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“एक ट्रांस महिला के तौर पर सेक्स वर्क के पेशे से बाहर निकलने की मेरी कहानी”

फरवरी 2020 में मैंने हवस के बाज़ार को अलविदा किया था, क्योंकि इस दुनिया में मैं अपनी मर्ज़ी से नहीं, बल्कि मजबूरी में आई थी। मुझ जैसे लोगों को अगर चंडीगढ़ जैसे शहर में जीना था, तो मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था, क्योंकि मुझे मेरे घर से निकाल दिया गया था।

मैं कुछ घंटों से बेघर थी और मदद के लिए मैंने करीब सौ लोगों को फोन किया, जो मेरे जान पहचान के थे मगर किसी ने भी मेरी मदद नहीं की।

मुझे खजेरी के बारे में एक दोस्त से पता चला

मेरे एक दोस्त ने बताया कि खजेरी पर क्या होता है। मुझे अब भी याद है, खजेरी जाते वक्त ऑटो में एक अनजान आदमी से बात करना, जिसे मैं ठीक से जानती भी नहीं थी।

वह मुझे बार-बार वहां ना जाने की चेतावनी दे रहा था। उसने कहा था कि वह मेरी रहने के लिए जगह और काम ढूंढने में मदद करेगा।

“कोई भी शरीफ औरत या मर्द खजेरी नहीं जाते” उसके द्बारा कही गई यह बात मुझे याद है

मुझे वहां नहीं जाना था, मुझे तो बड़े लोगों की तरह, एक आलीशान होटल में रुकने का मन था। अपने रूम में ऐश करती। बस इतना सा ख्वाब था मेरा, किसी तरह मैंने अपने पास पांच हज़ार रुपये बचाकर रखे थे मगर मैं जानती थी कि इतने पैसे ज़्यादा दिन नहीं चलेंगे, इसलिए मैं हारकर खजेरी चली ही गई।

पहली बार खजेरी पहुंची तो मुझे पता नहीं कहां से मगर कोलकाता के सोनागाछी की याद आई, ना ही मैं कभी सोनागाछी गई थी और ना ही उससे संबंधित कोई चीज़ देखी थी। बस इतना मालूम था कि एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया वहां था। थोड़ा बहुत अपने ममेरे-चचेरे भाइयों से सुना था, जो वहां जा चुके थे।

बहरहाल, मुझे खजेरी छोटा सोनागाछी सा लगा। उसमें चंडीगढ़ शहर वाली रौनक नहीं थी। खजेरी ने मुझे मेरे गाँव की याद दिलाई, जहां मेरा बचपन गुज़रा। अगर खजेरी के सारे होटल निकाल दो तो वह बिल्कुल 90 के दशक वाला गाँव दिखेगा, जहां रेडियो पर गाने सुनने को मिलता है। दुकानों पर गोरेपन की नकली क्रीम मिलती है, बाकी डुप्लीकेट सामान, जिसका ओरिजिनल रखना आज भी खजेरी के बस के बाहर की बात है।

वहां के शुरुआती दिन मुझे पसंद थे

बिहारी पड़ोसी, गुटखे और कीचड़ वाली सड़क की महक, आदमियों का आना जाना। उनकी महक, उनका टच, उनके सुडौल और ढीले चेहरे और शरीर। उनकी समाज में औकात और उनकी अकेलेपन की कहानियां, जिसे वह मेरे शरीर पर लिख जाते थे। सबसे बड़ी बात, इस धंधे में पैसा कमान आसान था। मुझे नहीं पता था कि मैं अपने शरीर की मदद से पैसे कमा सकती हूं। कोई इसका इस्तेमाल कर, मुनाफ़ा कमा सकता है। मेरी औरताना सोच ने हमेशा मुझे अपने शरीर को नापसंद करना ही सिखाया था।

बहरहाल इस हवस के बाज़ार में मेरी बढ़ती मांग ने मेरे अन्दर, मेरे शरीर को लेकर एक नया आत्मविश्वास जगा दिया था। इतने मर्दों की आंखें मुझ पर रहती थीं कि मैं खुद को खूबसूरत महसूस करने लगी थी।

अफसोस यह शुरूआती जवानी के मज़े बस कुछ देर के मेहमान थे। मुझे उस माहौल में घुटन महसूस होने लगी थी। मुझे यह धंधा नहीं करना था। बहुत सारे ग्राहक अच्छे थे परंतु कुछ ऐसे भी आदमी आते थे जिनमें नम्रता ही नहीं थी। उनके लिए, मैं पैसे देकर खरीदी हुई चीज़ थी और वह मुझसे वैसे ही पेश आते थे। जितना पैसा दिया था, उस के कुए उनको एक-एक रुपये का मज़ा चाहिए था। भले ही मुझे मज़े की जगह दर्द महसूस हो।

इतने मर्दों के साथ सोने पर मेरी अंतरात्मा मुझसे नज़रें चुरा रही थी

यहां आने से पहले मेरा एक बॉयफ्रेंड था। उसका खूबसूरत चेहरा बार-बार मेरे ज़हन में आता और मैं खुद को मीट मार्केट में बिकते गोश्त सी समझती थी। सारे बदन पर स्टिक फाउंडेशन लेपा था। मर्दों की नज़रों में मौजूद गर्मी से पककर उनके मज़े के लिए परोस दी जाती थी। हर रात, दूर आसमान के तारों को निहारती थी।

मुझे ऐसा लगने लगा था कि हज़ारों हाथ मेरे शरीर को नोंच-खंसोटकर खाने के लिए मुझे हर तरफ से खींचते थे। उनके नीचे, उनका भार उठाना अब बिलकुल अझेल होने लगा था। सारे चेहरे धुंधले गए थे, सारे बदन मीट का ढेर से लगने लगे थे। अब तो हीरो जैसी बॉडी वाले भी मुझमें आग नहीं जगा सकते थे।

फरवरी 2020 में एक आदमी की मदद से मैं खजेरी से निकल पाई

मैं ऑनलाइन मिली थी, मेरे पास उस पर भरोसा करने के कई कारण थे। सबसे बड़ा कारण यह कि उसे मेरे साथ पब्लिक में शर्म नहीं आती थी। ट्रांस समुदाय में मेरे दोस्त भी कुछ, जो खुलकर अपनी इस पहचान के साथ जी रहे थे, कुछ और जो छिप छिपकर। उन्हें भी मेरे साथ पब्लिक में दिखने से डर था कि कहीं उनकी सच्चाई भी पब्लिक ना हो जाए। यह इन्सान ना केवल मुझे अपने साथ बाहर ले जाता था, बल्कि उसने अपने दोस्तों से भी मिलवाया।

और तो और, मुझे नौकरी दिलवाने की दरख्वास्त भी की। मेरी सर्जरी करने के लिए चन्दा इकट्ठा करने की प्लानिंग में भी मदद की। वह मेरे साथ मेरे हर इंटरव्यू में आया और तब तक रुका रहता, जब तक मैं बाहर नहीं आ जाती। वह मेरे लिए एक सुरक्षित जगह ढूंढ़ रहा था, वह उन मर्दों में से नहीं था जिन्होंने मुझसे सिर्फ बहुत कुछ लिया था। वह मेरे लिए बहुत कुछ कर रहा था। ऐसे अपने से उम्र में बड़े आदमी संग दोस्ती मुझे जंच रही थी। काफी क्यूट सा था हमारा रिश्ता, मैं अपनी भावनाओं के लिए सही शब्द ढूंढ नहीं पा रही हूं।

इसलिए जब उसने जबरन चूमने की कोशिश की, तो मैंने भी मेरी तरफ से ‘थैंक यू’ के तौर पर उसे करने दिया लेकिन अन्दर से मुझे घिन आ रही थी। मैं उसमें खुद के लिए एक दोस्त देखती थी मगर उसके लिए मैं उसके टूटे दिल को जोड़ने का तरीका थी। जैसे मुझे बचाकर वह अपनी गलतियों की भरपाई कर पाएगा। रातभर वह अपने विफल शादी के रिश्ते के बारे में बताता था कि वह कैसे कितना अकेला है।

उसे एहसास होने लगा था कि उसके टच, उसकी मौजूदगी और उसकी कहानियों से मैं चिढ़ने लगी थी मगर उसने मेरी मर्ज़ी को समझने की कोशिश ही नहीं की। इसके बजाय उसने मुझे ताने मारना शूरू कर दिया, कहता कि मेरी शक्ल देखकर मुझे किसी हैंडसम मर्द की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। मेरे अंदर औरतों वाली नज़ाकत नहीं है। उसने कहा कि अच्छा हुआ मेरे सर्जरी करने वाले डॉक्टर ने ऑपरेशन टाल दिया है, क्योंकि अभी भी मेरे अन्दर औरत जैसी कोई बात नहीं है।

आखिर मैंने हिम्मत की और उस एक तरफा लव से मैं आउट हो गई। मेरे आधे पैसे भी खत्म हो चुके थे। सच बोलूं तो उसको आज भी मिस करती हूं मगर उसके टच से अभी भी डर लगता है।

अब मैं समाज का हिस्सा बनने की कोशिश कर रही हूं। जॉब ढूंढ रही हूं मगर सिचुएशन देखकर मुझे लगता है कि सबकी लगी पड़ी है। अपनी छोटी सी जमा पूंजी और दोस्तों की मदद से लाइफ ठीक-ठाक चल रही है। पता नहीं ऐसा और कितनी देर चलेगा। ना चाहते हुए भी वापस ना जाने की अपनी लाख कोशिशों के बावजूद। कब मैं वापस हवस के बाज़ार में चली जाऊं, यह तो वक्त ही बताएगा मगर अभी, यह ही मैं हूं।


नोट: अरीना आलम 27 वर्षीया ट्रांस महिला हैं। उनके मुताबिक उनकी और उनके सोच की हर दिन जंग चलती रहती है। कभी वो जीतती हैं और कभी हारती हैं, बस लिखने से ही उन्हें खुशी मिलती है।

लेख: अरीना आलम द्वारा

अनुवाद: प्राचिर कुमार द्वारा

चित्र: आम्र्पालि दास द्वारा

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