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कोविड-19 के दौरान आखिर क्यों महिलाओं के खिलाफ बढ़ रही हैं हिंसात्मक घटनाएं?

women domestic abuse

राजनीति के क्षेत्र में आयरन लेडी के रूप में विख्यात इंदिरा गाँधी, अंतरिक्ष में भारत का परचम लहराने वाली कल्पना चावला, स्पोर्ट्स में तहलका मचाने वाली मैरी कॉम, पी.वी.सिंधु एवं व्यापारिक क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने वाली पेप्सी की सीईओ इंद्रा नूई सरीखी महिलाओं ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई ख्याति दिलाई है।

वहीं, आज भारतीय महिलाएं लगभग हर क्षेत्र में पुरुषों से प्रतिस्पर्धा करती हुई नित नए कीर्तिमान बना रही हैं लेकिन इन उपलब्धियों के बावजूद नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की वार्षिक रिपोर्ट-2019 के आंकड़े भारत में महिला उत्पीड़न की भयावह स्थिति बयान करते हैं।

महिला उत्पीड़न पर क्या कहते हैं आंकड़े?

इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2019 में महिला उत्पीड़न को लेकर कुल 405861 आपराधिक मामले रिपोर्ट हुए हैं, जिनमें से सर्वाधिक लगभग 31% मामले घरेलू हिंसा के, 21.8% मामले शील भंग के एवं 9% मामले अपहरण के दर्ज़ हुए।

इस रिपोर्ट में महिला उत्पीड़न के मामलों में विगत वर्ष की तुलना में 7.8% वृद्धि होना भी इंगित किया गया है। इससे स्पष्ट है कि घरेलू हिंसा की खबरें हमेशा से आती रही हैं लेकिन लॉकडाउन में ऐसे मामलों में उछाल आया है।

राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी लॉकडाउन के दौरान शिकायतों में इज़ाफ़ा दर्ज़ किया है। इसके लिए महिला आयोग ने व्हाट्सएप्प हेल्पलाइन नंबर शुरू किया।

एक रिपोर्ट के अनुसार, 23 मार्च से लेकर 16 अप्रैल के बीच अर्थात लॉकडाउन के शुरुआती तीन हफ्ते में महिला आयोग में घरेलू हिंसा के 239 मामले दर्ज़ किए गए थे। ये उन 123 मामलों की तुलना में कहीं ज्यादा हैं, जो लॉकडाउन शुरू होने से पहले उस महीने में आए थे।

घरेलू हिंसा के कारण

महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा का मुख्य कारण मूर्खतापूर्ण मानसिकता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में शारीरिक और भावनात्मक रूप से कमज़ोर होती हैं।

समाधान

लॉकडाउन में लोगों को एक जगह ही रहने की बाध्यता के कारण वे 24 घंटे एक-दूसरे के साथ रहे हैं। ऐसे में मतभेद रखने वाले दम्पत्तियों में मनभेद बढ़ना स्वाभिक है।

यह सही है कि हर बात में परिवार के सभी सदस्यों की मानसिकता एक जैसी नहीं होती है लेकिन ऐसे में अगर कोई असहमति जताए तो इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि उससे मारपीट की जाए, बल्कि ऐसे वक्त में जब पति-पत्नी को साथ रहने का इतना मौका मिला है, तो उन्हें समझदारी से रहना चाहिए।

पुरुषों को भी घर के काम में महिलाओं का हाथ बटाना चाहिए तथा इस अवसर को पुराने गिले-शिकवों को दूर करने के प्रयास के तौर पर इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि बुरा वक्त आसानी से गुज़र जाए और आपस मे प्रेम-भाव पुनर्जीवित हो जाए।

निष्कर्ष

यदि हम सही मायनों में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को खत्म करना चाहते हैं, तो वक्त आ चुका है कि हमें एक राष्ट्र के रूप में सामूहिक तौर पर इस विषय पर खुलकर चर्चा करनी चाहिए।

एक अच्छा तरीका यह हो सकता है कि हम राष्ट्रव्यापी, अनवरत तथा समृद्ध सामाजिक अभियान की शुरुआत करें तथा महिलाओं के बारे में उन्हें कमतर आंकने सम्बंधित विचारों में बदलाव लाकर उन्हें पुरुषों के समान आदर एवं अधिकार देने की सामूहिक मुहिम चलाकर महिलाओं के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करें।

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