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पर्यावरण की अलख जगाता किशोर वरद कुबल

वर्तमान में पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति दुनिया भर में एक गंभीर समस्या बन चुकी है। इसके दुष्प्रभाव से न केवल कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं बल्कि स्वयं मानव सभ्यता खतरे में पड़ चुकी है। हालांकि अब इसके लिए दुनिया भर में जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। ताकि सतत विकास के लक्ष्य को शत प्रतिशत हासिल किया जा सके।

पर्यावरण को बचाने में एक तरफ जहां पूरी दुनिया मिल कर लड़ रही है वहीं कुछ लोग व्यक्तिगत रूप से भी इसे बचाने के प्रयास में जुटे हुए हैं। ख़ास बात यह है कि इस काम में नई पीढ़ी भी सक्रिय भूमिका निभा रही है। कई ऐसे युवा हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधन की कमी के बावजूद पर्यावरण को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।

कहानी वरद कुबल की

इन्हीं में एक युवा वरद कुबल हैं। महाराष्ट्र के सिंधुदुर्गा जिले के अचरा गांव के निवासी वरद कम उम्र में ही पर्यावरण के प्रति काफी जागरूक हैं। वह पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने गांव के नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में बोलते हैं।

वरद कहते हैं कि लगातार हो रहे निर्माण गतिविधियों का ख़ामियाज़ा क्षेत्र के पेड़, पक्षियों और जानवरों को भुगतना पड़ रहा है। हजारों पेड़ काटे जा रहे हैं, जिससे गांव के आसपास का वातावरण अस्थिर हो गया है। बेमौसम बारिश, बाढ़ और तूफान असामान्य हैं, जिसका दुष्परिणाम पूरी पारस्थितिकी तंत्र को भुगतना पड़ रहा है।

वरद ने 12 साल की उम्र में ही पर्यावरण के प्रति जागरूकता का काम शुरू कर दिया था। जब उन्होंने पहली बार समुद्री पक्षी बर्डलेन टर्न को बचाने का अभियान चलाया था। लगभग तीन साल पहले पश्चिमी तट पर एक तूफान आया था, जिसके दौरान ये असहाय प्रवासी पक्षी घायल हो गए थे। संभवत: इन पक्षियों को मानसूनी हवाओं द्वारा कोंकण तट की ओर खदेड़ दिया गया था।

वह घटना जिसने वरद को पर्यावरण की ओर मोड़ दिया

वरद उस घटना को याद करते हुए बताते हैं कि आंधी तूफान के तुरंत बाद मैं समुद्र तट पर आकर बैठा था पीछे हटते ज्वार को देख रहा था। तभी मुझे कुछ असामान्य गतिविधि नज़र आई। मैंने देखा कि कौवे का झुंड एक घायल पक्षी पर लगातार हमले कर रहा है और वह स्वयं का बचाव करने में भी सक्षम नहीं है। मैंने उसे उठाया और घर ले आया।

वरद ने इससे पहले इन पक्षियों को कभी इतना करीब से नहीं देखा था। उसे पता भी नहीं था कि वह किस प्रजाति की पक्षी है। इंटरनेट पर खोज से पता चला है कि वह कैरिबियन द्वीपों से आये थे और फारस की खाड़ी में घोंसले बनाकर हिंद महासागर में अपने गैर-प्रजनन का मौसम बिताते थे। 32 सेंटीमीटर लंबी स्पाइकी पुंछ वाले ये त्रिमाणि रंग के पक्षी गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

वरद ने उस घायल पक्षी को खिलाया और चोट के निशान को साफ़ कर मरहम लगाया। एक सप्ताह तक उनकी देखभाल की, जिससे वह उड़ने के लायक हो सके। उल्लेखनीय है कि समुद्र में रहने वाले पक्षियों के बारे में आम लोगों को बहुत कम जानकारियां होती है। यहां तक कि समुद्र के किनारे रहने वाले निवासियों को भी इनके बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं होती है जबकि यह पर्यावरण के सबसे बड़े संरक्षकों में एक होते हैं।

जब वरद का पूरा जीवन बदल गया

इस घटना के बाद वरद के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आ गया। जल्द ही पक्षियों का बचाव एक मिशन के रूप में बदल गया। हाल के वर्षों में कोंकण क्षेत्र में अथक विकास गतिविधियों के परिणामस्वरूप, पक्षियों और कई अन्य समुद्री और तटीय प्रजातियों के आवास विलुप्त होने के खतरे में हैं। शहरों और कस्बों के चारों उलझी हुई तारों में फंस कर यह पक्षी अक्सर गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं।

वरद इन घायलों को बचाते हैं और उनका इलाज करते हैं। वरद कहते हैं कि इन पक्षियों को बचाना और उनके अस्तित्व को बनाये रखना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण कार्य है। वह कहते हैं कि उनका मिशन पक्षियों के बचाव और राहत तक ही सीमित नहीं है बल्कि वह तटीय और समुद्री जैव विविधता के बारे में गहराई से जानने के लिए भी उत्सुक रहते हैं।

कम उम्र में ही जैव विविधता के प्रति संवेदनशील सोच रखने वाले वरद कहते हैं कि मनुष्य और पशु पक्षियों के स्वभाव में काफी अंतर है। मनुष्य जहां हिंसक साधनों को अपनाता है वहीं पशु और पक्षी मानवीय मार्ग का अनुसरण करते हैं यह अजीब बात है। मैंने एक बिल्ली को गिलहरी के एक घायल बच्चे की देखभाल करते हुआ भी देखा है।

मनुष्य का स्वभाव उसकी प्रकृति पर निर्भर है क्योंकि हम भी पर्यावरण का एक हिस्सा हैं। हमारी गतिविधियों का पृथ्वी की सभी प्रणालियों पर प्रभाव पड़ता है। दिल्ली में हवा में प्रदूषण का स्तर अधिक होने के कारण लोगों को सांस लेने में तकलीफ़ होती है। इसीलिए हमारे इको सिस्टम की देखभाल करने की आवश्यकता है।

वर्तमान समय में जीने में असफल रहते हुए कल के बारे में बहुत अधिक चिंता क्यों करें? हमें स्वीकार करना चाहिए कि हमारे पास पहले से ही क्या है और इसे संरक्षित करने का किस प्रकार प्रयास करने की ज़रूरत है।

इस किशोर उम्र में वरद पर्यावरण के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो चुके हैं। उन्होंने इस क्षेत्र में जाम्भुल, नीम, बरगद और पीपल जैसे देशी किस्मों के पौधे लगाने का अभियान शुरू किया। हाल ही में उन्होंने अपने साथियों के साथ मुंबई-गोवा राजमार्ग के साथ अचरा बंदरगाह पर इन पौधों का रोपण भी किया है। उसने अपने घर के पीछे रंगीन अंडे के छिलकों से भरा है। जिसमें चमकीले और सुंदर रंगों में चित्रित गोले हैं।

इतना ही नहीं उसने ‘सीड एग’ नाम से एक महत्वपूर्ण पहल की शुरुआत भी की है, जिसमें बीज को अंकुरित होने के लिए अंडे के छिलके का उपयोग किया जाता है। छिलके की पेंटिंग पूरी होने के बाद उसमें कुछ मिट्टी भर दी जाती है और एक स्थानीय पौधे के बीजों को खोल में गहराई से रखा जाता है। खाली माचिस की डिब्बी रंगीन होती है और उस पर अंडे का खोल गोंद के साथ चिपका होता है इसका उपयोग शेल के लिए एक ट्रे के रूप में किया जाता है।

वरद के प्रयास नई पीढ़ी के लिए वरदान साबित होंगे

वरद अभी स्कूली छात्र है और 12 वीं कक्षा के बाद पर्यावरण के क्षेत्र में ही अपना कैरियर बनाना चाहते हैं। उसके इस काम में उसके माता पिता का भरपूर समर्थन हासिल है। हालांकि अभी भी स्कूल में उसके कार्यों को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता है। लेकिन इन सब बातों से दूर वह पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरी तरह से निभा रहे हैं।

नई पीढ़ी में पर्यावरण के प्रति गंभीरता न केवल आने वाले भविष्य के लिए बेहतर होगा बल्कि सतत विकास के प्रयासों को भी बल मिलेगा। वास्तव में वरद जैसे युवा सभी के लिए मिसाल है, जिसका अनुकरण नई पीढ़ी को करनी चाहिए। तभी हम स्वस्थ्य और सुंदर धरती की परिकल्पना को साकार करने में सक्षम हो सकेंगे। (चरखा फीचर)


नोट: यह आलेख अलका गाडगिल, महाराष्ट्र द्वारा चरखा के ‘चिल्ड्रन चेंज मेकर्स सीरीज़’ के अंतर्गत लिखा गया है।

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