आस्था एक एहसास होता है, जिसे शब्दों में बांध नहीं सकते हैं परंतु प्रकट कर सकते हैं। ऐतिहासक पृष्टभूमि की बात करें तो वैदिक काल की मान्यताओं के हिसाब से छठी मैया को संतान की देवी माना गया और सूर्य देव को पृथ्वी का पालनहार।
बहरहाल मैं इस लेख से कुछ अलग दृष्टिकोण आपके सामने रखने का प्रयास करूंगा। भक्ति की शुरुआत कष्ट से होती है क्योंकि यह एक पहला चरण होता है जहां आपकी परीक्षा होती है और कुछ ऐसा ही होता है छठ में। नहाय खायक से शुरुआत होने वाले इस पर्व की कल्पना दिवाली के साथ ही शुरू हो जाती है।
सबसे पहले दिल-दिमाग और आत्मा तीनो से खुद को साफ किया जाता है। क्योंकि इस पर्व में सफाई का काफी खयाल रखा जाता है। आज भी याद है बचपन में माँ बहुत पीटा करती थी कि पूजा घर नहीं आओगे।
उपवास से शरीर की सभी तामसिकता पर नियंत्रण आता है और यह भक्ति की शुरुआती सीढ़ी है। जहां खुद को ज़मीं से जोड़कर आत्मा प्रभु को समर्पित करना होता है। बिना अन्न जल ग्रहण किए खरना का प्रसाद की बात ही अलग है। याद करता हूं वह दिन जब मैं खुद उस प्रसाद के लिए उत्साहित रहता था।
तीसरा दिन जो मुझे बहुत कुछ सिखाता है
डूबते सूर्य को जल देना भारतीय संस्कृति के खुलेपन को दिखता है। यानि हम कितने विशाल हृदय के हैं जो जीवन से जा रहा हो उसे भी धन्यवाद करते हैं। साथ ही उम्मीद करते हैं कि एक बार फिर से सब लौट आएगा।
एक आशा के साथ पूरी रात प्रतीक्षा करते हैं कि एक नया सवेरा जीवन में लौटेगा। रात भर नदी के घाट पर मधुर संगीत के साथ सामूहिकता का परिचय देते हुए काफी उत्सुकता के साथ इंतज़ार करते हैं जीवन मं होने वाली नई रौशनी का।
अंत में जब वह रौशनी की लाली आती है तो न जाने सब एक उत्सुकता से भाव विभोर होकर सर झुका लेते हैं। मेरे शब्द कम हैं उस एहसास को बयान करने हेतु, फिर भी इस खूबसूरत पल से बहुत कुछ सीखने को मिलता है जीवन के लिए।