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कैसे कोरोना बिहार में टी.बी मरीज़ों की मुश्किलें बढ़ा सकता है

कोरोना एक नई महामारी है और टी.बी एक पुरानी महामारी, जिनका गहरा रिश्ता है। कोरोना की वजह से टी.बी की जांच पर काफी गहरा असर पड़ा है। लोग लॉकडाउन और कोरोना के डर से जांच कराने जा नहीं पा रहे थे। साथ ही टी.बी टेस्ट की मशीनें, जो टी.बी के टेस्ट के लिए ही कम पड़ रही थीं, अब कोरोना के टेस्ट के लिए भी इस्तेमाल हो रही हैं।

क्या कोरोना से संघर्ष करते हुए हम टी.बी से अपनी लड़ाई को भूल रहे हैं? टीबी से भारत में प्रतिदिन औसतन 1200 से अधिक लोग मरते हैं। जबकि यह बीमारी लाइलाज नहीं है। ज़रूरत है तो समय पर सही जांच और इलाज की लेकिन भारत में खासकर बिहार जैसे राज्यों में अक्सर सरकारी स्वास्थ्य क्षेत्रों में हर जगह उच्च गुणवत्ता की जांच उपलब्ध ना होने के कारण और निजी क्षेत्रों में गलत या देर से हुई जांच के कारण लोगों को सही समय पर टी.बी होने का पता नहीं चलता है।

इसलिए कई बार टी.बी एक गंभीर रूप धारण कर लेता है। ड्रग रेसिस्टेंट टी.बी, जिसका इलाज लंबा और कठिन है, जो बिना सही जांच और सही इलाज के जानलेवा भी हो सकता है।

बिहार उन राज्यों में से एक है, जहां ड्रग रेसिस्टेंट टी.बी के मामले ज़्यादा हैं। साथ ही बिहार में ड्रग रेसिस्टेंट टी.बी का टेस्ट, डीएसटी के लिए इस्तेमाल किए जाना वाले प्लेटफॉर्म, जीन एक्सपर्ट, लाइन प्रोब ऐसे और कन्वेंशनल डीएसटी – सिर्फ गिने-चुने ज़िले में उपलब्ध हैं।

ऐसे में बिहार के ज़्यादातर लोगों को जांच कराने के लिए दूर-दराज़ इलाकों से पटना या दरभंगा जैसे ज़िलों में जाना पड़ता है। कोरोना की वजह से लोगों का बाहर निकलना और सफर तय करना मुश्किल हो गया है, खासकर गरीब लोगों के लिए जिनके पास सफ़र तय करने का न साधन है न समय।   

ऐसे में ज़रूरी है कि राज्य सरकार हर ज़िले में टी.बी का सही परीक्षण, खासकर डी.एस.टी की सेवा उपलब्ध करवाए। अगर ऐसा ना हुआ तो बिहार राज्य की सामान्य और ड्रग सेंसिटिव टी.बी की समस्या काफी हद तक बढ़ सकती है। बिहार की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं कोरोना और टी.बी दोनों का भारी बोझ उठाने की हालत में नहीं है। इसलिए जल्द-से-जल्द सही कदम उठाना ज़रूरी है।

इसकी शुरुआत उन ज़िलों से हो, जहां टी.बी के मामले ज़्यादा होने के साथ-साथ जांच और इलाज की सुविधा कम है। अच्छी जांच और उच्च गुणवत्ता की देखभाल हर मरीज़ का बुनियादी अधिकार है। सही प्रकार की जांच नज़दीक ना मिलने से या विलंबित जांच मिलने से मरीज़ का इलाज और लंबा हो जाता है, जो तकलीफ बढ़ाता है। बहुत गंभीर मामलों में जान का भी खतरा है। साथ ही इससे टी.बी उनके समुदाय और परिवार में और भी फैलता है। 

बिहार राज्य ने टी.बी महामारी को 2024 तक हराने का प्रण लिया है। यह तभी संभव होगा जब टी.बी का इलाज हर ज़िले में उपलब्ध हो और हर मरीज़ को डीएसटी जैसी उम्दा जांच समय पर आसानी से और किफायती रूप में मिले। जब तक बिहार के हर ज़िले में डीएसटी उपलब्ध नहीं होगा, तब तक बिहार की टीबी की समस्या से लड़ना बहुत कठिन होगा। टीबी को  हराना है तो याद रहे, सही जांच इस युद्ध का पहला कदम है।


लेखक गण- 1. डॉक्टर साकेत शर्मा, कंसलटेंट पुलमोनोलॉजिस्ट मेडिवेर्सल हॉस्पिटल, एक्स असिसटेंट प्रोफेसर आई जी आई एम ऐस, पटना

2. आशना अशेष, फेलो, सर्वाइवर्स अगेन्सट टीबी, एम डी आर टीबी सर्वाइवर, पब्लिक हेल्थ प्रोफेशनल

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