मार्च से लेकर लगभग आधा जून कोरोना की खबरों से पटा पड़ा था। देश के हर न्यूज़ चैनल पर “कोरोना टॉप 9” तो किसी पर “कोरोना सुपर फास्ट” जैसा कार्यक्रम लगातार दिखाया जाता रहा। जून आने बाद इस तरह की खबरें लगभग मीडिया से गायब होती गईं।
उसकी जगह ले ली सुशांत सिंह राजपूत ने। 11 जून को अचानक फिल्मी जगत का यह चमकता सितारा इस धरती को छोड़ किसी और ही दुनिया में चला गया। उसी के साथ शुरू हुआ समाचार चैनलों पर सुशांत की मौत से जुड़ी खबरों का सिलसिला, जो आज तक रुकने का नाम नहीं ले रहा।
सुशांत की मौत और मीडिया की गहमागहमी
कोरोना की वजह से देश के लाखों युवा बेरोज़गार हुए लेकिन अफसोस वह खबर नहीं बनी। देश की जीडीपी यानि सकल घरेलू उत्पाद की दर 23 प्रतिशत नीचे जा पहुंची लेकिन वह सुर्खियां बनीं। अगर उनके लिए कोई हेडलाइन रही है, तो यह कि आखिर सुशांत सिंह राजपूत ने सुसाइड क्यों किया? कौन से ऐसे कारण रहे होंगे जो उन्होंने इस तरह से मौत को गले लगाया? रिया व सुशांत के परिवार से खुद सुशांत के रिश्ते कैसे थे?
इस तरह की तमाम खबरें आजकल हर चैनलों पर प्रसारित की जा रहीं हैं। जैसे देश इन्हीं खबरों के भरोसे अपनी रुकी आर्थिक गतिविधियों को सुचारु रुप से चला रहा है। देश का पता नहीं मगर देश में चल रहे समाचार चैनलों की टीआरपी यह सुर्खिया ज़रूर चला रही हैं।
दरअसल, जो दिखता है वही बिकता है। समाचार जगत की दुनिया में यही कहा जाता है कि जो दिखता है, वही बिकता है। बहरहाल, इस पेशे में काम कर रहे आप और हम जिस प्रवृति को लेकर इस व्यवसाय में आए थे, क्या उस पर हम और पूरी समाचार नगरी खरी उतर रही है?
यह सवाल आज हर मीडिया घराने से पूछा जाना चाहिए, क्योंकि एक्सक्लूज़िव खबरों के लिए उनकी रिपोर्टिंग के स्तरों की झलकियां भी आए दिन किसी-ना-किसी ज्वलंत मुद्दों पर दिख ही जाती हैं। जैसा हमने हाल ही में रिया-सुशांत के केस में देखा।
किस तरह पत्रकारों की भीड़ रिया चक्रवर्ती पर टूट पड़ी थी। हम यह मानते हैं कि यदि कोई कसूरवार है, तो उसे सज़ा होनी चाहिए मगर जब तक उसका गुनाह साबित नहीं हो जाता है, उसके साथ मुज़रिमों जैसा व्यवहार करना अशोभनीय है।
इस तरह के व्यवहार से मानवता पर तो सवाल उठते ही हैं, साथ ही पत्रकारिता को लेकर भी आप पर सवाल उठने लगते हैं, क्योंकि जिस मकसद से आप इस क्षेत्र में आए थे, क्या आप उस पर खरे उतर रहें हैं?
स्तरहीनता और पत्रकारिता में अंतर
सुशांत के केस में एनसीबी ऑफिस पहुंचने के बाद खबररिया चैनलों के रिपोर्टर्स ने महज़ एक बाइट के लिए रिया के साथ कितनी खींचतानी की, वह भी बिना यह सोचे हुए कि वह एक महिला है। यह खींचातानी जब टीवी स्क्रीन पर इतनी स्तरहीन दिख रही थी, तो सोचिए कि वास्तविक तौर पर रिया चक्रवर्ती की उस समय की मानसिक स्थिति कैसी रही होगी?
हमारा मीडिया शायद यह भुला चूका है कि उसे भी न्यापालिका के चौथे स्तंभ के तौर पर देखा जाता है। उसे न्यापालिका का चौथा स्तंभ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यदि कानून के तीनों स्तंभ सच्चाई को देख ना पाएं, तो यह चौथा स्तंभ उस सच्चाई को खोजे और सही तरह से सामने लाए। स्क्रीन पर चीखना और तेज़ आवाज़ में सामने वाले को बिना सुने चुप कराना, स्तरहीनता की निशानी है।
हम मानते हैं कि आज का मीडिया वही दिखाता है, जो उसके दर्शक देखना पसंद करते हैं, क्योंकि उसका मानना है कि जो दिखता है वही बिकता है मगर यह भी ज़रूरी है कि जो बिकने वाली साम्रगी है, उसे विक्रेता किस कलेवर से अपने उपभोक्ताओं को दिखाए ताकि वे ज़रूरी चीज़ों से अवगत हो सकें।
यह ज़िम्मेदारी आज कल के न्यूज़ चैनलों को बाखूबी समझनी पड़ेगी, वरना एक दिन वास्तविक तौर पर समाचार चैनलों पर देश की जनता की परेशानी नहीं, बल्कि रिया, सुशांत, कंगना या विराट-अनुष्का आदि सेलिब्रिटीज़ के प्रकरण ही देखने को मिलेंगे।