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“मेरी प्रेम कहानी, जो शादी के बाद अधूरी रह गई”

प्यार

प्यार

आज फिर विनीत और मेरी लड़ाई हो गई। विनीत जब भी कुछ कहता था तब मैं उसकी बातों को अनसुना कर देती थी। मेरी इस आदत की वजह से वह झुंझला जाता और ज़ोर-ज़ोर से बोलने लगता, मैं उसके चिल्लाने से चिढ़ जाती और हमारी लड़ाई हो जाती।

विनीत और मेरी जब भी लड़ाई होती तो मैं मायके चली जाती। यह सिलसिला पिछले पांच सालों तक चलता रहा। अब तो हमें इन सब की आदत हो गई थी मगर शायद यह आदत मैंने जान बूझ कर लगाई ताकि मुझे मायके जाने का बहाना मिल सके। हमेशा की तरह आज भी विनीत जब ऑफिस जाने लगा तो बोला, ”मैं शाम को इंदौर की टिकट लेते आऊंगा। तुम अपना सामान पैक कर लेना।”

मैं मायका माँ-पापा से मिलने नहीं जाती थी

इंदौर मेरा मायका है, जहां मैंने अपने बचपन और जवानी के कुछ साल गुज़ारे थे लेकिन इस बार मैं खुश नहीं हुई क्योंकि मुझे इंदौर नहीं जाना था। शायद अब कभी नहीं।  क्यों जाती मैं? माँ-पापा से मिलने? नहीं। मैं मायके कभी माँ-पापा के लिए गई ही नहीं। मैं तो अक्सर लड़ाई का बहाना बनाकर राहुल से मिलने के लिए इंदौर जाया करती थी।

हां, राहुल मेरा इकलौता दोस्त और शायद मेरा इकलौता प्यार भी। मैं राहुल से इतना प्यार करती कि शायद मैं विनीत से प्यार बांट ही नहीं पाई। विनीत तो सिर्फ राहुल और मेरे प्यार के तड़प का भूख भर था। मेरा प्यार कभी नहीं था।

हमारी दोस्ती शुरू हुई और प्यार में बदल गई

राहुल से मेरी मुलाकात तब हुई थी जब मैं बीए फर्स्ट ईयर में एडमिशन लेने कॉलेज गई थी। तब राहुल बीए सेकेंड ईयर में पढ़ता था। एडमिशन के समय मुझे फॉर्म भरने में दिक्कत आ रही थी। तब वही पास में खड़े राहुल को मैंने हेल्प के लिए कहा था। वहीं से हमारी दोस्ती शुरू हुई और प्यार तक जा पहुंची।

फोटो साभार: pixabay

हम एक दूसरे से इतना प्यार करते थे कि हमने कभी अलग ना होने का वादा तक कर दिया था मगर मैं ही उस वादे को नहीं निभा सकी। बीए की पढ़ाई खत्म होने के बाद मैंने माँ-पापा को अपने और राहुल के रिश्ते के बारे में सब बता दिया।

मैं अपने प्यार से शादी करना चाहती थी

अफसोस पापा ने मेरे लिए कहीं और रिश्ता देख लिया था और उसे पक्का भी कर लिए था। मैंने माँ से बोला भी था कि मैं अपनी मर्ज़ी और अपने पसंद के लड़के से शादी करना चाहती हूं। मैं जिससे प्यार करती हूं, उसी से शादी करूंगी। माँ ने बोला, “बेटी शादी कर ले प्यार खुद हो जाएगा।” मैंने बोला, “नहीं माँ, सिर्फ रिश्ते बन जाने से प्यार नहीं होते। प्यार होने से कोई भी रिश्ता बनता है और वही रिश्ता अटूट होता है।”

माँ ने नम आंखों से हाथ जोड़कर कहा, “बेटी पापा की बात मान ले। इसमें ही सबकी भलाई है।” माँ ने मुझे बचपन से बहुत प्यार से पाला था और सब समझती थी। वह नए रिश्तों के बन जाने से पुराने रिश्ते जो जन्म से थे ,उन्हें उखड़ने से बचा रही थी।

मुझे अपने प्यार को ज़िंदा रखना था

मैं माँ की भावनाओं को महसूस कर रही थी। मैंने पापा की बात मान ली और राहुल से किया वादा तोड़ दिया। मैं करती भी क्या मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था लेकिन जाते-जाते राहुल से मैंने एक और वादा किया था, एक नया वादा। मैं राहुल से बोली, “मैं जब भी इंदौर आऊंगी तुमसे ज़रूर मिलूंगी। हमारे बीच कुछ नहीं बदलेगा। हम हमेशा से जैसे थे, वैसे ही रहेंगे।”

मैं जानती थी समाज के लिए यह गलत था मगर हमारे प्यार के लिए सही और मैंने अपने प्यार को बचाने के लिए जो किया वह सही था। मुझे तो बस अपने प्यार को ज़िंदा रखना था। हक मिले तो जायज़ तरीके से और ना मिले तो मजबूर होकर ही।

अब मैं किससे मिलने जाती?

विनीत शाम को जब घर आया तो उसके हाथ में इंदौर की टिकट थी। उसने बोला, “मैं सुबह तुम्हें बस स्टैंड छोड़ दूंगा।” मैं खामोश रही क्योंकि मुझे अब इंदौर नहीं जाना था, कभी नहीं और जाती भी तो किससे मिलने जाती।

दो दिन पहले ही तो माँ ने बताया था कि राहुल की एक सड़क हादसे में मौत हो गई। मैं इतनी असहाय थी कि आखिरी बार उससे नहीं मिल सकी। मैंने एक बार फिर अपना किया वादा तोड़ दिया था और शादी के बाद अधूरी रह गई मेरी प्रेम कहानी।

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