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“विश्व के सबसे युवा देश में खुद को खोजता एक B Tech ग्रैजुएट”

The youth of the country remains unemployed/Representational image.

यूथ डे बीते हुए महीना ही हुआ था। सुबह-सुबह नींद खुली और फ्रेश होकर नाश्ता करते हुए ईयरफोन लगाकर अपने मोबाइल पर कॉमेडी शो का आनंद ले रहा था। इतने में माताजी की आवाज़ आई, “बैंक का फॉर्म भरे हो, कुछ तैयारी भी कर लो, कोशिश करने में हर्ज़ क्या है।”

अभी तक ये पंक्तियां आपको भी काफी सहज एवं सुझावपूर्ण लगी होंगी, है ना? कहने को तो मैं भी देश में हर साल ग्रैजुएट होने वाले 1.5 मिलियन इंजीनियर में से एक हूं, जो अभी भी अपनी पहचान इस जजमेंटल समाज में स्थापित करने की कोशिश में लगा हुआ है। अब तक तो आपने भी जज कर लिया होगा कि जब बैंकिंग सेक्टर में ही जाना था तो भला इंजीनियरिंग क्यों की? 

देश मे 80 प्रतिशत बी-टेक ग्रैजुएट्स बेरोज़गार हैं

कितना आसान होता है एक बेरोज़गार इंजीनियर को यह कहकर मज़ाक बनाना कि पढ़ाई ठीक से किए नहीं होगे या प्राइवेट कॉलेजों से इंजीनियरिंग करोगे तो ऐसी दुर्दशा तो होनी ही है। आलम यह है कि जनाब मैट्रिक पास और डिप्लोमा धारक कमाऊ लड़के भी आपके बेरोज़गारी के तड़के पर ताने का छौंका मारकर जाते हैं।

देश में सरकारी शैक्षणिक संस्थानों जैसे- आई आई टी, एन आई टी में सीटों की अनुपात आबादी के अनुसार काफी कम हैं, तो इसका यह मतलब जितने स्टूडेंट्स ने क्वालीफाई किया सिर्फ वे इंजीनियरिंग के लायक हैं और बाकी प्राइवेट कॉलेज वाले कुशल नहीं हैं, यह कहना बहुत ही हास्यास्पद है।

बहरहाल, हम यह भूल जाते हैं कि प्राइवेट वाले भी हम में से एक हैं, उन्होंने भी उतनी मेहनत की है उस डिग्री को हासिल करने में जितने दूसरे स्ट्रीम के स्टूडेंट्स करते हैं। 

चार साल का उतार-चढ़ाव भरा सफर अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर आकर उन्होंने भी तय किया होगा। उन सबके सर पर भी बैंक का एजुकेशन लोन होगा, वह भी 9-10 प्रतिशत चक्रवृद्धि ब्याज़ के साथ और बैंक तो यह भी नही देखेगा कि आपकी पढ़ाई पूरी होने पर आपके पास रोज़गार है या नहीं, उन्हें बस अपनी चुंगी यानि ई. एम.आई से मतलब होती है। 

कहने को तो भारत युवा देश है लेकिन यहां युवाओं की सुनने वाला है कौन?

सरकार से रोज़गार के बारे पूछिए तो आप देशद्रोही हो जाते हैं। लोन में रियायत या पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मांगिए तो आप मुफ्तखोर हो जाते हैं। इन सबके बीच घरवालों की बात मानकर स्टूडेंट्स हर जगह अपनी किस्मत आज़माते हैं और रिजेक्ट होकर ज़लील होने के आदी हो जाते हैं।

हालात तो यह हो जाते हैं कि आपके आत्मसम्मान में आपकी आत्मा मर जाती है। सम्मान की तो बात ही छोड़ दीजिए। फिर कुछ रिश्तेदार या पड़ोसी कथित बुद्धजीवी बनकर आएंगे और बोलेंगे, “तुमने गलत लाइन चुन लिया है, तुम्हें अपना पैशन फॉलो करना चाहिए था।” यह बस एक छोटा सा हिस्सा है उस युवा राष्ट्र का, जिसकी कल्पना शायद स्वामी विवेकानंद ने तो कभी की नहीं होगी।

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