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महिला सशक्तिकरण की मुखर आवाज़ हैं सुमेधा कैलाश

श्रीमती सुमेधा कैलाश बाल आश्रम में महिला सशक्तिकरण पर एक गोष्ठी को संबोधित करते हुये। फोटो साभार; कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फ़ाउंडेशन।

महिला अधिकार की बात पूरे विश्‍व में हो रही है। महिलाओं के हक-हकूक के लिए अनेक सामाजिक संगठन कार्य कर रहे हैं। इस दिशा में नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी की पत्‍नी सुमेधा कैलाश का योगदान अविस्‍मरणीय है।

एक नजर: सुमेधा कैलाश

राजस्‍थान के जयपुर और अलवर ज़िलों में बाल आश्रम व बाल मित्र ग्राम (बीएमजी) के माध्‍यम से वो महिलाओं को जागरूक कर रही हैं। उन्‍होंने बालिका आश्रम की स्‍थापना करके 1600 से अधिक महिलाओं एवं किशोरियों को व्‍यावसायिक एवं सांस्‍कृतिक प्रशिक्षण दिया है।

महिलाओं को हिंसा के खिलाफ जागरूक करके उन्‍हें सबल बनाया है। बंजारा बच्‍चों को शिक्षित करने केलिए कई अनौपचारिक स्‍कूलों का संचालन कर रही हैं। उनके कई ऐसे कार्य व प्रयास हैं, जो उल्‍लेखनीय हैं।

सुमेधा कैलाश राजस्थान के जयपुर ज़िले के विराट नगर में बाल श्रम से मुक्त हुए बच्चों का एक पुनर्वास केंद्र संचालित करती हैं। इस पुनर्वास केंद्र का नाम बाल आश्रम है, जिसकी स्थापना उन्‍होंने 1998 में की थी। बाल आश्रम में रहकर मुक्त बाल मज़दूर शिक्षा ग्रहण करते हैं।

अब तक 2700 से अधिक पूर्व बाल मज़दूरों को यहां पुनर्वास की सुविधाएं मिल चुकी हैं। इसके अलावा जयपुर व अलवर ज़िलों के दूरस्थ ग्रामों को बाल मित्र ग्राम बनाने का भी काम बाल आश्रम के माध्यम से किया जाता है।

बीएमजी एक बेहतर सोच

सुमेधा कैलाश बाल आश्रम में महिला सशक्तिकरण पर एक गोष्ठी को संबोधित करते हुए। फोटो साभार- कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन।

बीएमजी कैलाश सत्यार्थी व सुमेधा कैलाश की अभिनव अवधारणा है, जिसके अंतर्गत गांवों में बच्चों व महिलाओं के ऊपर होने वाले शोषण को रोका जाता है। कोई भी गांव जब बीएमजी बन जाता है तो उसमें कोई भी बाल मजदूर नहीं होता और गांव के सभी बच्चे स्कूल जाते हैं।

गांव में बच्चों द्वारा चुनी हुई बाल पंचायत होती है और बाल पंचायत को ग्राम पंचायत से मान्यता प्राप्त होती है। गांव में एक महिला मंडल तथा एक युवा मंडल का भी गठन किया जाता है। सभी संगठन मिलकर गांव में बच्चों, महिलाओं व समाज के कमज़ोर वर्ग पर होने वाली हिंसा को रोकते हैं।

सुमेधा बाल आश्रम के साथ-साथ स्थानीय बालिकाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने तथा उनको व्यावसायिक प्रशिक्षण देने हेतु एक बालिका आश्रम का भी संचालन करतीं हैं। बालिका आश्रम की स्थापना 2009 में हुई थी तब से अब तक आसपास के 29 गांवों की 1690 किशोरियां व महिलाएं व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करके पारंगत हो चुकीं हैं।

सुमेधा द्वारा किए गए प्रयासों पर एक नज़र

बात 2015 की है जब बाल आश्रम के पास के बीएमजी सूरजपुरा में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। कार्यक्रम में कैलाश सत्यार्थी मुख्य अतिथि थे। कार्यक्रम में सूरजपुरा पंचायत के सरपंच, पंच, स्कूल के अध्यापक व बड़ी संख्या में विद्यार्थी मौजूद थे। मंच पर श्री सत्यार्थी के अलावा सरपंच पति, सरकारी अधिकारी, स्कूल के प्रधानाचार्य व श्रीमती सुमेधा विराजमान थीं।

कार्यक्रम के संचालक ने बताया कि मंच पर सरपंच पति मौजूद हैं और सरपंच साहिबा सामने श्रोताओं की पंक्ति में बैठी हैं। यह सुनकर सुमेधा गुस्‍से में आ गई। उन्‍होंने मंच से खड़े होकर सरपंच साहिबा को उनका नाम लेकर आवाज़ लगाईं तथा उन्‍हें मंच पर आमंत्रित किया।

गौरतलब है कि महिला सरपंच उससे पहले कभी भी मंच पर नहीं बैठी थीं और ना ही कभी घूंघट ही खोला था। सरपंच साहिबा मंच पर आने से इनकार करती रहीं। लेकिन श्रीमती सुमेधा कहां मानने वाली थीं। उन्‍होंने सरपंच पति को मंच से उतारकर उनकी जगह महिला सरपंच को बैठाया। इतना ही नहीं सरपंच साहिबा का घूंघट भी हटवाया। इसके बाद से महिला सरपंच प्रत्येक कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगीं।

हिंसा की शिकार महिलाओं से अपराधियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई

सुमेधा कैलाश बाल आश्रम में महिला सशक्तिकरण पर एक गोष्ठी के बाद महिलाओं के साथ। फोटो साभार- कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन।

सुमेधा अलवर ज़िले के थाना ग़ाज़ी क्षेत्र के नीमड़ी नामक स्थान पर बंजारा समुदाय के बच्चों के लिए एक अनौपचारिक स्कूल का भी संचालन करतीं हैं। जिस स्थान पर बंजारों के डेरे हैं, उसी स्थान के पास एक बाबा की गऊशाला भी है।

बात सन 2014 की है, बाबा बंजारों की ज़मीन को कब्ज़ाना चाहता था। दीपावली के अगले दिन यानी गोवर्धन पूजा वाले दिन शाम के समय में बाबा के गुंडों ने बंजारों के डेरों में आग लगा दी। बंजारों के घरों का सारा सामान जलकर राख़ हो गया। बाबा के गुंडों ने बच्‍चों और गर्भवती महिलाओं की भी पिटाई की।

सुमेधा को इस घटना के बारे में जब पता चला तो वे बहुत दुखी हुई। उन्‍होंने बाल आश्रम से खाना बनवाकर बंजारों की बस्‍ती में भिजवाया। बंजारों के लिए पहनने व ओढ़ने के कपड़े भी भिजवाए। बाल आश्रम के कार्यकर्ताओं को पीड़ित परिवारों की देख-भाल में लगाया। बंजारे बाबा के गुंडों के भय से रिपोर्ट नहीं दर्ज करा रहे थे। सबसे पहले उन्‍होंने सबको ढाढ़स बंधाया और फिर महिलाओं से अपराधियों के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट दर्ज़ कराई।

शराब के कारण हिंसा की शिकार महिलाओं की गोष्ठियां बुलाई

राजस्थान ही क्या पूरे देश में महिलाएं शराब के कारण हिंसा का शिकार होती हैं। उनके पति शराब पीकर उन्हें प्रताड़ित करते हैं। सुमेधा अब तक शराब का विरोध करने के लिए बाल आश्रम में 4-5 गोष्ठियों का आयोजन कर चुकी हैं, जिनमें पीड़ित महिलाओं ने अपने अनुभव साझा किए।

उन गोष्ठियों में श्रीमती सुमेधा ने महिलाओं को जागरूक किया कि वे अपने पतियों के शराब पीने का विरोध करें। उनसे भयभीत ना हों। अगर उनके पति हिंसा करते हैं तो पुलिस में रिपोर्ट दर्ज़ करवाएं। सुमेधा ने महिलाओं को यह भी आश्वासन दिया कि अगर ज़रूरत पड़ी तो बाल आश्रम पीड़ित महिलाओं को कानूनी सहायता भी उपलब्ध कराएगा।

जब सुमेधा को साहसिक प्रयासों के कारण हमलों का सामना करना पड़ा

विराटनगर के पास कुहाड़ा गांव में सन् 2003 के आसपास गलीचा उद्योग में बच्चे काम करते थे। सुमेधा चाहतीं थीं कि सभी बच्चों को गलीचा उद्योग से हटाकर स्कूल में भर्ती किया जाए तथा बच्चों के स्थान पर महिलाओं व बड़ों को काम पर लगाया जाए।

ये बात गलीचा ठेकेदारों को अच्छी नहीं लगी। एक दिन सुमेधा गांव की महिलाओं के साथ बैठक करके बाल आश्रम लौट रहीं थीं। तभी गलीचा ठेकेदारों के इशारे पर कुछ शरारती तत्वों ने सुमेधा की गाड़ी पर पत्थरों से हमला कर दिया जिससे उनकी गाड़ी का सामने वाला शीशा टूट गया। सुमेधा बाल-बाल बचीं।

बंजारा समुदाय के बच्चों के लिए स्कूलों का संचालन

सुमेधा 2008 से ही बंजारा समुदाय के बच्चों को अनौपचारिक शिक्षा देने हेतु भांगड़ोली, नीमड़ी, गोपालपुरा, नारायनपुरा, रायपुरा, बैरावास, गुवाड़ा हनुमान में बंजारा स्कूलों का संचालन कर रही हैं।

इन स्कूलों के माध्यम से ना केवल बंजारा बच्चों को शिक्षा दी जाती है बल्कि महिलाओं का सशक्तिकरण तथा बंजारा समुदाय के सर्वांगीण विकास हेतु भी कार्य किए जाते हैं।

रामकृष्‍ण जयदयाल हार्मोनी अवॉर्ड से भी सम्‍मानित की जा चुकी हैं सुमेधा 

सुमेधा 40 सालों से बाल मजदूरी, महिला सशक्तिकरण, मुक्त बाल मजदूरों के पुनर्वास हेतु उल्‍लेखनीय कार्य कर रही हैं। उनके इस काम के लिए उन्हें विभिन्न सम्‍मानों और पुरस्‍कारों से भी नवाज़ा गया है। सन 2000 में बाल आश्रम के द्वारा अच्छा काम करने के लिए उन्‍हें  रामकृष्‍ण जयदयाल हार्मोनी अवार्ड से सम्मानित किया गया।

सन 2009 में वीरता, सामाजिक उत्थान और मानवीय कार्यों के लिए उन्‍हें गॉडफ्रे फिलिप बेवरी अवार्ड और 2014 में आधी आबादी वुमैन अचीवर्स अवार्ड से भी सम्‍मानित किया जा चुका है। इस सम्‍मान से उन महिलाओं को सम्‍मानित किया जाता है जिन्‍होंने समाज के लिए उत्‍कृष्‍ट कार्य किया हो और भारत को गौरवान्वित किया है। गौरतलब है कि आज भी श्रीमती सुमेधा पूरी तत्‍परता से महिला सशक्तिकरण तथा उनके उत्‍थान के लिए सक्रिय हैं।

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