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आखिर क्यों महागठबंधन की रैलियों वाली भीड़ वोट में तब्दील नहीं हो पाई?

बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम के मुताबिक अगले 5 साल के लिए राज्य की गद्दी पर एनडीए शासन करेगी। अगर भारतीय जनता पार्टी में सब कुछ ठीक रहा तो अगले 5 साल के लिए एक बार फिर से नीतीश कुमार की ताजपोशी बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में की जा सकती है।

इस विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर हुआ है, जिसका नुकसान चुनाव जीतकर भी नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जनता दल यूनाइटेड को उठाना पड़ा है। पार्टी सीधे लुढ़ककर 43 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर चली गई है। वहीं, बीजेपी ने इस बार 74 सीटों पर बढ़त बनाकर रिकॉर्ड कायम कर दिया।

साइलेंट वोटर की क्यों हो रही है चर्चा?

यह चुनाव परिणाम के आने के बाद तमाम नेता और कार्यकर्ता ‘साइलेंट वोटर’ की चर्चा कर रहें हैं। इस चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों के के मुकाबले 5% अधिक मतदान किया। नीतीश कुमार की महिला सशक्तिकरण मुद्दे और नौकरियों में आरक्षण देने जैसे विषयों को लेकर एनडीए के पक्ष में मतदान किया।

इस साइलेंट वोटर में वे भी आते हैं, जिन्हें नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कई योजनाओं का लाभ मिला है। उदाहरण के तौर पर नरेंद्र मोदी ने अपने बिहार के सभी चुनावी रैलियों में उज्जवला गैस योजनाओं का जिक्र करते नजर आए। परिणाम के बाद महिलाओं के वोट से इसका असर एनडीए के पक्ष में रहा।

हाई वोल्टेज मैच में पीछे रह गई महागठबंधन

टीवी चैनलों पर दिखाए गए एग्जिट पोल की भविष्यवाणी इस बार भी गलत साबित हुई। तेजस्वी यादव की अगुवाई वाली महागठबंधन बिहार की सत्ता से दूर चली गई। हालांकि इस चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल एक बार फिर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। पार्टी ने 75 सीटों पर अपनी जीत दर्ज की है।

चुनाव अभियान के दौरान तेजस्वी विरोधियों पर काफी आक्रमक दिखे। यहां तक कि बैनर पोस्टरों में अपने पिता श्री लालू प्रसाद यादव को दूर रखा।  उनके भाई और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव को पार्टी ने अपना स्टार कैंपेनर नहीं बनाया। राष्ट्रीय जनता दल तेजस्वी की अगुवाई में “तेज रफ्तार, तेजस्वी सरकार” के नारे के साथ नजर आई।

तेजस्वी यादव ने दस लाख सरकारी नौकरियां देने का वादा किया। उनकी पार्टी के विधायक प्रत्याशियों ने अखबारों में अपने क्षेत्र के काम गिनाने के बजाय दस लाख नौकरियों को प्रमुखता से जगह दी। पूरे चुनाव के दौरान वे किसी भी जाति विशेष टिप्पणी से बचते रहे। विकास के मुद्दों के साथ उनकी रैलियों में युवाओं की भीड़ दिखी लेकिन चुनावी नतीजों से यह तो स्पष्ट हो गया कि ये भीड़ वोट में तब्दील नहीं हो पाई।

काँग्रेस ने नुकसान कराया तो लेफ्ट की पार्टियों ने भरपाई की

महागठबंधन में 70 सीटों के साथ मैदान में उतरी काँग्रेस मात्र 19 सीटें ही जीत पाई। इस बात से स्पष्ट अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार में काँग्रेस का जनाधार खिसकता नजर आ रहा है। पार्टी के इस तरीके के निराशाजनक प्रदर्शन से राष्ट्रीय जनता दल भी खुश नहीं होगी। अगर काँग्रेस करीब 10 और सीटें ला पाती तो चुनाव के परिणाम अलग होते।

वहीं, दूसरी तरफ लेफ्ट ने इस बार बिहार में अपनी मजबूत पकड़ बनाई रखी। लेफ्ट के खाते में दिए गए 29 सीटों में से 16 सीटों पर जीत हासिल कर चुकी है। ऐसा कई सालों के बाद हुआ है। साल 2010 के विधानसभा चुनाव में सीपीआई मात्र एक सीट ही सीट पर जीत हासिल कर पाई थी।

साल 2015 के चुनाव में सीपीआई (एम ए एल) के खाते में मात्र 3 सीटें गई थी। इस चुनाव में सीपीआई , सीपीआई (एम), सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) ने मिलकर काँग्रेस से अच्छा प्रदर्शन किया।

लोजपा का ‘चिराग’ बुझता ही नज़र आया

लोक जनशक्ति पार्टी के लिए चुनाव परिणाम के दिन अच्छे नहीं साबित हुए। चुनाव से कुछ दिन पूर्व भी पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद बेटे चिराग पासवान ने चुनावी कमान संभाली लेकिन अपनी पार्टी को सफलता दिलाने में असफल रहे। उनका बिहार फर्स्ट- बिहारी फर्स्ट नारा भी लोगों को रास नहीं आया। उनकी पार्टी मात्र 1 सीट पर जीतकर अपना खाता खोला।

हालांकि चिराग पासवान ने नीतीश कुमार पर निशाना साध कर जेडी (यू) को हानि जरूर पहुंचाई। 147 सीटों पर मैदान में उतरने वाली लोजपा ने खुद अपने खाते में एक ही सीट हासिल किया हो लेकिन नीतीश कुमार की पार्टी को तीसरे नंबर पर धकेलने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। खुद को हनुमान बताने वाले चिराग पासवान के लिए अब एनडीए में  शामिल होने के सवाल पर जेडी (यू) कितनी नरमी दिखाती हैं यह देखना दिलचस्प होगा।

सन ऑफ मल्लाह मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को चार चार सीटें हाथ लगी हैं। अपने मन मुताबिक सीट ना मिलने से बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस महागठबंधन छोड़कर चले जाने वाले मुकेश साहनी के लिए एनडीए का साथ फायदे का सौदा रहा।

सीमांचल में मुस्लिम वोटरों ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी पर जताया भरोसा

20 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली AIMIM, 5 सीटों पर जीत दर्ज की है। मुस्लिम बहुल इलाकों में वोटरों ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी पर भरोसा जताया है। पिछली विधानसभा में शून्य पर आउट होने वाली ओवैसी की पार्टी इस बार अपने प्रदर्शन से जरूर खुश होगी। उनकी पार्टी ने उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा, पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के मुकाबले कई गुना बेहतर प्रदर्शन किया है।

इन दोनों पार्टियों ने बिना कोई सीट जीते, जनता का विश्वास जीतने में असफल रही। जाप(लो) के संरक्षक पप्पू यादव खुद अपने मधेपुरा सीट से चुनाव जीत नहीं हासिल कर पाए। ऐसे में आने वाले समय में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी सीमांचल सहित मुस्लिम बहुल इलाकों में कई छोटे बड़े राजनीतिक दलों के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है।

कई दिग्गजों को मुंह की खानी पड़ी

इस बार के चुनाव में कई हाई प्रोफाइल प्रत्याशियों को हार का मुंह देखना पड़ा। प्लूरल्स पार्टी के साथ बिहार चुनाव में आगाज करने वाले पुष्पम प्रिया चौधरी अपनी दोनों सीटों से बुरी तरह से हार गई। उन्हें बिस्फी और बांकीपुर दोनों सीटों से हार का सामना करना पड़ा है। इस हार के उनके मुख्यमंत्री बनने के सपने भी धराशाई हो गए।

दूसरी ओर बांकीपुर सीट बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा को जनता ने नकार दिया। जेल में बंद बाहुबली आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद सहरसा से अपनी सीट नहीं बचा पाई। मधेपुरा के बिहारीगंज विधानसभा से काँग्रेस की सीट पर उतरीं पूर्व सांसद शरद यादव की बेटी सुभाषिनी शरद यादव भी अपनी सीट बचाने में असफल रही।

चुनाव आयोग को थैंक्यू तो बनता है

कोरोना काल में तमाम असंभावनाओं के बीच जिस तरीके से चुनाव संपन्न हुआ है, उसके लिए चुनाव आयोग की तारीफ की जानी चाहिए। चार करोड़ दस लाख वोटरों के साथ तकरीबन रात 11:30 बजे तक चुनाव आयोग ने नतीजे घोषित कर दिए।

कोरोना वायरस को देखते हुए इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले 63% अधिक पोलिंग बूथ बनाए गए थे। इन्हीं कारणों से चुनाव आयोग को वोटों की गिनती में देरी हुई। औसतन मतों की राउंड 35 रखी गई। पिछले चुनावों में पूरे बिहार में 38 मतदान गिनती केंद्र बनाए गए थे, इस चुनाव में  बढ़ाकर 55 कर दिया गया।

हालांकि राष्ट्रीय जनता दल ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया, जिसे बाद में इलेक्शन कमीशन के अधिकारियों ने खारिज कर दिया। अमेरिका के चुनाव में कुछ इसी तरह के आरोप डोनाल्ड ट्रंप ने लगाए थे। इस बार का हाई वोल्टेज बिहार चुनाव बहुत कारणों से याद रखा जाएगा।

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