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“भारतीय संविधान महज़ एक किताब नहीं, यह आम हिंदुस्तानियों की ताकत है”

Indian Constitution

देश का बंटवारा सन 1947 में हो चुका था। लोग घबराए हुए थे। भाषाई आधार पर लोग डरे हुए थे, धार्मिक आधार पर भेदभाव का भय भी लोगों को डरा रहा था। क्योंकि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के बनने का यही धार्मिक आधार था। ऐसे में इन सभी प्रकार के भय को निकालने का एकमात्र रास्ता था भारत का संविधान।

जिसे बनाने के बाद लागू करने से पहले 2000 बार संशोधित किया गया। ताकि प्रत्येक वर्ग के हितों की रक्षा की जा सके, पंक्ति में बैठे आखरी व्यक्ति को इस संविधान में अपने हक उभरे हुए दिखाई दे। यह महज़ एक किताब की शक्ल लेकर न रह जाए।

परिणाम स्वरूप 2 साल 11 महीने 18 दिन की मेहनत के बाद 232 पृष्ठ का संविधान हमारे समक्ष था। महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों, आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों से लेकर एक आम हिंदुस्तानी को उसके अधिकार और कर्तव्य बताने वाली किताब को संविधान कहा गया।

अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, रूस, आयरलैंड, साउथ अफ्रीका इत्यादि देशों के संविधानों का सालों साल अध्ययन करके भारतीय संविधान को गढ़ा गया। एक बच्चे के जन्म से लेकर किसी बुज़ुर्ग की मौत तक उनके अधिकारों की रक्षा करना संविधान में सुनिश्चित किया गया। 

एक ओर जहां संविधान की प्रस्तावना भारत की संस्कृति को बखूबी बताती है तो दूसरी ओर संविधान में  नागरिकों को प्रदान किए गए मौलिक अधिकार नागरिकों को मानाधिकार के साथ जीने के अधिकार प्रदान करते हैं।

हमारी न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका की यह ज़िम्मेदारी है कि वह संविधान के प्रति ईमानदार  रहें। संविधान के प्रति ईमानदारी उस समाज और नागरिकों के प्रति जवाबदेही को तय करती है। संविधान सभा के अध्यक्ष बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने कहा था,

यदि संविधान सभा द्वारा बनाया गया भारतीय संविधान शोषित और पिछड़ों को न्याय एवं प्रतिनिधित्व दिलाने में असक्षम साबित होता है, तो वह इस संविधान को जलाने वाले पहले व्यक्ति होंगे।

बाबा साहब भीमराव अंबेडकर द्वारा कही गई यह बात यह साबित करने के लिए काफी है कि संविधान को बनाने के पीछे दबे कुचले समाज को न्याय दिलाना एवं उनका विकास करना इसका मूलभूत कर्तव्य था।

न्यायपालिका हस्तक्षेप करके संविधान में हुए संशोधनों को खारिज भी कर सकती है

भारतीय संविधान की एक खास बात यह है कि इसे समय-समय पर आवश्यकता अनुसार बदला जा सकता है। अर्थात इसमें संशोधन किए जा सकते हैं परंतु कभी कभार यह संशोधन किसी खास मकसद से किए जाते हैं। जिसमें राजनैतिक लालसाएं होती हैं।

मसलन आपातकाल के कदमों को भारतीय राजनीति का स्थायी अंग बनाने के लिए श्रीमती गांधी की सरकार ने नवंबर, 1976 में संविधान का 42वां संशोधन मंज़ूर किया, जिसने इस किताब की शक्ल बदल दी। 

एक प्रेस कानून भी पास हुआ जो अखबारों को दंडित करने का स्थायी अधिकार सरकार को देता है। ऐसे समय पर न्यायपालिका हस्तक्षेप करके उन संशोधनों को खारिज भी कर भी कर देती है और न्याय को सुनिश्चित करती है।

संविधान शब्द मेरे कानों में बहुत बचपन में पड़ा था। तब न तो इसका मतलब पता था और न ही इसका महत्व। जैसे-जैसे बड़ा हुआ तो मैंने संविधान की प्रस्तावना को अपने स्कूल की डायरी के पहले पन्ने पर लिखा पाया। प्रस्तावना के भारी भरकम शब्द तब कम समझ आते थे।

यह सीखने की प्रक्रिया निरंतर चलती रही और मैं विश्वविद्यालय आ गया। विश्वविद्यालय आने के बाद मुझे सही मायनों में यह पता चला कि धर्मनिरपेक्षता क्या होती है। विश्वविद्यालय आने के बाद मुझे सही मायनों में यह पता चला कि गणतंत्र का मतलब क्या होता है। 

समानता के सही मायने बताता है संविधान

जिन शब्दों का उल्लेख संविधान के शुरुआती पन्ने में है, उन शब्दों को मैंने 18 साल की उम्र में समझना शुरू कर रहा था। यह मेरे लिए बिल्कुल नया अनुभव था। मैंने धीरे-धीरे संविधान के महत्व को समझा, इसके द्वारा प्रदान किए गए अधिकारों को समझता गया।

साथ ही अपने कर्तव्यों के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करके मैंने निश्चय किया कि मैं अपने संविधान का सम्मान करूंगा। संविधान को लेजर मिला ज्ञान न केवल अपने तक रखूंगा बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी उससे अवगत करवाऊंगा। वर्तमान समय में संविधान की प्रासंगिकता संविधान जब से देश में लागू हुआ तब से ही प्रासंगिक है परंतु वर्तमान समय में संविधान की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ गई है। 

मौजूदा समय में आए दिन लोग संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का हवाला देते हैं। कभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चर्चा होने लगती है तो कभी नागरिकता को लेकर पूरे देश में एक बहस छिड़ जाती है। फिर ज़िक्र आता है संविधान का।

हाल ही में नागरिकता संशोधन कानून के लागू होने पर पूरे देश में इस कानून के खिलाफ आक्रोश भर गया और जनमानस ने इसे संविधान विरोधी कानून बता दिया। ऐसी स्थिति बनी कि पूरे देश में प्रदर्शन होने लगे और प्रदर्शन करते वक्त भी लोगों ने संविधान का हवाला दिया और कहा कि संविधान हमें शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार देता है। 

महिलाएं, बच्चे, बुज़ुर्ग सब सड़कों पर बैठ गए और लबों पर ज़िक्र संविधान का था। लोगों ने सत्ता के विरोध में एक स्वर में नारे लगाए और इसे भी संविधान द्वारा दिया गया अधिकार बताया। ऐसे वक्त में जब पूरे देश में संविधान की चर्चा हो रही थी तब मैंने देखा कि संविधान को लेकर बहुत सारे लोगों के मन में बहुत अधिक भ्रांतियां हैं।

मसलन लोग विरोध प्रदर्शन करने को गलत समझते हैं बल्कि विरोध प्रदर्शन एक लोकतांत्रिक देश के लिए बेहद आवश्यक हैं। लोग सरकार की नीतियों के विरोध में बात करना को गलत समझते हैं बल्कि यह भी बहुत सामान्य सी बात है। 

लोगों को संविधान के बारे में जानकारी देने का मेरा निर्णय

मैंने यह निर्णय लिया कि मैं अपने सोशल एक्शन प्रोजेक्ट के तौर पर लोगों को संविधान के बारे में जानकारी दूंगा उनको संविधान की छोटी-छोटी मगर ज़रूरी बातों से अवगत कराऊंगा। अंत में निष्कर्ष रूप से यह कहना चाहता हूं की भारतीय संविधान हिंदुस्तान के एक आम नागरिक को दिया गया तोहफा है। यह देश इसी किताब से चलता है और संविधान पर विश्वास ही एक आम नागरिक को सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार देता है। 

सोशल एक्शन प्रोजेक्ट संविधान के बारे में आम जनमानस को कम जानकारी होने के कारण मैंने सोशल एक्शन प्रोजेक्ट के तौर पर संविधान के बारे में जागरूकता फैलाने का ज़िम्मा उठाया। मैंने आम जनमानस को जागरूक करने के लिए इंस्टाग्राम के प्लेटफार्म का उपयोग किया। जिसमें “जानो संविधान” नाम से मैंने एक प्रोजेक्ट चलाया जिसके अंतर्गत हमने संविधान की मूलभूत बातों का ज़िक्र किया और लोगों को जागरूक किया। 

इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स से लेकर ट्रांसजेंडर एक्ट को हमने अपनी चर्चा का हिस्सा बनाया। मौलिक अधिकारों से लोगों को अवगत कराया और क्विज़ के माध्यम से लोगों से सवाल भी पूछे। इस तरह से मैंने जानो संविधान के माध्यम से लोगों को संविधान के प्रति जागरूक करने की एक कोशिश की। जानो संविधान पेज पर जाने के लिए लिंक पर क्लिक करें।

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