ज़िन्दगी चुनौतियों से भरी एक राह है। मंज़िल को पाना एक आसान काम नहीं है, बहुत कठिन है। डगमगाते हुए कदमों से कुछ लोग हालातों का सामना करते हुए मज़बूती सी आगे बढ़ जाते हैं। वहीं, कुछ लोग थककर वापस मुड़ जाते हैं। कई बार ज़िन्दगी को जीने का नज़रिया हमको पीछे की ओर धकेल देता है। बहरहाल, कोई भी इंसान खुद को पीछे की ओर नहीं ले जाना चाहेगा मगर हालात ऐसे हो जाते हैं कि चाहते हुए भी हम अपनी ज़िंदगी में आगे नहीं बढ़ पाते।
मैंने बचपन से डॉक्टर बनने का सपना देखा था। कुछ परिस्थितियों की वजह से मुझे अन्य विकल्पों को तरफ रुख करना पड़ा। लेखन कार्य के लिए उस समय बहुत कच्चा समझता था खुद को। शायद मेरे राब्ता YKA की टीम से नहीं हुआ था। इसके अलावा मुझे टीचिंग में खास इंटरेस्ट था।
तो मैंने टीचिंग करने के लिए B. Ed कर लिया। इसके बाद फिर CTET आ गया, जिसको क्लियर करना ज़रूरी हो गया थाय़ मतलब इसमें पास होने पर ही आपको टीचर बनने दिया जाएगा। मैंने उस परीक्षा को भी पास कर लिया। जैसे-तैसे मैं उस मुकाम पर आ गया। जहां टीचर के लिए जितनी भी क्वालिफिकेशन्स थीं, मैं सभी के लिए योग्य था।
प्रोफेशनल स्टडी के बाद सभी जॉब की तलाश में जुट जाते हैं। आजकल तो वैसे भी जॉब मिलना बहुत कठिन हो गया है। 6 महीने तक हाथ-पैर मारने के बाद मुझे कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर दिल्ली सरकार के स्कूल में काम करने का मौका मिला। यह जॉब ऐसी थी कि सरकार द्वारा घोषित छुट्टियों के पैसे तो कटेंगे ही कटेंगे साथ के साथ संडे के भी पैसे काटे जाएंगे। मैंने स्कूल को अपने 5 साल दिए।
सैलरी बहुत कम थी मगर मुझे कोई ऐतराज़ नहीं था। फिर मैं साथी NGO से ही 2012 से जुड़ा हुआ था। वहां मुझे यूथ डेवेलपमेंट को-ऑर्डिनेटर के पद पर काम मिला, जो एक पार्ट टाइम जॉब है। इसके साथ मैं अभी भी जुड़ा हुआ हूं, जहां मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता की तरह काम करता हूं। यहां से मुझे फिलहाल कोई पैसों की सहायता नहीं मिलती। यहां यही सोचकर काम करता हूं कि पैसा सब कुछ नहीं है। लोगों के लिए काम करना भी अपने आप में एक सुकून दे जाता है।
वर्ष 2018 में मैंने सैलरी के लिए कॉन्ट्रैक्ट वाली जॉब छोड़कर दूसरे स्कूलों में ट्राय किया। जान-पहचान के लोगों से जॉब के लिए बोला। इसमें से एक स्कूल मैनेजमेंट ने मुस्लिम शिक्षक को रखने के लिए साफ मना कर दिया। मैं तो बस इंटरव्यू देने की तैयारी में था। स्कूल ने मुझे चयन प्रक्रिया में चुन लिया था।
इसके बाद इंटरव्यू होना था। जिनके साथ इंटरव्यू की डेट फिक्स हुई, उन्होंने साफतौर पर मुस्लिम कैंडिडेट को जॉब देने के लिए नवीन सर को मना कर दिया। नवीन सर ने मेरे जानकार को फोन के ज़रिये सारी बातें बताईं और कहा इमरान को हम नौकरी नहीं दे सकते हैं। यहां धर्म की बात आड़े आ रही है। विद्या के मंदिर में यह कौन निर्धारित करता है कि धर्म को महत्व दें और इंसानियत को भूल जाएं?
यह स्कूल बहुत ही मशहूर है। मयुर विहार फेज़-1 के चिल्ला में स्थित यह स्कूल वास्तव में कट्टरपंथी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए जाना जा रहा है। मेरा विचार यही था कि जब आप मुस्लिम शिक्षक नहीं रख सकते तो आप मुस्लिम बच्चों को भी मत पढ़ाइए मगर ऐसा कैसे हो सकता है? उन बच्चों से तो उनको मोटी रकम मिलती है।
यहां इंसान की काबिलियत को ताक पर रखकर, धर्म और जाति का वह दीपक जलाया जाता है, जिसमें सिर्फ और सिर्फ नफरत की आग जलती हो। मैं बहुत आहत हुआ, मुझे बहुत दुख हुआ। मुझे उस स्कूल में काम तो नहीं मिला मगर अन्य स्कूल में मैंने 2018 से मार्च 2020 तक काम किया। इसके बाद उन्होंने कोरोना काल में सभी टीचर्स को स्कूल से निकाल दिया गया।
बहरहाल, मैं उस दिन के इंतज़ार में हूं जहां धर्म और जाति की कोई बात ना हो। सिर्फ काबिलियत और इंसानियत का समुंदर हो।