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असम की पहली ट्रांसजेंडर जज स्वाति बिधन बरुआ

हम सभी का अपना एक व्यक्तित्व होता है। कैसे अपनी जिंदगी को जीना है इसका निर्णय लेने का हक हमें है। वही अगर आप आम लोगों से हट कर थर्ड जेंडर से आते हैं तो समाज और परिवार दोनों जगह अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ती है।

कुछ ऐसी ही कहानी है असम राज्य की पहली ट्रांसजेंडर जज स्वाति बिधन बरुआ की। घर से लेकर खुद की आइडेंटी की लड़ाई जीत चुकी स्वाति आज लोगों के लिए निर्णय ले रही हैं। साथ ही अपनी कम्युनिटी के लिए हस संभव मदद कर रही हैं।

परिचय: स्वाति बिधन बरुआ 

स्वाति बताती हैं कि उनका जन्म मिडिल क्लास फैमिली में साल 1991 में हुआ था। बड़े भाई के बाद उसका जन्म हुआ। पिता रेलवे में कार्य करते थे और मां हाउस वाइफ थीं।

स्कूल जाने तक बिल्कुल लड़कों की तरह तैयार हो कर स्कूल जाती थी लेकिन उन्हें पता था कि जैसी वह दिखती वैसी नहीं है। घर पर अपनी कजिन बहनों की कपड़े पहनना पसंद था। बुआ की फेयर एंड लवली चेहरे पर लागाना उन्हें पसंद था।

कई लोगों ने उनकी आइडेंटी का मजाक उड़ाया

ग्रेजुएशन में उन्होंने इस बात को एक्सेप्ट कर लिया कि वे एक ट्रांसजेंडर हैं। उस वक्त कॉलेज में जाते वक्त कई लोग उन्हें छक्का, हिजड़ा, हाफ लेडीज जैसे तंज कसा करते थे। मैंने कभी इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। मैं स्कूल के समय पढ़ाई में काफी अच्छी थी और रैंक होल्डर थी।

यही वजह था कि कॉलेज के एग्जाम के समय यही ताना मारने वाले लोग मेरे साथ बैठ कर एग्जाम देना चाहते थे। अपनी बीकॉम की पढ़ाई वेस्ट गुवाहाटी कॉमर्स कॉलेज से करने के बाद सीएस की तैयारी करने लगीं। उस वक्त पर पार्टटाइम जॉब के लिए बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाया करती थी जिससे उनका हाथ खर्च निकल जाता था।

समाज के साथ घर वालों ने भी कसे ताने

स्वाति बताती हैं कि उनकी मां ने उनका हर वक्त सपोर्ट किया है। वही इनके पिता और रिश्तेदारों को उनकी आदतें पसंद नहीं थी। जब भी घर कोई गेस्ट आते तो स्वाति को उनके चाचा चैन से बांध कर रूम में बंद करके रखते थे।

उनका मानना था कि अगर वे सब के सामने आ जायेगी तो लोग उनके परिवार का मजाक उड़ाएंगे। उन्हें घर से निकलने पर पाबंदी थी। जहां भी जाती पिता और भाई साथ रहते। कॉलेज के समय में भी उसके बैचमेट उन्हें गंदे-गंदे ताने मारते।

ग्रैजुएशन के बाद जेंडर चेंज कराने का लिया फैसला

स्वाति बताती हैं कि ग्रेजुएशन करने के बाद वह बिना घरवालों को बताएं अपने जेंडर चेंज ऑपरेशन के लिए मुंबई चली गयी। पहली बार उन्होंने फ्लाइट ली और सीट बेल्ट को बकल करने की जगह गांठ बांध कर सफर किया। जब वे वहां डॉक्टर से मिल कर सारी जानकारियां ले रही थी उस वक्त उनके पत्रकार दोस्त से मुलाकात हुई।

उन्होंने अपने दोस्त को सारी कहानी बतायी जिस पर उनसे एक न्यूज ऑन एयर उस वक्त कर दी। न्यूज की वजह से घरवालों को मेरे बारे में पता चला और वे बहुत नाराज हुए। इनके पिता ने सबसे पहले फैमिली वकील की मदद से मेरे अकाउंट को बंद करवाया, साथ ही मुंबई के हॉस्पिटल और डॉक्टर्स को लीगल नोटिस भी भेजा।

2012 में बॉम्बे हाइ कोर्ट ने लिंग परिवर्तन के लिए कानून बनाया

नोटिस जारी होने के बाद डॉक्टर्स ने स्वाति को सुप्रीम कोर्ट से अनुमति लाने को कहा। 21 साल की स्वाति ने उस वक्त एक वकील को हायर किया और अपने लिंग परिवर्तन के लिए याचिका डाली जिस पर बॉम्बे हाइकोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स के लिए एक अहम फैसला सुनाया।

2012 में उनकी वजह से लिंग परिवर्तन को लेकर पहला कानून बनाया गया। स्वाति के जिंदगी काफी कुछ अचनाक होने की वजह से उन्होंने फैसला लिया कि वे अपना जेंडर ऑपरेशन बाद में करवायेंगी पहले उन्हें अपनी लॉ की पढ़ाई करनी है।

स्वाति आगे बताती हैं कि जब मैं वापस आयी उस वक्त मेरे पैरेंट्स ने मुझे मेरे आइडेंटीटी के साथ एक्सेप्ट कर लिया। इसका श्रेय मैं अपने डॉक्टर्स और काउंसलर को दूंगी जिन्होंने लगातार काउंसलिंग से मेरे माता-पिता को मुझे वैसे ही एक्सेप्ट करने को कहा जैसे मैं हूं। लॉ की पढ़ाई के दौरान ही मैंने अपनी जेंडर चेंज का ऑपरेशन करवाया। मैंने अपनी लॉ की पढ़ाई फर्स्ट क्लास से कंप्लीट की। अब लगा कि मुझे अपनी कम्यूनिटी के लिए कुछ करना चाहिए।

अपने समुदाय के लोगों के हक लिए उठाई आवाज़

स्वाति ने बताया कि लॉ खत्म करने के बाद वे वकील के तौर पर काम करने लगी। इस दौरान उन्होंने असम ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड का गठन करवाया, इसके साथ ही ट्रांसजेंडर समुदाय को सरकार के प्लान का लाभ भी दिलवाया जिसमें आवास, रोजगार आदि शामिल है। जब भी किसी को उनकी जरूरत होती वे उनकी मदद के लिए तैयार रहती हैं।

2017 में मेंबर जज के तौर पर हुआ चयन

एक बार जब स्वाति अपने ऑफिशियल मीटिंग के लिए दिल्ली जा रही थी उस वक्त उन्हें कोर्ट के फोन कॉल आया कि उन्हें जज ने मिलने को बुलाया है। फोन कॉल के उन्हें काफी टेंशन हो गयी कि क्या हो गया कि ऐसे जज उनसे मिलना चाहती हैं। उन्होंने मीटिंग छोड़ दी और कोर्ट आकर जज से मिली।

जज ने उन्हें बधाई देते हुए कहा कि उनका चयन नेशनल लोक अदालत में मेंबर जज के तौर पर किया गया है। पहली बार किसी ट्रांसजेंडर को जज के तौर पर ऐेसे नियुक्त किया गया था। मैं असम की पहली ट्रांसजेंडर जज हूं और यह मेरे लिए गर्व की बात है। जो बैचमेट पहले उन्हें ताने कसते थे आज वहीं उन्हे लॉडशीप या मी लॉड कर संबोधित करते हैं।

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