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“महागठबंधन की सरकार नहीं बनी मगर तेजस्वी ने अपनी नेतृत्व क्षमता को साबित कर दिया”

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। 243 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में सरकार बनाने के लिए 122 सीटों की बहुमत ज़रूरी थीं। जबकि एनडीए ने 125 सीटें जीतकर बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है।

एनडीए को कांटे की टक्कर देने वाला महागठबंधन बहुमत के आंकड़े से थोड़ा पीछे रह गया। महागठबंधन को 110 सीटें हासिल हुई हैं।

जहां एनडीए की तरफ से नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी नेतृत्व कर रहे थे, तो दूसरी तरफ 31 वर्षीय तेजस्वी यादव जो लालू यादव की राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं। इस चुनाव में वो महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे थे। तेजस्वी यादव ने अपने दम पर जिस प्रकार से चुनाव में एजेंडा तय करके एनडीए को अपने एजेंडे पर बात करने के लिए मजबूर कर दिया, यह एक बहुत बड़ी कामयाबी मानी जाएगी।

भले कांटे की इस लड़ाई में महागठबंधन बहुमत के आंकड़ों से चुक गया हो लेकिन इस चुनाव के नतीजों ने उन लोगों के सवालों का जवाब दे दिया है, जो लगातार तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर सवाल कर रहे थे।

एनडीए में जेडीयू और बीजेपी के अलावा हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) हैं। महागठबंधन में आरजेडी, काँग्रेस और तीन वामपंथी पार्टियां कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) यानि सीपीएम और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सवादी लेनिनवादी (लिबरेशन) हैं।

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एनीडीए ने मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर मौजूदा सीएम नीतीश कुमार को ही पेश किया, तो महागठबंधन की ओर से 31 साल के तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे।

जहां तक तेजस्वी यादव की बात की जाए तो विधानसभा चुनाव के ऐलान होने तक सभी ओपिनियन पोल्स के सर्वे के अनुसार एनडीए बहुत आसानी सरकार बनाती दिखाई दे रही थी। जबकि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में बहुत उपर दिखाया जा रहा था लेकिन चुनाव आते-आते माहौल बिल्कुल बदल चुका था।

वहीं, 31 वर्षिय तेजस्वी यादव का मुकाबला करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित भाजपा के कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ केंद्रीय मंत्रियों की पूरी टीम बिहार में कैंप कर रही थी। जहां महागठबंधन से दो हेलिकॉप्टर उड़ रहे थे, तो उसके जवाब में एनडीए के 25 हेलिकॉप्टर उड़ रहे थे।

बात चुनाव परिणाम की

31 वर्षिय तेजस्वी यादव ने एनडीए को कड़ी टक्कर देने का काम किया और एनडीए को बहुमत प्राप्त होने में भाजपा और अन्य सहयोगी दलों का बेहतर प्रदर्शन रहा। जबकि नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का प्रदर्शन कोई खास नहीं था। 2015 विधानसभा चुनाव में 101 सीट लड़कर 71 सीट जीतने वाली पार्टी जदयू इस बार 115 सीटों पर लड़कर केवल 43 सीट जीतने में कामयाब हो पाई।

एनडीए के दो छोटे सहयोगी, जो चुनाव से पहले तक महागठबंधन का हिस्सा थे, जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और  मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) जो चुनाव से तुरंत पहले महागठबंधन में सम्मानजनक सीट ना मिलने की बात कहकर एनडीए में शामिल हो गए।

चुनावी नतीजों में दोनों दलों को 4-4 सीटों पर कामयाबी मिली। एनडीए के लिए ये 8 सीटें बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि अगर इन 8 सीटों को एनडीए से अलग कर देते हैं तो फिर एनडीए आंकड़ों से चुक जाएगी।

तेजस्वी यादव ने पूरे चुनाव प्रचार अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार द्वारा कही गई किसी भी बात पर कटाक्ष ना करते हुए अपने ज़ुबान से किसी के प्रति अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया। अगर इस मामले पर आप ध्यान देंगे तो आप समझ सकते हैं कि तेजस्वी यादव राजनीतिक तौर पर कितने परिपक्व हो चुके हैं और नेतृत्व क्षमता को लेकर अब तेजस्वी को किसी के सवालों का जवाब देने की आवश्यकता भविष्य में नहीं पड़ेगी।

कुल मिलाकर तेजस्वी यादव को लेकर एनडीए द्वारा लगातार 15 वर्ष पहले के लालू-राबड़ी शासन के उपर तथाकथित जंगल राज का आरोप भी लगाया जाता रहा। लगातार एनडीए द्वारा लालू यादव पर हमला होता रहा। इन सारी चुनौतियों के बावजूद तेजस्वी यादव ने अपनी नेतृत्व क्षमता को साबित करने का काम किया है।

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