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इन महिलाओं ने कई महिलाओं को रोज़गार से जोड़ा

आज के इस दौर में प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ गई है। ऐसे में शहर के कुछ गाँव ऐसे हैं, जहां की महिलाएं आज भी एक-दूसरे को आगे बढ़ा रही हैं। ग्रामीण परिवेश में रहने के बावजूद अपनी एक अलग पहचान बनाई है।

इन महिलाओं  ने पहले खुद के अपने हुनर के बल पर रोज़गार से जुड़ीं फिर अन्य महिलाओं को भी स्व-रोज़गार से जोड़ रही हैं। पेश है ऐसी कुछ महिलाओं की कहानी, जिन्होंने गाँव में रहकर महिलाओं को रोज़गार से जोड़ा।

ऑर्गेनिक खेती की गुण सीखा रही चिंता देवी

गया टनकुप्पा के ढीवर गाँव की रहने वाली चिंता देवी ने जीविका की ओर से प्राण संस्था के सहयोग से श्रीविधि और ऑर्गेनिक खेती का तरीखा साल 2010 में सीखकर विलेज रिसोर्स पर्सन बनीं। अपने गाँव के लोगों को  प्रशिक्षण  देने के अलावा वे  इलाहाबाद, लखनऊ, बाराबंकी , मिर्ज़ापुर सहित अन्य जगहों पर जाती हैं।

ये 15-22 दिनों का प्रशिक्षण देती हैं। चिंता देवी बताती हैं कि पति की मौत के बाद उन्हें घर से निकाल दिया गया। उस वक्त उन्होंने लिज पर ज़मीन लेकर ऑर्गेनिक खेती करना शुरू किया। आज उनकी आर्थिक स्थिति काफी बेहतर है और  अन्य महिलाओं को वे प्रशिक्षण देकर रोज़गार से जोड़ रही हैं।

निर्मला देवी ने सुजनी कला से कई महिलाओं को रोज़गार से जोड़ा

मुज़फ्फरपुर की रहने वाली निर्मला देवी सुजनी कला से अपनी अलग पहचान बनाई हैं। आज उनकी कला सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी प्रदर्शित हो रही है। इन्हें अपनी इस हुनर के लिए नैशनल अवॉर्ड भी मिल चुका है। निर्मला देवी बताती हैं कि उन्होंने यह कला अपनी नानी, दादी और माँ से सीखी है।

साल 1989 में उनकी मुलाकात दीदी बीजी श्रीनिवासन से हुई थी, जिन्होंने उनकी हुनर को ना सिर्फ पहचाना, बल्कि इससे अन्य महिलाओं को भी रोज़गार से जोड़ने का मौका दिया। इस दौरान इन्होंने कई सारी चुनौतियों का सामना करते हुए पिछले 40 सालों से अपने आसपास के गाँवों और अन्य शहरों की महिलाओं को इस कला में प्रशिक्षित कर रही हैं। ज़्यादातर महिलाएं आज इसी हुनर से अपनी आजीविका कमा रही हैं।

अनीता ने पचास हज़ार महिलाओं को बनाया सक्षम

आरा भोजपुर ज़िले की  रहने वाली अनिता गुप्ता ने 1993 से अब तक पचास हज़ार महिलाओं को स्व-रोजगार से जोड़ चुकी हैं। बचपन से उन्हें आर्ट एंड क्राफ्ट से काफी लगाव था। अनीता बताती हैं कि गाँव में महिलाएं पढ़ी-लिखी ज़्यादा नहीं होती हैं लेकिन सभी को सिलाई-बुनाई करना आता है।

ऐसे में उन्होंने महिलाओं को इसी क्षेत्र में प्रशिक्षित करने का मन बना लिया। साल 1993 में दो लड़कियों के साथ भोजपुर महिला केंद्र की नींव रखी। केंद्र से जुड़ी महिलाओं को सुजनी, सीलाई, बुनाई, डाय, जूट वर्क, आर्टिफिशियल जूलरी, एप्लिक वर्क आदि सिखाकर स्वावलंबी बनाने के साथ-साथ रोज़गार से भी जोड़ रही हैं।

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