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“क्या अंतरराष्ट्रीय भाषाओं के कारण हिंदी भाषा दम तोड़ रही है?”

हिंदी भाषा का अपना एक महत्वपूर्ण इतिहास है। भारत कि राजभाषा के रूप में निर्धारित हिंदी, इस समय इस हालत में है जिसको हम कह सकते हैं अपने आख़िरी पड़ाव पर है। हिंदी का इतिहास कोई बहुत नया नहीं है। एक छनी हुई भाषा है।

हिंदी का विकास क्रम- संस्कृत→ पालि→ प्राकृत→अपभ्रंश→अवहट्ट→प्राचीन या प्रारम्भिक हिंदी। हिंदी के साहित्य में ऐसी बहुत सी जानकारियां मिलती हैं जो हिंदी के प्रभावशाली होने का सुबूत देती हैं। हिंदी भारत कि शान है और देश की 57% जनसंख्या हिंदी भाषा बोलती है।

हिंदी को आजकल लोग पिछड़ी जाति कि भाषा बोलते हैं। कहीं भी जाएं आपकी काबिलियत और आपकी प्रतिभा को काफी पीछे छोड़ दिया जाता है अगर आपको अंग्रेज़ी नहीं आती। एक सर्वे के अनुसार वर्ष 2020 में जितने भी परीक्षार्थी सिविल सेवा में उत्तीर्ण हुए सभी के सभी अंग्रेजी माध्यम से थे।

अगर आपको इंग्लिश नहीं आती तो आप गवार हैं, अशिक्षित हैं वाली धारणा

तो क्या हिंदी विलुप्त होती जा रही है? हम मानते हैं अंग्रेजी भाषा अंतराष्ट्रीय भाषा है। यह पूरे विश्व में बोली और समझी जाती है। मगर भारत में तो हिंदी को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। आजकल मैंने यही देखा है किसी भी मीटिंग में जाओ, कहीं रेस्टोरेंट हो या कोई अन्य कार्यक्रम वहां अगर आपने हिंदी बोल दी तो आपको दोयम दर्जे का माना जाता है। वहीं अगर आप अंग्रेजी में बात करेंगे तो आपको एक पढ़ा लिखा और इंटेलेक्चुअल समझा जाएगा।

अंग्रेजी भाषा का जुनून इस तरह से लोगों पर चढ़कर बोलता है कि अंग्रेजी में दी हुई गालियों को भी लोग बड़ी उत्सुकता से सुनते हैं और उसको सिर आंखों पर बैठाते हैं। कितनी हास्यस्पद बात है। विदेशी भाषा से इतना लगाव के अपने देश की संस्कृति और मूल्यों को ताक पर रख दिया जाता है। मुझे तो नहीं लगता कि ब्रिटिश शासन हमारे देश से पूरी तरह चला गया है, कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में वह आज भी मौजूद है।

मेरे अपने अनुभव और मेरी हिंदी भाषा

मैं पेशे से एक अध्यापक हूँ मैंने अंग्रेजी मीडियम कान्वेंट स्कूल से पढ़ाई कि है मगर मैंने हिंदी को दूसरी भाषा समझ कर नहीं पढ़ा। स्कूलिंग के समय मैंने हिंदी को हर पल मरते हुए देखा है अपनी आंखो के सामने मैंने हिंदी की हत्या होती देखी है। मेरी मातृभाषा की ऐसी हालत मेरे दिल को तोड़ देती थी।

मैं यही सवाल ख़ुद से करता हिंदी तो हमारी भाषा है हमारे देश की भाषा है फिर इसके साथ ऐसा अन्याय क्यों? हमारे स्कूल में हिंदी कि टीचर महीने में ब-मुश्किल 15 दिन ही आती होंगी क्लास लेने। मैनें दसवीं कक्षा में भी यही स्तिथि देखी। इस बात ने मुझे बहुत आघात पहुंचाया और मैंने फैसला लिया मैं हिंदी का अध्यापक और लेखक बनूंगा।

मेरा सपना डॉक्टर बनने का था। मगर मैं अपने वतन कि भाषा को ऐसे मरते हुए नहीं देख सकता। मैंने स्नातक में हिंदी साहित्य पढ़ा फिर उसका इतिहास इसके बाद मैंने हिंदी भाषा में ही एम.ए किया। इसके बाद शिक्षण के लिए मैंने शिक्षा में स्नातक किया जिसमें मैंने दो शैक्षिक विषयों को चुना एक हिंदी और सामाजिक विज्ञान। मैंने यह दोनों विषय चुने ताकि मैं बच्चों को देश के भविष्य में हिंदी के महत्वपूर्ण स्थान को उज्ज्वल कर सकूं।

हिंदी एक भाषा ही नहीं, बल्कि एक संस्कृति है

सामाजिक विज्ञान से मैंने हिंदी को जोड़ना चाहा और कई साल विद्यालय में पढा कर बच्चों के दिलों में हिंदी से प्रेम करने का बीज रोपित किया। जो बच्चे हिंदी को बोरिंग, और किसी काम का नहीं समझते थे उस दौरान जब मैं अध्यापन के क्षेत्र में था तो हर एक बच्चा दसवीं कक्षा तक का मेरा इंतेज़ार करता था और हिंदी में रूचि लेने लग जाते। इसका अंदाज़ा हम उनके अंको से लगा सकते थे।

समय बीतता गया। मुझे ट्रेनिंग के बाद विद्यालय को छोड़ना पड़ा। मैंने कई जगह इंटरव्यू दिए जहाँ मेरे से अंग्रेजी में सवाल पूछे गए। मैंने कहा मैं अपना इंटरव्यू हिंदी में ही दूंगा। फिर वही बात विद्रोही छवि के कारण हमेशा मैं नाकामयाब रहा। मैंने किसी को भी अंग्रेजी भाषा में इंटरव्यू नहीं दिया। सभी विद्यालयों का यही रूल बन गया इंग्लिश है तो सब कुछ है वरना सब व्यर्थ। मुझे अंग्रेजी में इंटरव्यू देने में कोई भी परेशानी नहीं थी मैं बहुत अच्छी तरह से दे सकता हूँ मगर जब बात आती है प्राथमिकता की और हिंदी भाषा प्रेम की तो मैं यहाँ कोई समझौता नहीं कर सकता।

ईरान ने भी हिंदी को आगे बढ़ाने में अपनी उपस्तिथि दर्ज़ करवाई

हाल ही मैं ईरान इस्लामिक देश के वरिष्ठ नेता आगा खामनेई साहब ने अपना ऑफिशियली ट्विटर एकाउंट बनाया है जो पूर्णतया हिंदी भाषा में ही है। उनके भारतीय प्रेम और भारत की भाषा प्रेम से मैं बहुत प्रभावित हुआ मुझे ख़ुशी मिली

अंतराष्ट्रीय स्तर पर इतने बड़े वरिष्ठ नेता ने हिंदी को भी चुना। असल में ईरान और भारत के रिश्ते प्राचीन काल से रहे हैं। भारत में सिंधु घाटी सभ्यता का वर्चस्व रहा और ईरानी लोगों ने सिंध को ही हिन्द बोला। इसी हिन्द से हिंदुस्तान बना और फिर उसके बाद “हिंदी”।

क्या ऐसा नहीं हो सकता हिंदी भी एक अंतरराष्ट्रीय भाषा बन सके? क्या आपको अच्छा नहीं लगेगा कि आपकी देश की भाषा को पूरा विश्व समझ रहा है। ऐसे कार्यों को करने के लिए आम आदमी को ही कदम उठाना पड़ेगा। अभी भी समय है कहीं कार्यलयों की द्वितीय भाषा अंग्रजी को हटाकर हिंदी को बना दिया जाए।

यह बहुत सोचने वाली बात है कि देश की प्राचीनतम भाषा को हम सभी लोग दरकिनार कर रहे हैं। अपने देश की संस्कृति को अपनाओ यहां कि पारम्परिक पौशाक, भाषा, और मूल्य बहुत ही बेशकीमती हैं। पाश्चात्य तौर तरीकों से नहीं बल्कि अपने दम पर अपनी संस्कृति से अपने देश को सजाने के प्रयास करें। देश को गौरान्वित करें।

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