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एक रिक्शे वाले की संघर्ष भरी दास्तान

उसने दीवार की ईंटो के बीच बची थोड़ी सी जगह में रखा अपना कंघा निकाला और अपने रिक्शा में लगे पीछे देखने वाले शीशे में देखकर अपने बालो में कंघी करने लगा।

कंघी करने से पहले उसने अपने बालों में सरसो का तेल भी लगाया था। उसकी रिक्शा की सीट के नीचे वो सरसों के तेल की शीशी रखता था। उसकी माँ ने उसे बताया था कि सरसों का तेल बालों के लिए फायदेमंद होता है, बालों की जड़ों को मज़बूत और बालों को घना बनाता है।

बाबू और उसका रिक्शा

उसकी उम्र 25-26 साल रही होगी। उसका नाम बाबू था। वो सालभर पहले ही शहर आया था काम की तलाश में, उसके कुछ दोस्त रिक्शा चलाते थे, तो उसने भी आकर पैर वाला रिक्शा चलाना शुरू कर दिया था।

उसके माता पिता, घर-परिवार सब गाँव में ही थे। थोड़ी सी ज़मीन बटाई पर लेकर उसका पूरा परिवार उस ज़मीन में लगा रहता था लेकिन तब भी खाने का संकट बना ही रहता था।

खैर, गरीबी में खाने का संकट रोज़ होने वाली चीज़ है, जैसे किसी अमीर घर के कुत्ते को रोज़ सुबह टट्टी कराकर लाना, रोज़ सुबह ग्रीन टी या लेमन टी पीना, जिम जाना। मतलब ये तो रोज़ की ही बात है। उनके पेट को भी आदत हो जाती है भूखे रहने की।

ऐसे में बाबू ने सोचा कि शहर जाकर थोड़ा कुछ कमाया जाए, यहां तो घरवाले खेत में काम कर ही लेंगे। उसने अपने घर वालों से कहा और घर वाले भी मान गए। इस तरह से वो शहर आ गया।

रिक्शा ही उसका घर था

उसके गाँव के दोस्त जो पहले से ही शहर में रिक्शा चला रहे थे, उन्होंने उसे भी किराए का रिक्शा दिला दिया। रिक्शा ही उन सबका घर था। वे सब उसी के ऊपर पैर-हाथ मोड़-माड़कर सो जाते। इससे उनका किराए पर कमरा लेने से जो पैसा देना पड़ता, वो पैसा बच जाता था।

पानी पीने के लिए वो 2 लीटर वाली प्लास्टिक की कोल्ड ड्रिंक की बोतल रखते। फारिग होने के लिए रेलवे ट्रैक का इस्तेमाल करते मगर इसके लिए उन्हें सुबह जल्दी उठकर जाना होता। खाने के लिए आस-पास के मंदिरों पर नज़र रखते कि कहां भंडारा हो रहा है और वहां जाकक खाना खाते।

जब कहीं भंडारा नहीं होता तो राजू की ठेली पर बना सस्ता खाना खा लेते। वैसे भी दिन में 1 ही बार खाना खाते तो ज़्यादातर भंडारे में ही उनकी पूर्ति हो जाती थी। भंडारे से खाना बंधवाकर भी ले आते अपने दोस्तों के लिए। वे सोचते कि ज़्यादा-से-ज़्यादा पैसे बचा लिए जाए ताकि घर भेज पाएं। तो ऐसे ही उनका शहर में गुज़ारा हो रहा था।

जब उसने रुपये जोड़कर पैंट-शर्ट का एक जोड़ा खरीद लिया

राजू को शहर में रिक्शा चलाते हुए सालभर होने वाले थे। महीना-महीना उसने 50 रुपये अलग से अपने रिक्शा की सीट के नीचे एक कोने में पन्नी में बांधकर रखे थे, जो एक साल में जुड़के 600 रुपये हो गए थे।

जब बाबू शहर आया था तो उसने पहले महीने ही छोटे बाज़ार में एक शर्ट और जीन्स की पैंट अपने लिए पसंद की थी। उन दोनों की कीमत 600 रुपये थे। तो तभी से बाबू ने मन बना लिया था कि महीना-महीना 50 रुपये जोड़कर ये पैंट-शर्ट का जोड़ा तो लेना ही है। उस शर्ट का रंग उसे बहुत पसंद आया था।

नीली, सफेद और लाल रंग की चेक शर्ट थी। नीली और लाल रंग की लाइनें सफेद रंग की लाइन को काटती थी। शर्ट के कॉलर का स्टाइल बहुत ही सुन्दर था। वो थोड़े बड़े और फैले हुए थे।

शर्ट के नीचे दोनों साइडों में घुमावदार कट लगा हुआ था और जीन्स की पैंट भी बाबू की पसंद की थी एकदम। उसे वैसी ही जीन्स चाहिए थी। ये उसने एक फिल्म में हीरो को पहने हुए देखा था।

बाबू की अगली सुबह

बाबू ने शाम को जाकर छोटे बाज़ार से वह पैंट-शर्ट का जोड़ा खरीद लाया था। अगली सुबह वो उसको पहनने वाला था और अपने दोस्तों को दिखाने वाला था। यह सोच-सोचकर उसके पेट में गुदगुदी हो रही थी।

शाम को ही जाकर वो एक शैम्पू भी खरीद लाया था और बिल्लू नाई के यहां जाकर बाल भी कटा लिया थ और दाढ़ी-मूछ भी साफ करा ली थी।

सुबह की सारी तैयारी हो चुकी थी। यह सब सोचते हुए बाबू उस रात सो जाता है। सुबह जल्दी उठके रेलवे ट्रैक पर जाकर फारिग हुआ। उनके नहाने की एक जगह थी, वहां सप्लाई के पानी की टंकी फूट गई थी और जब भी पानी आता तो वो सब वहीं जाकर नहाना-धोना किया करते थे।

बाबू वहीं जाकर साबुन और शैम्पू से रगड़-रगड़कर गाना इस गाने को, “ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए, गाना आए या ना आए गाना चाहिए” नाहता है और वापस अपनी रिक्शा के पास आ जाता है।

आज बहुत ही खूबसूरत सुबह है। बाबू जल्दी से अपने नए कपड़े निकालता है और पहले जीन्स पहनता है फिर शर्ट, फिर शर्ट को पैंट में दबाता है और अपनी बेल्ट पहन लेता है। बालों में सरसों का तेल और फिर कंघी करता है। फिर अपने दोस्तों को दिखाता है और पूछता है कैसा लग रहा हूं। उसके दोस्त उसे देखकर खुश होते और उसकी पसंद की तारीफ भी करते हैं।

बाबू अपनी रिक्शा लेकर निकल पड़ता है आज की बोनी करने मगर आज कुछ अलग है, उसने नए कपड़े पहने है। उसे अच्छा महसूस हो रहा है, तभी उसे दो लड़के बुलाते हैं।

वे कहते हैं, “ओए रिक्शा?”

बाबू कहता है, “जी साहब।”

वे पूछते हैं, “स्टेशन चलेगा?”

बाबू कहता है, “जी बिलकुल। आइए।”

वे दोनों उसकी रिक्शा में बैठ जाते हैं। बाबू का वजन मुश्किल से 50 किलो होगा मगर फिर भी वो 80-80 किलो के दोनों लड़कों को खींचता हुआ अपनी रिक्शा लिए चल पड़ता है। स्टेशन 4 कि.मी. दूर है। बाबू उनसे बात करने की कोशिश करता है।

बाबू कहता है, “साहब आज मौसम बढ़िया है।”

वे कहते हैं, “अपना काम कर और जल्दी जल्दी पैडल मार। हमें जल्दी जाना है।”

बाबू को रोज़ अलग-अलग तरह के लोग मिलते हैं, तो उसे बुरा नहीं लगता अब। व जल्दी जल्दी स्टेशन की तरफ बढ़ता है और थोड़ी देर में स्टेशन पहुंच जाता है, अपनी रिक्शा रोकता है। बाबू की सांस फूली हुई है, पसीना आया हुआ है मगर अभी भी उसकी नई शर्ट अच्छे से उसकी नई पैंट में बेल्ट के साथ दबी है। वो दोनों मुश्टंडे रिक्शा से उतरते हैं और बाबू को 20 रुपये देकर चल पड़ते हैं। बाबू उन्हें रोकता है और बोलता है, “साहब यहां तक के 40 रुपये लगते हैं दो आदमी के।”

वे कहते हैं, “काम चला ले इतने में ही, इतने ही लगते हैं।” फिर बाबू कहता है, “नहीं साहब पूरे पैसे दीजिए।” इसके बाद वे कहते हैं, “अरे यार जा अपना काम कर। बताऊं तुझे अभी, जितने दिए हैं उतने भी वापस ले लूंगा।” फिर बाबू कहता है “नहीं साहब मुझे मेरे पूरे पैसे दीजिए, ऐसे नहीं जा सकते आप।”

दोनों में से एक बाबू की नई शर्ट के कॉलर पकड़ लेता है और बाबू के हल्के शरीर को ऐसे हिलाता है जैसे पेड़ की शाख हो। दूसरा बाबू को एक थप्पड़ रसीद देता है और बोलता है, “चाहिए और पैसे या बस करूं?”

बाबू की आंखों से आंसू निकल आते हैं और इसी छीना-झपटी में उसकी नई शर्ट, जो अब तक पैंट में अच्छे से दबी हुई थी वो बाहर बेतरतीब ढंग से निकल आती है। बाबू रोता हुआ अपनी रिक्शा मोड़ता है और कहता है, “गरीब हूं इसलिए ताकत दिखाते हो, गरीब का हक मरते हो।”

बाबू को क्या पता था कि उसके भीतर का सौन्दर्यबोद्ध भी उस थप्पड़ ने और उस ताकत ने ऐसे ही एक पल में चूर-चूर कर दिया था मगर बाबू तुम निराश मत होना और यही सोचना कि दुनिया सही में खूबसूरत ही है, क्योंकि निराशा तुम्हें नीरस बना देगी और मेहनत करने वाले कभी नीरस नहीं होते। तुम फिर से अपनी शर्ट को पैंट में अच्छे से दबा लेना और बता देना दुनिया को कि दुनिया का सारा सौंदर्य मेहनत करने वालों से है।

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