Site icon Youth Ki Awaaz

पॉडकास्ट के क्षेत्र में रोज़गार की संभावनाएं

mic recording for podcast

शास्त्रों के मुताबिक मनुष्य का वजूद ही उसकी इंद्रियों की वजह से कायम है। वह अपनी इंद्रियों का दास है। इंसान अपनी इन्द्रियों की सुनता और करता है।

इन्हीं की तृप्ति के लिए दुनिया का हर अच्छा व बुरा काम किया जाता है। ध्वनि के ज़रिये दिमाग में विचारों और भावनाओं की गंगा बहाना ही कहानी सुनाने वाले का परम धर्म होता है।

पॉडकास्ट शब्द का इस्तेमाल पहली बार कब हुआ?

कुछ साल पहले शायद 2004 में बीबीसी के एक पत्रकार ने आई-पॉड और ब्रॉडकास्ट को जोड़कर ‘पॉडकास्ट’ नाम के शब्द का पहले इस्तेमाल किया। शायद उसका मानना यह रहा होगा कि रेडियो की जो जगह टीवी ने छीन ली थी, उसे स्टीव जॉब्स का यह नया उत्पाद फिर से हासिल कर पाएगा। उन्हें लगा होगा कि बात तो कहानी सुनने और सुनाने की है, जैसे नानी माँ सुनाया करती थी, हमने तो कभी उनसे कहानी दिखाने की ज़िद्द नहीं की।

90 के दशक के आखरी दौर में रंगोली और चित्रहार दोनों ही खूब चले दूरदर्शन पर। लोगों को उत्सुकता थी कि दूसरी इन्द्रिय को भी थोड़ा सुख भोगने दिया जाए। सिर्फ कान की एक तरफा तानाशाही थोड़ी चलने देंगे हम। सिनेमा घरों में जाकर कहानी को देखने वालों के लिए अब सिनेमा खुद घर चलकर आया था टीवी के रूप में लेकिन मज़ाल हो उसकी जो पूरी तरह से टेप रिकॉर्डर, रेडियो, रील वाली कैसेट और उसके अब्बाजान ग्रामोफोन को खत्म कर पाता।

पुराने ज़माने के कुछ मनोरंजक गाने

‘फूल और कांटे’ में जब अजय देवगन दो मोटर साईकलों पर पैर पसारकर कॉलेज आता था। घरों में सीटियां बजती थीं। शायद एक बार या दो बार, ज़्यादा से ज़्यादा तीन बार।

वहीं ‘मैंने प्यार तुम्ही से किया है.. मैंने दिल भी तुम्ही को दिया है…’ लाखों बार सुनाई पड़ते थे, कॉलेज के हॉस्टलों में, नाई की दुकानों पर, ढाबों में, ट्रकों और बसों के केबिन में, हर जगह। तब कानों में हेडफोन लगाने का रिवाज़ नहीं था। अब है लेकिन माध्यम वही है, सुनना और सुनाना।

पॉडकास्ट और आज का ज़माना

पॉडकास्ट आज के वक्त की वही ज़रूरत है, जो भीड़भाड़ और रोज़मर्रा की धमाचौकड़ी के बीच दिमाग को हल्का-फुल्का आनंद देती है। क्या करना है, काम करते रहो अपना, सुनते रहो गाने, कहानियां और एपिसोड्स। मुंशी प्रेमचंद से लेकर रसोड़े वाली आंटी तक कr कहानी, रात को पैरों में घुंगरू बांधkj नाचती चुड़ैल हो या रंगून से आने वाले खतों को हर दिन पढ़कर सुनाती माशूका, सब मिलेगा।

वह भी पिताजी की डांट के बगैर कि टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल को घूरते मत बैठो, आंखें खराब हो जाएंगी। और तो और, अब हेडफोन भी हैं हमारे पास। पिताजी कभी नहीं जान पाएंगे कि कौन सी मधुर आवाज़ में किस तरह की कहानी का आनंद लिया जा रहा है। है ना, मज़ेदार!

ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि पॉडकास्ट सिर्फ मनोरंजन देता है, कई उभरते और उभरना चाहने वाले कथा शिल्पियों को रोज़गार भी देता है। प्रख्यात बिज़नेस मैगज़ीन फोर्ब्स के एक सर्वे के मुताबिक, 2019 में पॉडकास्ट से आयात होने वाली विज्ञापन निधि (ऑड-रेवेन्यू) लगभग 708 मिलियन डॉलर की है।

कंपनियां जानती हैं कि यह माध्यम ही भविष्य है, जो इस पर अपने प्रचार के लिए पैसे लगा रही हैं। यद्यपि टीवी के ऑड रेवेन्यू से यह राशि कम है लेकिन प्रोडक्शन की लागत टीवी से काफी कम होने के बावजूद यह टीवी से अच्छा मनोरंजन दे पाता है।

यह केवल स्टोरी टेलर ही नहीं, बल्कि एक बड़े वर्टिकल को जिसमें कि माइक बनाने वाली कंपनी, अच्छे रिकॉर्डिंग स्टूडियो, साउंड एडिटर्स, पॉडकास्ट एप्लिकेशन बनाने वाली कंपनियों को भी अच्छी-खासी कमाई का स्रोत दे रहा है।

पॉडकास्ट का उपयोग और मनोरंजन का विस्तृत क्षेत्र

खैर, डेटा पर और नहीं लिखेंगे, डेटा और टेक्निकल चीज़ें नीरस लगती हैं। वह तो बस इस निबंध में थोड़ा वजन डालने के लिए मजबूरी में लिखना पड़ा। हम आते हैं पॉडकास्ट की उपादेयता की तरफ। हर किसी के पास मोबाइल फोन और इंटरनेट के आ जाने से इस चीज़ का मार्केट बहुत बढ़ चुका है।

दिनभर खेत जोतता एक किसान भी कानों में हेडफोन लगाकर शायद मोदी जी की नए कृषि पॉलिसी के ऊपर कोई ‘मन की बात’ सुन रहा होगा, जिसे पॉडकास्ट का एक उत्कृष्ट उदाहरण मान सकते हैं।

बहुत से यूट्यूबर भी आजकल अपनी स्क्रीन पर स्टिल पिक्चर लगाकर पॉडकास्ट को ही वीडियो बनाकक डाल रहे हैं। लोगों को पसंद भी आ रहा है। ऑडिबल जैसे एप्लीकेशन पॉडकास्ट पर कहानियां तो सुना ही रहे हैं, साथ ही साथ पूरी किताब को भी ऑडियो बुक की तरह रिकॉर्ड करके अपलोड कर रहे हैं, जिसको हज़ार पन्ने पढ़ने की फुरसत ना हो, वह रोज ऑफिस जाते-जाते हज़ार पन्ने सुन ही ले।

इन्फॉर्मेशन और कम्युनिकेशन की जो आंधी भारत में आई हुई है, उसके चलते पॉडकास्ट का भविष्य उज्ज्वल है और कहानी सुनाने वाले और सुनने वाले दोनों का भविष्य सुनहरा है। जिसके पास इंटरनेट और मोबाइल है, वह यह कर सकता है, जटिल रेडियो तरंगें, ट्रांसमीटर, रेस्पॉन्डर जैसी एलियन वाली चीज़ों की जानकारी की कोई अवश्यकता नहीं है।

वैसे नेटफ्लिक्स की दीवानी जनता भी है लेकिन नेटफ्लिक्स को म्यूट करके देख सकता है क्या कोई? याद है ना, नानी माँ कहानी सुनाया करती थी, दिखाया थोड़ी करती थी।

Exit mobile version