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लॉकडाउन में नौकरी छोड़कर गाँव लौटे त्रिपुरा के बेरोज़गार युवाओं की कहानी

कोरोना वायरस का दुनिया के सभी लोगों पर अलग-अलग असर हुआ है। बीमारी के अलावा अर्थव्यवस्था खराब होने के कारण लोगों की नौकरियां चली गयी हैं। लोग अलग-अलग देशों में अटके हुए हैं। घर वापस नहीं आ पा रहे हैं। भारत के कई राज्यों से युवा-युवती अलग-अलग राज्यों में काम ढूंढने के लिए घर से बाहर निकलते हैं।

त्रिपुरा के भी कई आदिवासी युवा हैं जो अपने गांव को छोड़कर अन्य राज्यों में नौकरी करने गए थे। लेकिन कोरोना वायरस की वजह से उन्हें वापस आना पड़ा और अब उन्हें बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है। त्रिपुरा के सिपाही जला जिले में हम बात करते है कुछ ऐसे युवाओं से।

मनीषा देबबर्मा

मनीषा देबबर्मा, जो बेंगलुरु में काम करती हैं। अभी अपने गाँव वापस आ चुकी हैं। वो कहती हैं, “मैं बेंगलुरु में अस्पताल में काम करती हूं। में एक नर्स की असिसटेंट का काम करती हूं। मुझे वहां काम कर के एक साल भी पूरा नहीं हुआ था कि मुझे लौटना पड़ा। सिपाही जला के बिश्रमगंज अस्पताल में मेरा कोरोना का टेस्ट लिया गया। टेस्ट करते वक्त हमारा गला और नाक चेक किया गया।”

वो आगे बताती हैं, “घर पर मेरे माँ-बाप दिन मज़दूरी का काम करते हैं। हमारे गाँव में मज़दूरी के अलावा ज़्यादा काम नहीं मिलता और मज़दूरी के भी काम अभी ज़्यादा नहीं हैं। मेरी एक बहन है, वह भी एक नर्स का काम करती है और वह कोलकाता में रहती है। मैं बेंगलुरु में काम कर के कुछ पैसे कमा कर कुछ करना चाहती थी।”

यहां आकर मज़दूरी का काम करना हमारे लिए कठिन होता है। इसी कारण मैंने अपने परिवार के लिए पैसे कमाने के बारे में सोचा और यहां काम ना मिलने के कारण मुझे बेंगलुरु जाकर काम करना पड़ा।”

प्रियंका देबबर्मा

प्रियंका देबबर्मा की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। प्रियंका कहती हैं, “मैं बेंगलुरु में पढ़ाई कर रही थी, नर्सिंग का कोर्स में दूसरा साल अभी शुरू है। मैं और हमारे कॉलेज के सब छात्र-छात्राएं लॉकडाउन होने के कारण वहीं पर फंस गए थे।”

प्रियंका आगे कहती हैं, “कोरोना वायरस के इलाज में योगदान देने के लिए हम सभी 1 महीने तक वहां रुके और अपने कॉलेज खुलने का इंतजार करते रहे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ लॉकडाउन दिन भर दिन बढ़ता गया, फिर खबर में सुनने में आया लॉकडाउन अभी जल्दी खत्म नहीं होगा। इसी दौरान हमने कॉलेज और पढ़ाई छोड़कर वापस अपने गाँव लौटने का निर्णय लिया।”

अंजना देबबर्मा

अंजना देबबर्मा बिश्रमगंज की निवासी हैं और कोलकाता से वापस आयी हैं। लॉकडाउन में घर वापस आने की कठिनाई के बारे में वह बताती हैं, “मैं कोलकाता में एक स्टाफ नर्स का काम करती हूं। जब लॉकडाउन शुरू हुआ, तब हमें बहुत परेशानी हुई थी क्योंकि हमें किसी से भी सहायता नहीं मिल रही थी।”

वो आगे बताती हैं, “इस लॉकडाउन में अपने घर आने के लिए हमारे त्रिपुरा राज्य सरकार की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिल रही थी। हमें तो घर वापस आना ही था। हमने एक ग्रुप बनाया और वापस हमारे गाँव आने के लिए पैसे इकट्ठा किए और उसी पैसों से हम लोग बस और गाड़ी लेकर आए हैं। हमारे घर वालों ने भी वापस गाँव आने के लिए हमें पैसों की मदद की। हमारे त्रिपुरा राज्य के महाराजा प्रद्योत देबबर्मन जी ने भी हमें बहुत मदद की।”

अंजना आगे कहती हैं, “मुझे मेरी नौकरी छोड़कर आने से बहुत दुख हुआ। हमारे त्रिपुरा राज्य में हम युवा और युवती के लिए काम मिल पाना बहुत ही मुश्किल है। त्रिपुरा में बेरोज़गारी बहुत ही ज्यादा बढ़ गई है। लेकिन इसमें हम कर भी क्या सकते हैं? अगर कोरोना वायरस नहीं होता, अगर ये लॉकडाउन घोषित नहीं किया जाता, तो हम अभी भी कोलकाता में ही नौकरी कर रहे होते।”

सिपाही जला जिले के कई सारे युवा और युवतियों को अपना काम और पढ़ाई छोड़कर लौटकर आना पड़ा। क्या सरकार देश के युवा के हित में कुछ कदम लेगी? इन सवालों के जवाब समय ही दे पाएगा लेकिन मेरी ये आशा है कि सरकार युवाओं को, जो इस देश के भविष्य हैं, उन्हें नज़रंदाज़ ना करें और उनके कल्याण और रोज़गार का प्रबंध करें।


नोट: यह लेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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