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“डियर सोसायटी, मैं ‘सो कॉल्ड संस्कारी’ नहीं हूं, कोई दिक्कत?”

समाज में ऐसा कहा जाता है कि एक लड़का और लड़की दोस्त नहीं हो सकते और एक लड़की एक दूसरी लड़की की दोस्त नहीं हो सकती है, क्योंकि लड़कियां बुराई किया करती हैं। सोसायटी के इतने ज़्यादा कायदे कानून हैं कि सांस लेना भी आफत लगता है।

भला, दोस्ती के रिश्ते को भी नमक-मिर्च लगाना कहां तक तर्क संगत है? हमारी सोसाइटी में बसने वाले लोग ‘संस्कार’ नामक चादर को ऐसे ओढ़ते है, जैसे संस्कार और सोसाइटी ने गठबंधन किया हो।

मैं स्वयं को संस्कारी नहीं मानती

मैं कभी इस सोसायटी में खुद को फिट नहीं मानती हूं, क्योंकि सोसायटी के नज़र में मैं एक संस्कारी लड़की नहीं हूं। मैं एक ऐसी लड़की हूं, जिसके दोस्तों की संख्या में केवल लड़के हैं। लड़कियों से दोस्ती है मगर मर्यादा तक, क्योंकि लड़कों के साथ मस्ती करना और घुमक्कड़ी करना मुझे ज़्यादा पसंद है। वहीं, लड़कों से दोस्ती सभी सीमाओं से परे है और ये सीमाएं भी मैं खुद निर्धारित करती हूं।

सच कहूं तो मुझे समझ ही नहीं आता है कि सोसाइटी की आंटियों और अंकल को क्या कीड़ा होता है कि वे जब भी मुझे लड़कों के साथ देखते हैं, घर पर अपनी हाज़िरी लगाने चले आते हैं। कोई बात नहीं, मैं उनका भी सम्मान करती हूं क्योंकि वे मुझे अतिथि देवो भव: सिखाते हैं।

आज भी याद है वह दिन

मैं अपने दोस्तों के साथ छुट्टियों पर हैंगआउट करने निकलती हूं। कभी-कभी तो हमलोग ऐसे ही हाईवे पर गाड़ी दौड़ाने निकल जाते हैं। किसी का मन हुआ, बस निकल पड़े। उस वक्त भी लोग हमें देखते हैं, जैसे हमने कोई गुनाह किया हो। आज भी वह दिन याद है, जिस दिन मेरा मूड ऑफ था और घर में मन बिल्कुल भी नहीं लग रहा था। तभी मेरे फोन की रिंगटोन बजी। उधर से आवाज़ आई, “बाहर निकल, हाईवे पर घूमने का प्रोग्राम है।” मैं बाहर गई तो देखा मेरा दोस्त बाईक के साथ खड़ा है।

अंधेरा काफी हो गया था मगर जब मन की करनी होती है, तब अंधेरे या उजाले की परवाह नहीं होती है। असलियत यही है कि हमलोग जिस सोसाइटी में रहते हैं, वहां लड़कियां अगर शाम में भी किसी लड़कों के साथ दिख जाती हैं, तो माहौल को गर्म और चुटिला बनाने में आसपास के लोग कमी नहीं करते हैं। खैर, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। हमलोग घुमने निकल गए।

सच कहूं तो दोस्तों के साथ जितना खुलापन और आज़ादी मिलती है, यह कहीं नहीं मिल सकती है। साथ एक स्वछंदता महसूस होती है। एक कॉनफिडेंस फिल होता है, जो केवल मुझे अपने मेल फ्रेंड्स के साथ महसूस होता है।

दोस्त देते हैं साथ

हकीकत यही है कि जब कभी मुझे परेशानी होती है तो मेरे दोस्त ही मेरे साथ खड़े रहते हैं, क्योंकि उनके साथ मुझे किसी दायरे की फिक्र नहीं होती है। ऐसी अनेक घटनाएं हैं, जब मेरे दोस्तों ने मेरा साथ दिया है। लड़का और लड़की बेशक एक बहुत अच्छे दोस्त होते हैं और लड़कों से दोस्ती करने में कोई गलत बात नहीं है।

मुझे ऐसा लगता है कि पुरुषों और महिलाओं के बीच दोस्ती एक बेहद खूबसूरत रिश्ता है। महिलाएं अपनी परेशानियां जब पुरुषों से साझा करती हैं, उस वक्त उन्हें इमोशनली ज़्यादा अच्छा महसूस होता है। साथ ही पुरुष भी महिलाओं की परेशानियों और उनके मूड को समझने ही हर संभव कोशिश करते हैं।

कुछ महिलाओं को महिलाओं की उपेक्षा पुरुषों से दोस्ती करना ज़्यादा भाता है। इसमें हॉर्मोनल और इमोशनल जुड़ाव शामिल होता है। मुझे लगता है कि समाज के संस्कारी ठप्पों से आप खुश नहीं रह सकती हैं, इसलिए ज़िंदगी अपने शर्तों पर जीनी चाहिए। लड़कों से दोस्ती कोई गुनाह नहीं है।

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