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क्या तेजस्वी यादव नीतीश फैक्टर को अपने पाले में कर पाएंगे?

कल 10 नवम्बर को चुनाव के नतीजे आने वाले हैं लेकिन उससे पहले ही नुक्कड़ की चाय दुकान से लेकर TV डिबेट्स तक और रैली से लेकर एक्ज़िट पोल्स तक चुनाव का आकलन होगा। बहरहाल, सभी को अंदाज़ा लग चुका है कि इस बार जनता ने महागठबंधन को चुन लिया है।

चिराग फैक्टर

बिहार के पासवान एवं अन्य दलित वोट महागठबंधन के खाते में जा सकते थे मगर चिराग पासवान के अकेले चुनाव लड़ने के कारण वे सभी वोट अब LJP के खाते में चले गए होंगे।

भाजपा फैक्टर

चूंकि चिराग के अधिकतर उम्मीदवार BJP ने तय किए थे। अतः उस विधानसभा के BJP वोटर खासकर तथाकथित सवर्ण वोटर अंदर ही अंदर नीतीश को CM के रूप में नहीं देखना चाहते थे। उनके वोट महागठबंधन को नहीं पड़े, बल्कि BJP के इशारे पर चिराग पासवान के उम्मीदवार को मिले होंगे।

महादलित फैक्टर

बिहार में दलितों की आबादी लगभग 16 प्रतिशत है, जिनमें 4% पासवान जाति से आते हैं। नीतीश कुमार ने दलित को तोड़कर महादलित बनाया। महादलित में पासवान को छोड़कर बाकी सभी जातियां शामिल हैं। नीतीश ने उन 12% महादलितों को अनगिनत योजनाओं का लाभ दिया है। अतः आज भी इन 12% का झुकाव नीतीश की तरफ है।

महिला फैक्टर

नीतीश कुमार की सबसे बड़ी शक्ति “महिला-वोटर” है जो जीविका से लेकर आशा दीदी तक वह आज भी बड़े पैमाने पर नीतीश के साथ हैं। महिला वोटर लगभग 50% है इसका एक चौथाई भी नीतीश की तरफ हो तो लगभग 12% वोट नीतीश के हैं।

मुस्लिम फैक्टर

नीतीश कुमार देश के एकमात्र नेता हैं, जो पिछले 15 साल से BJP के साथ मिलकर सरकार चलाते हुए भी अपनी धर्मनिरपेक्षता वाली छवि को बनाए हुए हैं। आज भी यदि नीतीश खुलकर भाजपा का दामन छोड़ दें, तो बिहार के मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग नीतीश की तरफ झुक जाएगा।

मुसलमानों में अंसारी-जाति का झुकाव वैसे भी नीतीश कुमार की तरफ हमेशा रहता है लेकिन CAA और NRC की वजह से मुसलमान नीतीश से दूर हो सकते हैं।

समाजवादी फैक्टर

जॉर्ज फर्नांडिस जैसे नेता के साथ राजनीति करने वाले और लोहिया एवं जय-प्रकाश नारायण को अपना आदर्श मानने वाले नीतीश-कुमार भले ही BJP के साथ सरकार में हों मगर उनके अंदर आज भी समाजवादी DNA मौजूद है। अतः समाजवादी सोच वाले कुछ वोटर आज भी नीतीश के पक्ष में हो सकतें हैं।

विकास फैक्टर

चाहे बिजली हो, सड़क हो या अपराध-नियंत्रण एवं सुरक्षा की बात हो, बिहार के विकास की रफ्तार भले ही आप धीमी कह दें मगर बिहार के विकास को आप झुठला नहीं सकते हैं। अतः जिन्होंने लालू के 15 साल और नीतीश के 15 साल दोनों को देखा है, हो सकता है उनका वोट आज भी नीतीश के पक्ष में गया होगा।

शराब फैक्टर

बिहार में नीतीश द्वारा किया गया शराबबंदी का फैसला राजनीतिक है या सामाजिक, यह एक विमर्श का विषय है। नीतीश कुमार ने दबे-कुचले और खासकर महिला वर्ग में इस फैसले का समाजीकरण कर दिया है। उन्हें शोषण एवं घरेलू हिंसा से ज़रूर दूर किया है।

शराब से होने वाले राजस्व घाटे और शराब की कालाबाज़ारी को भी झुठलाया नहीं जा सकता है मगर सड़क-दुर्घटना एवं खुलेआम दारुबाजी जैसी चीजें ज़रूर कम हुई हैं।

पहले आम जनता नशेबाज़ के सामने नहीं जाती थी। अब नशेबाज़ आम लोगों के सामने नहीं जाता है, इसे ही कहते हैं 180 डीग्री बदलाव।

अगर NDA गठबंधन में BJP को कम सीट आती है और महागठबंधन में काँग्रेस को सम्मानजनक सीट, तो नीतीश कुमार काँग्रेस की तरफ जाने का रास्ता खोलकर चलते हैं। 

नीतीश कुमार ने JDU की 115 सीटों को जातिवार बांटा

करीब 20 फीसदी अगड़ी जातियां हैं, जिनमें राजपूत सबसे ज़्यादा हैं। नीतीश कुमार ने अगड़ी जातियों को कुल 20 सीट दी है, जिनमें राजपूत को 07 सीट और भूमिहर को 10 सीट। वैश्य को 3 और ब्राह्मण को 2 सीट।

बिहार में करीब 15 फीसदी यादव हैं। नीतीश कुमार ने उन्हें 18 सीट दी है। बिहार में 16 फीसदी मुसलमान हैं, तो नीतीश कुमार ने उनको 11 सीट दी है। बिहार में कुर्मी 4 फीलदी और कोइरी जाति के लोग 8 फीसदी हैं, उन्हें 12 सीट मिली है। नीतीश ने अतिपिछड़ा वर्ग को 19 सीट दिए हैं। जबकि कुशवाहा समाज को 15 सीट, धानुक को 8 सीट और ST को एक सीट।

बहरहाल, नीतीश कुमार के इतने फैक्टर को यदि तेजस्वी यादव अपने युवा-छवि से मात देने में कामयाब हो जाते हैं, तो बिहार में बदलाव निश्चित है। इस बार नीतीश कुमार का सबसे कमज़ोर पक्ष यह है कि NDA में उनकी साथी भाजपा ही नीतीश की नांव डुबाना चाहती है। इसका सीधा फायदा तेजस्वी यादव को मिल सकता है।

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