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घर में सेक्स एजुकेशन से यौन उत्पीड़न की घटनाओं को रोका जा सकता है

किसी की उम्र 2 महीने थी, किसी की 6 महीने, कोई 4 साल की, कोई 6 साल की और कोई 8 साल की थी। किसी ने अभी ठीक से आंखें भी नहीं खोली थी और किसी ने अभी हंसना भी नहीं सीखा था। किसी ने बस अभी-अभी दौड़ना सीखा था और किसी ने अब सपने देखने शुरू ही किए थे लेकिन इन सबको यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। इन हैवानों में कोई 16 साल का नाबालिग था तो कोई 60 साल का और कोई अपना ही सगा मामा, चाचा या ताऊ था।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में हर रोज़ 106 बलात्कार होते हैं। इनमें हर 10 में से 4 नाबालिग बच्चियां होती हैं।

अब सवाल उठता है कि इतने बड़े पैमाने पर होने वाले “यौन अपराधों” की वजह क्या है? हां, यह सच है कि लचर कानून इसकी बड़ी वजह है लेकिन हम यहां बात करेंगे तस्वीर के दूसरे पहलू की जो हमारी सामाजिक संरचना और मनोवृत्ति से जुड़ा हुआ है।

जिस समाज में हम रहते हैं वहां “सेक्स” शब्द एक टैबू है। यौन हिंसा से जुड़े मामलों को अखबारों और टीवी में तो बहुत जगह मिलती है लेकिन परिवार में इसकी चर्चा कोई नहीं करता। लोगों को लगता है कि एक दिन उनका बच्चा 18 या 20 साल का होगा और सबकुछ खुद ही जान और समझ जाएगा।

दिक्कत यह है कि हमें क्रांति सड़क पर करनी है और बदलाव केवल समाज में चाहिए। हम अपने घर में कुछ नहीं बदलेंगे। हम अपने आंगन में बैठकर भूत-प्रेत, गुंडा- मवाली, गोली- बंदूक, राजनीति और हर चीज़ पर चर्चा कर लेंगे लेकिन अपने बड़े होते हुए बच्चे को सेक्स के बारे में नहीं बताएंगे। हमें लगता है कि यह असंस्कारी है लेकिन जब यौन हिंसा से जुड़े मामलों में 12 से 16 साल के नाबालिगों की संलिप्तता सामने आती है तो यह सोचने पर मजबूर करती है।

अब यदि हमारे घर की ही बच्ची अपने साथ होने वाले गलत व्यवहार के बारे में खुलकर नहीं बता पाती तो इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है?

घर के अंदर का माहौल तो केवल घर के लोग ही बदल सकते हैं। सरकार और कानून अपना काम करेगी लेकिन सही और गलत तो परिवार को ही सिखाना पड़ेगा। समाज बदलना है तो शुरुआत परिवार से ही करनी पड़ेगी। यह देश और समाज के प्रति सबकी नैतिक ज़िम्मेदारी भी है।

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