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ऐसे करते हैं छत्तीसगढ़ के आदिवासी प्राकृतिक गोंद ‘लासा’ का औषधि और दैनिक जीवन में उपयोग

यह आर्टिकल केवल जानकारी के लिए है, यह किसी भी प्रकार का उपचार सुझाने की कोशिश नहीं है। यह आदिवासियों की पारंपारिक वनस्पति पर आधारित अनुभव है। कृपया आप इसका इस्तेमाल किसी डॉक्टर को पूछे बगैर ना करें। इस दवाई का सेवन करने के परिणाम के लिए Adivasi Lives Matter किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।

आदिवासियों को अपने इर्द-गिर्द जंगलों के अच्छे ज्ञान के लिए जाना जाता है। आदिवासी क्षेत्रों में दैनिक जीवन में में ऐसी कई चीज़ें इस्तेमाल होती हैं। जो पेड़-पौधों से बनाई जाती हैं। आदिवासियों का जीवन होता ही ऐसा है- प्राकृतिक चीजों का ज़्यादा इस्तेमाल होता है और अगर किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो पहले उसे बनाने या ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं। ना की सीधे बाजार से खरीदते है।

ऐसी ही प्राकृतिक चीजों में से एक है गोंद। प्राकृतिक गोंद को छत्तीसगढ़ी में लासा भी कहा जाता है। आदिवासी क्षेत्रों में उगने वाले ऐसे कई पेड़-पौधे हैं। जिनसे गोंद प्राप्त किया जा सकता है। इन गोंद देने वाले पौधों को आदिवासीयों की बाड़िओं  में भी पाया जा सकता है।

इस गोंद को आदिवासी घर में उपयोग में लाते हैं। कई आदिवासी इसे बाज़ार में भी बेचते हैं। यह गोंद कई रंगों का होता है- पीला, लाल, सफेद, आदि।  अगर आप इसे घर में बनाऐंगे तो इस प्रक्रिया में किसी भी केमिकल का उपयोग नहीं करना पड़ेगा। लेकिन जब गोंद को कारखाने में बनाते हैं।

तो इसमें ज़रूर कोई ना कोई केमिकल तो मिलाते ही हैं। इस गोंद के सहारे आप किसी भी कागज, पुस्तक, फाइल, फोटो घर की दीवारों पर आसानी से चिपका सकते हैं। नीम, पलाश, बबूल, मुनगा, कवहा, पीपल, साल इन सभी पौधों में गोंद पाया जाता है, लेकिन अलग पेड़ों से मिलने वाले गोंद का अलग अलग उपयोग होता है।

प्राकृतिक गोंद निकालने का तरीका

किसी पेड़ के तने को चीरा लगाने या पेड़ में गड्ढा करने के बाद दो-तीन दिन ऐसे ही छोड़ देते हैं। इसपर अच्छे से धूप पड़ने पर जो अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। वह बाहर निकल जाते हैं।

गोंद सूखने के बाद वह कड़क हो जाता है और इसे निकालकर आदिवासी एक डिब्बे में भर देते हैं। उसमें तीन-चार छोटा चम्मच गर्म पानी मिलाकर गोंद को ढ़क देते हैं। फिर दो दिन बाद गोंद का उपयोग करते हैं।

औषधि और खाने के रूप में प्राकृतिक गोंद का उपयोग

सर्दियों में इस प्राकृतिक गोंद को खाने से खांसी, जुकाम, इन्फेक्शन जैसी समस्याएँ नहीं झेलनी पड़ती। बबूल का गोंद बहुत ही फायदेमंद और पौष्टिक होता है और यही गोंद सबसे ज्यादा इस्तेमाल में लाया जाता है। इस गोंद के लड्डू बनाए जाते हैं।

नीम का गोंद भी लाभदायक होता है, और इसे इसे ईस्ट इंडिया गम भी कहते हैं। इस गोंद में नीम के औषधीय गुण भी मौजूद होते है। इसी तरह पलाश के गोंद का सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है।

सुबह-सुबह गोंद के लड्डू खा कर दूध पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। ऐसे आदिवासियों का कहना है। गोंद या इससे बनी चीजें खाने से हृदय रोग के खतरे भी दूर होते हैं। साथ ही मांसपेशी मजबूत होती है। ऐसे लोगों का मानना है। गर्भवती महिलाओं के लिए गोंद अच्छा माना जाता है। यह रीढ़ की हड्डी को मजबूती प्रदान करता है।

सूखे मेवे या चीनी को गोंद के साथ भूनकर पंजीरी बनाकर खा सकते हैं। नारियल के बूरे, सूखे खजूर, खस-खस के दाने और बादाम को गोंद के साथ मिलाकर और भूनकर लड्डू बनाया जाता है। गोंद को तलते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह जले नहीं।

इस प्रकार पेड़ से मिलने वाला प्राकृतिक गोंद आदिवासी उपयोग में लाते है।क्या आपने कभी इस गोंद का इस्तेमाल किए है या इसे चखा है?


नोट: यह लेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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