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कोविड में आर्थिक नुकसान झेल रहे व्यापारियों की दिवाली कैसी रही

कटघोरा बस स्टैंड के पास बुक शॉप चलाते हैं देवेद्र जी

दुनिया में अनेक प्रकार के त्यौहार बड़े-बड़े जलसों में समूह के साथ मनाया जाता है। अक्टूबर-नवम्बर में भारत में दिवाली मनाई जाती है। यह ऐसा त्यौहार है जिसे हिंदू धर्म के लोग बड़ी उत्साह के साथ मनाते हैं।

हिंदू धर्म की मान्यताओं और पुराणों में वर्णित है, कि इस दिन भगवान राम 14 वर्ष का वनवास काटकर आए था। वह भी लंकापति रावण का वध करने के बाद माता सीता, भाई लक्ष्मण, हनुमान समेत बाकी वानर सेना के साथ अयोध्या वापस आए थे।

इस खुशी में नगर वासियों द्वारा पूरे नगर में दीप उत्सव मनाया गया, तब से इस दिन को दीपावली या दीपोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

दिवाली से संबंधित व्यवसाय

इस साल कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था, राजनीति, धर्म, पर्व-त्योहारों के साथ-साथ मनुष्य के अमूल्य जीवन के हर पहलू पर अपनी छाप छोड़ी है। बहरहाल बात कोरोना काल में दिवाली से संबंधित व्यवसायों पर असर पड़ने की।

मैंने मेरे छत्तीसगढ़ राज्य के कटघोरा नगर के कुछ व्यापारियों से बात की तो पता चला कि कुछ व्यापारी 6-7 महीनों से आर्थिक नुकसान झेल रहे हैं। वैसे तो पिछले सालों में दिवाली के उत्सव से कई हफ्तों पहले से ही लोग खरीदारी शुरू कर दिया करते थे लेकिन इस साल बाज़ार सूना-सूना था।

कुछ व्यापारी ऐसे हैं जिनके व्यापार का दिवाली से सीधा संबंध तो नहीं लेकिन दीपावली का उत्सव तो उनके घरों में भी होता है। कटघोरा बस स्टैंड में एक बुकशॉप है। मालिक देवेंद्र का कहना है कि इस कोरोना के चलते दूकान पूरी तरह ठप पड़ी हुई है। क्योंकि पूरे साल भर से लोगों का स्कूल कॉलेज बंद है, जिससे पुस्तकों की बिक्री बंद हो चुकी है। वह कहते हैं कि अगर थोड़े बहुत स्कूल कॉलेजों को खोल दिया जाए, कुछ समय के लिए तो छोटे-मोटे व्यापारी वर्ग का गुज़ारा हो सकता है।

सैलून चलाने वालों का भी रहा बुरा हाल

दिनेश नाम के एक युवक जो बाल काटते हैं, उनसे बात करने पर पता चला कि उनकी स्थिति भी कुछ खास नहीं है। क्योंकि कोरोना बीमारी के चलते बहुत ही दिक्कत हुई है। यह बीमारी एक संक्रामक बीमारी है इसलिए उनको बहुत दिक्कत हुई है। एक दूसरे को छुए बिना तो न हम दाढ़ी बना सकते हैं और न बाल बना सकते हैं।

दिवाली के समय प्रशासन द्वारा लोगों के आने जाने में थोड़ी छूट देने से, कुछ राहत महसूस कर रहे हैं। कुछ दिनों से उनका काम फिर से पटरी पर आने लगा है।  फिर भी पिछले 6-7 महीने से उनका काम बंद था इसलिए उनकी दिवाली इस बार थोड़ी फीकी-फीकी ही रही।

यूं तो यह परंपरा रही है कि दीपावली त्यौहार को मनाने के लिए लोग कई दिनों पहले से तैयारी करते हैं। जैसे घर की साफ-सफाई, घर में 2 दिन पहले ही पूजा की जाती है। धन कुबेर से लेकर लक्ष्मी मां की पूजा की जाती है। लोग एकजुट अपने घरवालों और रिश्तेदारों के लिए उपहार खरीदते हैं। खासकर बच्चे इस त्यौहार को लेकर अति उत्साहित रहते हैं। क्योंकि बच्चों को इस दिन नए-नए कपड़े और पटाखे मिलते हैं।

बच्चे नए कपड़े पहन कर देर रात तक पटाखे फोड़ते हैं। पर्यावरण प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए इस साल न्यायालय ने पटाखों की बिक्री और उपयोग को सीमित कर दिया। इसके चलते दिया बेचने वालों का फायदा हुआ लेकिन पटाखर वालों का व्यवसाय चौपट हो गया।

सागर कुमार, जिनकी उम्र 22 से 24 साल के बीच है। वह मिट्टी से अनेक प्रकार के बर्तन बनाकर अपने और अपने घर के खर्चों को पूरा करते हैं। दिवाली के समय वह अपनी कमाई से सबके लिए नए कपड़े और मिठाई खरीदते हैं। इसके साथ-साथ वह कॉलेज की पढ़ाई भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि देश में अपील है कि पटाखे न फोड़ें और अपने घरों में अधिक से अधिक दिया जलाएं।  इसलिए इस बार हर साल की तुलना में दीये अच्छे से बिके हैं।

दिवाली में सबसे ज़्यादा खुश नज़र आए किसान

एक किसान हैं अशोक पुलसत, जो करीब 20-25 एकड़ में धान की फसल लगाते हैं। उनका कहना है कि इस बार उनकी फसल अच्छी हुई क्योंकि इस महामारी के चलते गांव के लोग बाहर पलायन नहीं कर पाए। जिससे उनको खेती करने में पर्याप्त मात्रा में मज़दूर मिले हैं।

इस साल सही समय में धान की रोपाई, कटाई और पूरे भंडारण तक सभी लोगों का साथ मिला, जिससे वह थोड़े खुश नज़र आए। अशोक को अच्छे फसल की खुशी तो है लेकिन उनका कहना है कि इस बार फिज़िकल डिस्टेन्सिंग के चलते दिवाली में पहले के सालों वाली खुशी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि 40 वर्ष में यह दिवाली सबसे फीकी दिवाली है, जिसमें न कोई रंग है न ढंग।

हमारे इलाके में इस साल दिवाली विभिन्न भावनाओं के साथ मनाई गई। जहां तक मेरा विचार है, न्यूज़ चैनलों और अखबारों के सर्वे के माध्यम से पता चलता है कि ज्यादातर कोरोना से जुड़ी दिक्कतें बड़े-बड़े शहरों और महानगरों में आयी हैं। जहाँ लोग ज्यादा हैं और संक्रमण का खतरा भी ज्यादा है।

यह भी है कि हमारा भारत देश गांव प्रधान देश है और गांव के लोग कोरोना से थोड़े से बचके हैं या इससे अछूते हैं।  इस समय किसान लोगों को थोड़ी खुशी मिली है कि उनको पर्याप्त मजदूर मिले। कुछ व्यापारी हैं जो इस महामारी के चलते नाखुश हैं। इस तरीके से हमारी दिवाली मनाई गई।

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