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जानिए छत्तीसगढ़ी आदिवासी कैसे करते हैं मोखरा पौधे का उपयोग

नोट- यह आर्टिकल केवल जानकारी के लिए है, यह किसी भी प्रकार का उपचार सुझाने की कोशिश नहीं है। यह आदिवासियों की पारंपारिक वनस्पति पर आधारित अनुभव है। कृपया आप इसका इस्तेमाल किसी डॉक्टर को पूछे बगैर ना करें। इस दवाई का सेवन करने के परिणाम के लिए Adivasi Lives Matter किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी नहीं लेता है।


यह एक सामान्य तथ्य है कि आदिवासी लोगों ने ऐसी जीवन शैली तैयार की है, जिसमें वह अपने पर्यावरण के साथ घनिष्ठ तालमेल रखकर रहते हैं। ग्राम वासियों को अपने आसपास के पौधों और वनस्पतियों का अच्छा ज्ञान रहता है। ऐसे ही एक निवासी हैं छत्तीसगढ़ के ग्राम पंचायत बिंझरा के रहने वाले दिल हरण श्याम।

उनकी उम्र 32 वर्ष है और उनको स्थानीय पौधों के औषधीय गुणों का व्यापक ज्ञान है। उन्होंने हमें बताया की सबसे महत्वपूर्ण पौधों में से एक है है स्थानीय मोखरा, जो हृदय और गुर्दे की समस्याओं के लिए बहुत लाभकारी है।

यह पौधा गीले क्षेत्रों जैसे तालाबों, खेतों और झीलों के आसपास के जगह में पाया जाता है। स्थानीय छत्तीसगढ़ी भाषा में इसे मोखरा कहा जाता है और हिंदी में यह पौधा तालमखाना के नाम से जाना जाता है।

यह एक छोटा झाड़ी है जिसकी संरचना गेंदे के समान होती है; दोनों में छोटे और लंबे पत्ते होते हैं हालांकि मोखरा पौधे में छोटे कांटे होते हैं, जो गेंदा में नहीं होते। प्राचीन काल से ही तालमखाना का प्रयोग औषधि के रूप में किया जा रहा है। तालमखाना के बीज के गुण अनगिनत हैं और बीमारी से राहत देते हैं। तालमखाना या मोखरा को कई और नामों से जाना जाता है, जैसे की कोकिलाआंख, गोकुल कांटा, ऊंट कटरु, इत्यादि।

तालमखाना या मोखरा का उपयोग कैसे करें

तालमखाना, मोखरा पौधा।

सबसे पहले मोखरा पौधे की पत्तियों को तोड़ कर अलग कर लेंगे।  फिर उन पत्तों को साफ़ पानी से धो लेंगे। धोने के बाद पत्तियों को चिकना पीस लेंगे और एक पात्र में इकट्ठा कर देंगे ।  इसमें थोड़ा पानी डालकर पत्तीयों का रस बाहर निकाल देंगे।

इस रस में बहुत औषदीय गुण हैं और सुबह शाम खाली पेट में उस रस का सेवन करने से शरीर का दर्द कम होता है। ऐसा माना जाता है की दिल और गुर्देमें की बीमारी को यह रस धीरे-धीरे कम करता है। इस औषधि का रोजाना उपयोग करने से शरीर का रोग दूर हो जाता है, ऐसे लोगों का मानना है।

इसके अलावा मौसमी खांसी को ठीक करने में भी पत्तियाँ फ़ायदेमंद हैं। पत्तीयों का चूर्ण बनाकर उसमें 1 से 2 चम्मच शहद मिलाकर इसका सेवन कर सकते हैं, जिससे खांसी धीरे-धीरे कम होने लगेगी।

अगर किसी कारण सांस लेने में परेशानी हो रही है या तकलीफ़ हो रही है तो तालमखाना या मोखरा का सेवन करने से लाभ मिलता है। तालमखाना या मोखरा के बीज का चूर्ण बनाकर शहद और घी के साथ मिलाकर सेवन करने से सांस लेने में जो तकलीफ़ हो रही है वह दूर हो जाती है।

तालमखाना, मोखरा पौधा।

इस औषधि-पौधे से किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता। आदिवासी क्षेत्र में मोखरा या तालमखाना की पत्तियों को सब्ज़ी के रूप में सेवन करते हैं जिससे गाँव के लोग स्वस्थ रहते हैं।

औषधीय गुणों वाले तालमखाना या मोखरा में बहुत सारे तत्व पाए जाते हैं, जो हमारे शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक होते हैं । तालमखाना में बहुत से औषधि गुण हैं जो पाचन क्रिया में भी लाभकारी होते है। क्या आपने कभी मोखरा का उपयोग किया है? आपको इससे क्या लाभ मिलें है?


नोट: यह लेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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