Site icon Youth Ki Awaaz

छत्तीसगढ़ के आदिवासी कैसे करते हैं भुट्टे की खेती

छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र में जैसे ही बरसात लगती है। आदिवासी लोग अपने लिए खाद्य पदार्थों का बंदोबस्त करना शुरू कर देते हैं। सबसे पहले भुट्टे को लगाया जाता है। छत्तीसगढ़ी भाषा में मक्का को भुट्टा कहा जाता है।  यह एक प्रमुख खाद्य फसल है जो मोटे अनाजों की श्रेणी में आता है। यह सबसे पहली  फसल होती है। इसे आदिवासी लोग स्वयं ही लगाते हैं। जून में भुट्टा लगाना शुरू कर देते हैं। भुट्टे के साथ-साथ अन्य फसल लगाते हैं या बीज भी लगाते हैं।

भुट्टे को लगाने के लिए पुराने भुट्टे का उपयोग करते हैं। कभी-कभी दुकान से हाइब्रिड वाले भुट्टे का बीज लगाते हैं। इस भुट्टे के बीज के लिए सबसे पहले होने वाली बरसात का पानी सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है। इससे भुट्टा बहुत अधिक मात्रा में उगता है और एक भुट्टे के पेड़ में 2 भुट्टे के फल लगते हैं। भुट्टा 3 महीने के बाद पूरा पक जाता है और वह खाने योग्य हो जाता है।

भुट्टा लगाने का तरीका

भुट्टा लगाने के लिए सबसे पहले पुराने भुट्टे का बीज लेते हैं। फिर उस भुट्टे के बीज को भुट्टे के डंठल से अलग कर लेते हैं। भुट्टे के डंठल को आदिवासी क्षेत्र में मूसरी कहा जाता है। भुट्टे के बीज को निकालने के बाद बीज को लगाते हैं। लेकिन लगाने से पहले मिट्टी को साफ कर लेते हैं। भुट्टा  लगाने की जगह को भी अच्छी तरह से साफ कर लेते हैं क्योंकि अगर हम भुट्टे के बीज को लगाते हैं और उसमें प्लास्टिक या पत्थर मौजूद है तो बीज नहीं उगेगा।

मिट्टी के खंड को 1 फुट की दूरी में लगाते हैं ताकि एक भुट्टे का पेड़ दूसरे भुट्टे के पेड़ को ना छुए। इसकी जड़ मिट्टी के ऊपरी भाग में ही होती हैं। भुट्टे का पेड़ बहुत ही कमज़ोर होता है। अगर बरसात होने पर यह हवा आने पर भुट्टे के पेड़ एक दूसरे को छू ले तो यह ज़मीन पर नीचे गिर जाते है और भुट्टा नष्ट हो जाता है और खाने योग्य नहीं रहते। 1 सप्ताह बाद भुट्टे के बीच से छोटी छोटी पत्तीयां  निकलना शुरू हो जाती हैं।

भारत के अधिकांश मैदानी भागों से लेकर पहाड़ी क्षेत्रों तक में मक्का सफलतापूर्वक उगाया जाता है। इसे सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जाता है। बलुई दोमट मिट्टी मक्का की खेती के लिए बेहतर समझी जाती है।

मक्का हमारे सेहत के लिए और हमारे शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। यह हमारे शरीर में प्रोटीन की कमी को दूर करता है। मक्के का छिलका जानवरों को खिलाने के लिए उपयोग में लाया जाता है।  मक्का के पत्तीयों को भी जानवरों को खिलाया जाता है।


नोट: यह लेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

Exit mobile version