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क्या BJP के दबाव में झारखंड सरकार ने घाटों पर छठ ना मनाने वाला गाइडलाइन वापस लिया?

हाल ही में झारखंड सरकार ने छठ पूजा के लिए नदियों और तालाबों पर ना जाकर घर से ही अर्ध्य देने को कहा था मगर विपक्षी दलों और तमाम लोगों के विरोध के बाद सरकार ने गाइडलाइन में संशोधन करते हुए अपने फैसले को बदल दिया है। अब श्रद्धालु कोरोना गाइडलाइन्स का पालन करते हुए घाटों पर जाकर छठ कर सकते हैं।

इन सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि आखिर हेमन्त सरकार ने अपना फैसला बदला क्यों? क्या यह मानकर चला जाए कि बीजेपी द्वारा लगातार विरोध करने के कारण सरकार ने दबाव में आकर अपना फैसला बदल दिया?

इससे पहले राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने रविवार देर रात दिशा-निर्देश ज़ारी किया था, जिसमें कहा गया था कि छठ महापर्व के दौरान श्रद्धालुओं के लिए नदियों और तालाबों में केंद्र सरकार के निर्देशों तथा सोशल डिस्टेसिंग का पालन संभव नहीं हैं। ऐसे में लोग अपने घरों में ही इस बार छठ महापर्व का आयोजन करें। 

सरकारी गाइडलाइन से आखिर क्यों आहत थे भाजपाई?

यह साफ कहा गया था कि इस बार छठ महापर्व के दौरान किसी भी नदी, झील, डैम या तालाब के छठ घाट पर किसी तरह के कार्यक्रम के आयोजन की मनाही होगी। छठ घाट के पास कोई दुकान या स्टॉल नहीं लगेगा। पर्व के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर पटाखे, लाइटिंग और मनोरंजन संबंधित कार्यक्रम पर पूरी तरह से रोक रहेगी।

भाजपा के सांसद, विधायक, डिप्टी मेयर समेत सभी ने जल हट (तालाब में खड़े होकर) कर इसका विरोध किया था। रांची महानगर छठ पूजा समिति और महावीर मंडल ने हरमू चौक पर प्रदर्शन किया था।

सभी संगठनों ने कहा था कि गाइडलाइन में संशोधन नहीं किए जाने पर मंगलवार को धरना प्रदर्शन और सरकार का पुतला जलाया जाएगा।

उन्होंने कहा था कि हेमंत सरकार आस्था पर कुठाराघात कर रही है। विधायक सीपी सिंह ने कहा था कि बेरमो और दुमका उप चुनाव में सरकार को कोरोना फैलने का भय क्यों नहीं था? सरकार की नीति भेदभावपूर्ण है। सरकार को गाइडलाइन वापस लेनी होगी।

मगर यहां भावनाओं को आहत होने से बचाने वाली या कहें भावनाओं पर राजनीति करने वाली भाजपा सरकार क्या चाहती है? उसकी हठधर्मिता मान ली जाए जो सरकार को धर्म संकट में डाल दे और जनता को जान के जोखिम पर छोड़ दे।

संक्रमण फैला तो कौन होगा ज़िम्मेदार?

हम छठ पूजा का धार्मिक आस्थाओं से जुड़ाव जानते हैं लेकिन भाजपा सांसदों और विधायकों को सोचना चाहिए कि क्या पानी के भीतर कोई मास्क और सैनिटाइज़र काम आ सकता है? वह भी तब जब कोविड-19 का संक्रमण, जो कि छूत का संक्रमण है। ऐसे में नदियों में जब हज़ारों लोग नहाएंगे तब उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा का ज़िम्मा किसका होगा? भाजपा का या झारखंड सरकार का?

जहां एक ओर ठंड की दस्तक के साथ कोविड-19 के मामले बढ़ने लगे हैं और मरीज़ों की दौड़ में संक्रमण के मामले में हम (भारत) चौथे नम्बर पर आ गए हैं, ऐसे में भाजपा के विरोध को कितना सही कहा जा सकता है? क्या भाजपा चाहती है कि झारखंड में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ जाएं?

अब आप कह सकते हैं आंकड़े कह रहे हैं कि झारखंड में संक्रमण घट गया है लेकिन क्या आप जानते हैं टेस्टिंग कितनी घटी है?

गौरतलब हो कि आंकड़ों के मुताबिक बीते एक माह में जांच के लिए पेंडिंग सैंपलों की संख्या 10,149 से बढ़कर 20064 पहुंच गई है। यानि सैंपल कलेक्शन तो हो रहा है लेकिन जांच नहीं हो पा रही है।

जांच की संख्या में आई कमी का ग्राफ कुछ यह है कि पिछले पांच दिनों में (10 से 15 नवंबर) राज्य में होने वाली जांच की संख्या 30,808 से घटकर 12,822 पहुंच गई है।

अब यहां सवाल फिर वही उठता है कि क्या पर्व ना मनाने से संक्रमण थम जाएगा? नहीं बेशक नहीं थमेगा लेकिन जब लोग अपने घरों में रहेंगे, सोशल डिस्टेंसिंग को बनाए रखेंगे तब संक्रमण लोगों तक नहीं पहुंच पाएगा।

सरकारी फरमान को ताख पर रखने की ज़िद्द

लेकिन इन आंकड़ो से किसी को क्या, भाजपा या कहें विरोध करने वाले किसी भी आम शख्स को इन आंकड़ों से फर्क नहीं पड़ता, वे तो इन पर बात भी नहीं करना चाहते लेकिन फर्क पड़ता है तो सरकार की गाइडलाइन से।

आपको बता दें कि हेमन्त सरकार द्वारा घाटों पर छठ पर्व ना मनाने वाले गाइडलाइन को वापस लेने से पहले सभी समिति के आयोजकों ने कहा था कि वे अपने-अपने तालाबों में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी लाइटिंग की व्यवस्था करेंगे। जो भी छठ पूजने आएंगे उनकी सेवा की जाएगी और सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएगी।

वहीं, क्या सरकार की बनाई नीति, किसी गाइडलाइन को इस तरह ताख पर रखा जा सकता है? नहीं रखा जा सकता! लेकिन भाजपा के नुमाइंदे इस बात को हवा दे रहे थे और भावनाओं की आड़ में झारखंड को इस बात के लिए उकसा रहे थे कि लोग अपने घरों से निकल आएं। 

जैसा कि सभी जानते हैं छठ पर्व बिहार-झारखंड के लिए क्या है? लेकिन जब लोग दूर-दूर से इस पर्व पर घर आएंगे तो स्वभाविक रूप से अपने साथ कोविड भी ले आएंगे। वैसे भी टेस्ट और सुरक्षा दोनों के ही मानकों को अब सरकारों ने जनता के ऊपर छोड़ दिया है।

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