कहते हैं जल ही जीवन है, अगर हम जल को एक छण भी जीवन से दूर करने की सोचें तो क्या यह संभव हो सकता है? इसके बिना क्या हम रह सकते हैं?
क्या जल के बिना यह प्रकृति फल-फूल सकती है, पेड़-पौधे और जानवर बिन जल के रह सकते हैं? जल के बिना क्या हम जीवन की कल्पना कर सकते हैं?
जी हां जनाब, अब उसी धरती पर जिसे हम जलीय सम्पदा और हिमालय के ग्लेशियर से सुशोभित करते थे, वहां जल संकट मंडरा रहा है। जिस धरती ने सबकी प्यास बुझाई, आज हमने उसे प्यासा कर दिया है। हमने उसके अस्तित्व को छीना है।
कहीं बाढ़, कहीं सूखा, कहीं किसान आत्महत्या कर रहा है, तो कहीं जल संकट से इंसान, जीव और इंसानियत पर हमला हो रहा है।
जिस धरती पर जल को पूजा जाता है, आज हमने उसे दूषित कर दिया है। विकास की इस भागदौड़ में हम इतना गुम हो गए हैं कि माँ का दर्ज़ा पाने वाली नदियों को नाले में मिलाया जा रहा है। चंद मुनाफे के लिए प्रकृति को रौंदा जा रहा है।
जो धरती निःस्वार्थ अपने जल को अपने बच्चों को पिला रही है, ज़ात, मज़हब और धर्म से परे इंसानियत को गले लगा रही है, उसी धरती को आज हमने समाज के ठेकेदारों द्वारा बेचते देखा है। गौमुख से निकली अविरल गंगा को नालो में जा धकेला है। हमारे द्वारा जीवन के हर क्षेत्र में जल का दुरोपयोग, अपव्यय और हमारी अदूरदर्शिता को इस धरती ने झेला है।
आज भारत अपने इतिहास में सबसे खराब जल संकट का सामना कर रहा है और 21 भारतीय शहर 2020 तक भू-जल से बाहर निकल जाएंगे।
नीति आयोग की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, सरकार को लगता है कि टैंक-जल संसाधनों के तत्काल और बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता पर प्रकाश डालने की ज़रूरत है। लगभग 600 मिलियन भारतीयों के साथ उच्च-से-अधिक जल तनाव का सामना करना पड़ रहा है। जहां हर साल उपलब्ध सतह के पानी का 40% से अधिक का उपयोग किया जाता है। सुरक्षित पानी की अपर्याप्त पहुंच के कारण हर साल लगभग दो लाख लोग मर रहे हैं। 14 जून 2018 को जारी “समग्र जल प्रबंधन सूचकांक” (CWMI) की रिपोर्ट में कहा गया है कि पानी की मांग 2050 तक आपूर्ति को पार कर जाएगी।
आइये हम आपको उत्तर प्रदेश राज्य के बहराइच जनपद में रिसिया ब्लॉक की ओर ले चलते हैं। यहां 43% की औसत साक्षरता दर हैं जो कि राष्ट्रीय औसत 59.5% से काफी कम है। पुरुष साक्षरता दर 49% है और महिला साक्षरता दर 36% है। एक तरफ घाघरा, सरयू जैसी नदियां प्रकृति का पोषण करती है। जिस कारण लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है और खेतों की सिंचाई के लिए हम भूजल पर ही आश्रित त हैं। इस क्षेत्र में तलाबों को पाटने के कारण जल स्तर कम होता जा रहा है।
अगर सरकारी विद्यालयों की बात की जाए तो चापाकल का पानी पीने योग्य नही है क्योंकि आर्सेनिक और फ्लोराइड की मात्रा अधिक है। जिससे समाज में सैकड़ो बीमारियां पनप रही हैं। आर्सेनिकोसिस आर्सेनिक विषाक्तता का प्रभाव है, जो आमतौर पर 5 से 20 साल तक लंबी अवधि में होता है। लंबे समय तक आर्सेनिक युक्त पानी पीने से त्वचा की समस्याएं जैसे त्वचा पर रंग बदलना, और हथेलियों और पैरों के तलवों गठान बनना, त्वचा कैंसर, मूत्राशय, गुर्दे और फेफड़े के कैंसर जैसे खतरनाक रोगों के होने की संभावना बढ़ जाती हैं।
गांधी फेलोशिप के दौरान फील्ड इमर्शन में जब मैं ऐसे गांव से गुज़रता था और स्कूलों में जाता तो कहीं न कहीं यह समस्या मेरे मन को विचलित कर देती थी। इसीलिए इस समस्या को विस्तार से समझने और समाधान में अपना योगदान देने के लिए मैंने अपना PSP प्रोजेक्ट जल संरक्षण को चुना। इसी फेलोशिप के दौरान मुझे जल शक्ति अभियान से जुड़ने का अवसर मिला। जिससे मुझे जल संकट से उबरने की जानकारियां मिलीं और काम करने का मौका भी मिला।
मैंने अपनी इस मुहिम की शुरुआत बहराइच जनपद के रिसिया ब्लॉक के सरकारी विद्यालयों के बच्चों, ग्राम पंचायत के सदस्यों और समुदाय के लोगों के साथ की। इस दौरान मैंने उनको धरती पर मंडरा रहे जल संकट से रूबरू करवाया। साथ ही बताया कि कैसे हम इन समस्याओं से निजात पा सकते हैं।
अभी तक 5 रैली, 3 चौपाल और 300-400 लोगों के साथ जनजागरूकता के माध्यम से इस समस्या को अवगत करवाया एवं समाधान के लिए प्रेरित किया। शिक्षकों, किसानों, खंड शिक्षा व विकास अधिकारी, प्रधान से मिलकर इसके उचित समाधान पर चर्चा की। आर्सेनिक एवं फ्लोराइड की समस्याओं से निजात पाने के लिए निरंतर मैं अध्ययन और रिसर्च कर रहा हूं और लोगों को जागरूक कर रहा हूं। याद रखिए यही सरकारी स्कूल के बच्चे हमारे देश के भविष्य हैं जो कल इस मुहिम को आगे ले जाएंगे।
जल संरक्षण अर्थात जल को बचाकर रखना ताकि हमारी आवश्यकता की आपूर्ति अबाध गति से अनवरत होती रहे। जल को बचाकर रखने की दो विधियां हैं। पहला प्रत्यक्ष और दूसरा अप्रत्यक्ष। जो जल की आपूर्ति हमारे घरों, बाग-बगीचों, खेत-खलियानों, कल-कारखानों में नित्य दिन होती है, हर हालत में उसका हमें समझदारी से उपयोग करना है।
जल संरक्षण को लेकर घर के सभी सदस्यों को सचेत रहना चाहिए कि जल की एक बूंद भी बर्बाद न हो। उसी तरह खेत-खलियानो, कल-कारखानों में भी जल के सदुपयोग पर हमारा ध्यान केंद्रित होना चाहिए। जल के आगमन और निगमन पर दैनिक पर्यवेक्षण और जांच होनी चाहिए। इससे जल की आपूर्ति के विभिन्न स्रोतों पर नियंत्रण होगा और सभी लोगों में जल-संरक्षण की जागरूकता स्वतः जन्म लेगी।
नोट: YKA यूज़र उत्कर्ष मिश्रा, बहराइच से गाँधी फेलो हैं।
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Rahul Rastogi
Really touching story…Eager to read more such stories😇
Omkar Tiwari
Sachhi
MUKUL KUMAR MANMAN
Very informative….