कोरोना नें सामान्य जीवन जी रहे लोगों के जीवन शैली को किसी न किसी रूप में प्रभावित ज़रूर किया है। कोरोना के डर की वजह से लोगों के बीच एक बार बढ़ी दूरी अब भी डर की वजह से लोगों के बीच बनी हुई है।
कोरोना लाकडाउन ने लोगों को एक लंबे समय तक घरों में रहने के लिए विवश कर दिया।
23 मार्च से 16 अप्रैल तक राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा दर्ज आंकड़ों के अनुसार 239 महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हुई हैं। तीन हफ्तों के इन आंकड़ों से हम आसानी से अनुमान लगा सकते हैं कि घरेलू हिंसा में इस महामारी के दौरान कैसे वृद्धि हुई। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि यह वही मामले हैं जिसमें शिकायतें की गई। उन मामलों का हमारे पास कोई रिकार्ड नहीं है जो बिना शिकायत दर्ज हुए रह गए।
ऐसा नहीं है कि लाकडाउन के दौरान यह घटनाएं सिर्फ भारत में ही बढ़ी हैं। बल्कि विश्व के कई अन्य देशों में इन मामलों पर वृद्धि देखी गई है। अप्रैल के शुरुआत में ही संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा था, “लॉकडाउन के दौरान दुनियाभर में घरेलू हिंसा के मामले में भयावह वृद्धि हुई है।”
घरेलू हिंसा पहले भी एक समस्या रही है लेकिन महामारी के दौरान हुए लाकडाउन के दौरान इसमें वृद्धि हुई है। इसके वृद्धि के कारणों में वह परम्परागत कारण भी शामिल है जिसे हम रूढ़िवादिता कहते हैं। पितृसत्तात्मक समाज की पुरुषवादी सोच हमेशा से महिलाओं को कमतर आंकता है।
लाकडाउन के कारण महिलाओं और पुरुषों को एक साथ घरों में रहने को मजबूर होना पड़ा। वह दोनों एक दूसरे की गतिविधियों की दिन भर निगरानी करने लगे और जब कभी गतिविधियां उनके अनुकूल नहीं रहीं तो विवाद होना स्वाभाविक था। जिसमें अक्सर महिलाओं को ही भावनात्मक, शारीरिक रूप से हानि उठानी पड़ती हैं। लाकडाउन के पहले भी ऐसी स्थितियां रहती थीं लेकिन ज़्यादातर पुरुष के घर से बाहर रहने के कारण विवाद की स्थिति पैदा नहीं होती थी।
हमारे परिवेश में कुछ मामलों में पति और उसका परिवार यह चाहता है कि उसकी पत्नी या बहू अपने मायके वालों से ज़्यादा रिश्ता न रखे। जबकि यह स्वाभाविक है कि एक पत्नी या बहू या फिर कोई भी हो अपनी जन्मस्थली या यूं कहें अपने माता-पिता से सम्बन्ध रखना चाहेगी।
ऐसे में लाकडाउन के दौरान कई बार ऐसी परिस्थितियां ज़रूर पैदा हुई होंगी जब कोई पत्नी अपने मायके वालों से बात करना चाही होगी। घरों में मौजूद लोगों के कारण उसे यह अवसर या तो मिला ही नहीं होगा या फिर डर-डर के उसने बात किया होगा। जिससे उसके अंदर स्वाभाविक रूप से चिड़चिड़ाहट पैदा हुई होगी जो एक प्रकार से भावनात्मक रूप से घरेलू हिंसा का ही रूप है।
इसके साथ ही मद्दपान करने वाले लोगों को इस लाकडाउन के दौरान नशीली चीज़ों के सेवन का अवसर नहीं मिल पाता था। ऐसे में उनके लिये पैदा हुई नवीन परिस्थितियों से सामन्जस्य बैठाने में समस्या होने लगी। लाकडाउन के दौरान लोगों के रोजगार के अवसर छीनने के साथ-साथ अधिकांश लोग अपने भविष्य को लेकर भी चिंतित रहने लगे। बहुत सारे लोगों को आर्थिक स्थिति पहले से बदल चुकी थी। इन सब स्थितियों से लोग एकाएक रूबरू हुए ऐसे में कुछ लोग तो ऐसी स्थितियों से सामंजस्य बिठा ले गए लेकिन बहुत सारे लोगों में इन बदलाव ने चिड़चिड़ापन पैदा कर दिया। जिसका परिणाम घरेलू हिंसा में वृद्धि के रूप में देखने को मिला।
यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि घरेलू हिंसा उन्हीं परिवारों में ज़्यादा घटित हुई जिनकी शैक्षिक, आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और जहां पूर्व में भी कभी कभार ऐसी घटनाएं हो जाती थीं।
चूंकि एक बार फिर कोरोना के मामले में वृद्धि हो रही है तो कुछ जगहों पर एक बार फिर लाकडाउन होने की खबर है। ऐसे में यह सोचने की बात है कि महिलाओं को घरेलू हिंसा से कैसे बचाव करना चाहिए? हमारे समाज में आज भी पतियों के खिलाफ जाने वाली महिलाओं को हेय दृष्टि से देखा जाता है। भले ही उसका पति कितना ही दोषी क्यों न हो या उसे कितना ही प्रताड़ित क्यों न करता हो। वह इस प्रताड़ना को यथासम्भव सहकर घर में हल करने की ही कोशिश करती है क्योंकि उनके सामने विकल्प भी सीमित होते हैं।
क्योंकि थाना-कचहरी में चक्कर लगाने से वह बचती ही हैं। ऐसी स्थिति में वह अधिकतर मामलों में अधिक प्रताड़ना होने पर मायके चली जाती थीं लेकिन लाकडाउन के दौरान सब कुछ बन्द हो जाने पर यह विकल्प भी समाप्त हो गया।
विभिन्न स्थानों पर एक बार फिर कोरोना के बढ़ते मामले और लगते लाकडाउन से एक बार फिर घरेलू हिंसा बढ़ने की संभावना बन सकती है। इस स्थिति से बचने के लिए लोगों को जागरूक करना ज़रूरी है। लाकडाउन के दौरान टेलीवीज़न पर घरेलू हिंसा रोकने के लिए जागरूक करने वाले कार्यक्रमों को दिखाना चाहिए।
बड़े-बड़े सेलिब्रेटियों के माध्यम से विभिन्न मीडिया प्लेटफार्मों से संदेश के द्वारा लोगों को जागरूक करना चाहिए। जागरूकता के लिए जिस प्रकार मोबाइलों में कॉलरट्यून की व्यवस्था है वैसे ही अगर घरेलू हिंसा की रोक से सम्बंधित जागरूकता सम्बंधित कॉलरट्यून की व्यवस्था की जाए तो निश्चित ही लोगों में जागरूकता आएगी।
लोगों की खराब होती आर्थिक स्थिति में भी संतुलित रहते हुए व्यवहार करना चाहिए। लोगों को अपने परिवार के लोगों से मधुर व्यवहार करने को उत्सुक होना चाहिए।
उन्हें मानसिक रूप से सकारात्मक होकर यह स्वीकार करना चाहिए कि इस भाग दौड़ की दुनिया में परिवार के साथ रहने का अवसर बहुत मुश्किल से ही मिलता है। अगर यह अवसर लाकडाउन की वजह से मिला है तो ऐसे अवसर को कटुता में गुज़ारने के बजाय मधुरता से गुज़ारना एक सहेजने वाली याद बन सकता है। अगर हम यह तौर-तरीके अपनाते हैं तो मुझे लगता है हम काफी हद तक घरेलू हिंसा के मामलों में कमी कर सकते हैं।
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