्सों में स्वायत्तता के लिए उठे आंदोलनों को सत्ता ने दमन किया है? क्या आप मानोगे कि आपकी पार्टी की सरकारों ने पूंजीपतियों की जल-जंगल-ज़मीन की अंधी लूट में शामिल होते हुए आदिवासियों का बड़ी निर्दयता से दमन किया?

आपकी पार्टी की गलत नीतियों के कारण लाखों किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हुए। क्या आप स्वीकारोगे कि आपकी सरकारों के समय लाखों-करोड़ों के घोटाले हुए? क्या स्वीकारने की हिम्मत है आप में कि आपकी पार्टी की ही गलत नीतियों के कारण भारत की जनता ने विकल्प के तौर पर फासीवादियों को सत्ता सौंप दी?

एक पूंजीवादी राजनीतिज्ञ के तौर पर बहुत मुश्किल है यह सब स्वीकारना लेकिन एक इंसान के लिए नामुकिन नहीं है यह सब। इतिहास के पन्ने ऐसे उदाहरणों से भरे पड़े हैं। सम्राट अशोक, जिसने सत्ता के नशे में कितना रक्तपात बहाया इतिहास गवाह है लेकिन जब महात्मा बुद्ध के विचारों ने उनको प्रभावित किया तो उनको अपने आप पर ग्लानि हुई और उसी दिन उन्होंने अपने आपको बदल लिया। उसके बाद उन्होंने जो मानवता के लिए कार्य किए, उसका भी इतिहास गवाह है। उन्हीं कार्यों ने सम्राट अशोक को महान सम्राट अशोक बनाया।

मुझे लगता है कि आप भी यह सब कर सकते हो। हो सकता है इससे आपको बहुत ज़्यादा राजनीतिक नुकसान भी हो जाए लेकिन अगर आप ईमानदारी से यह सब स्वीकारते हो और भविष्य में मेहनतकश आवाम के साथ-साथ साम्प्रदायिकता, साम्राज्यवाद, फासीवाद के खिलाफ लड़ने की बात करते हो, तो आप भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया की मेहनतकश व पीड़ित आवाम के सच्चे हीरो साबित होंगे। एक इंसान के लिए इससे ना कोई बड़ी उपाधि होगी और ना ही कोई बड़ा पद होगा।

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