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लॉकडाउन का प्रयोग कर छत्तीसगढ़ के इस गाँव ने पेश की मिसाल

हमारी मूलभूत आवश्यकताओं में रोटी, कपड़ा और मकान तो है लेकिन और एक महत्वपूर्ण चीज़ है, जो है घर में पानी की व्यवस्था। शहरों में ज़्यादातर पानी की व्यवस्था के बारे में लोगों को सोचना नहीं पड़ता, उन्हें पता भी नहीं होता है कि उनके घर में पानी किस तालाब, नदी या बांध से आता है।

हालांकि देशभर में पानी की समस्या की वजह से यह स्थिति भी बदल रही है, गाँवों में स्थिति कुछ अलग और ज़्यादा गंभीर है। गाँवों में लोगों को पानी की व्यवस्था खुद ही करनी पड़ती है, खासकर तब जब हैंडपंप्स काम नहीं कर रहे हों या सरकार की तरफ से ठीक से पानी की व्यवस्था नहीं हुई हो।

कभी-कभी गर्मी में तालाब और नदियां सूख जाने पर गाँव में पानी ही नहीं रहता। इससे खेत सूख जाते हैं, लोग बीमार पड़ जाते हैं और कई लोगों की मौत भी हो जाती है।

छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन के दौरान किया गया महत्वपूर्ण कार्य

जब लोग इन कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो कुछ-ना-कुछ उपाय खोज ही लेते हैं। छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले के हमारे ग्राम पंचायत बिंझरा में लॉकडाउन के समय एक बहुत ही अच्छा और महत्वपूर्ण कार्य किया गया है।

गाँव में एक कुएं का निर्माण किया गया। यह कार्य ग्राम पंचायत और ग्राम वासियों की आवश्यकता को देखकर किया गया। सभी काम सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए किया गया।

कुएं के काम से मिला गाँव वालों को रोज़गार

ग्राम पंचायत बिंझरा की सरपंच श्रीमती चंद्रिका देवी।

अगर ग्राम पंचायत द्वारा गाँव में कोई भी कार्य किया जाता है, तो उन कार्यों को गाँव में रहने वाले लोगों द्वारा ही पूरा किया जाता है, जिससे गाँव के लोगों को रोज़गार मिल जाता है और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आता है। लॉकडाउन के समय में जब लोगों को गाँव से बाहर काम करने की अनुमति नहीं थी, इस कार्य ने लोगों को थोड़ा-बहुत रोज़गार दिलाने का काम किया।

ग्राम पंचायत बिंझरा की सरपंच चंद्रिका देवी पोर्त ने गाँव में पानी की समस्या को देखते हुए इसे दूर करने का प्रयास किया है। उन्होंने बताया, “गाँव में कई सालों से पानी की समस्या बनी हुई थी, उस समस्या का समाधान अभी हो रहा है। उस कुएं के पानी को पाइप के माध्यम से पूरे गाँव में पहुंचाया जा रहा है, ताकि पानी की समस्या समाप्त हो सके।”

सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन करके किया कुएं का काम

कुएं को बनाने के लिए गाँव के 15 लोगों ने काम किया, क्योंकि कोरोना महामारी की वजह से कहीं पर भी ज़्यादा भीड़ करना या लोगों को इकट्ठा करना मना था। काम करने के लिए कम-से-कम मज़दूर उपस्थित रहते थे, जिनमें महिला और पुरुष दोनों मिलकर काम करते थे।

बिंझरा की निवासी पुष्पा देवी बताती है, “लॉकडाउन की वजह से घर को चला पाना मुश्किल हो गया है। इसलिए हम गाँव में ही काम करने जाते हैं, जिसमें महिलाओं को 1 दिन में 180 रुपये मिलते हैं।”

मघन बाई, जिन्होंने भी कुएं के निर्माण के लिए काम किया, बताती है, “फिलहाल कहीं पर भी ज़्यादा काम नहीं मिल पा रहा है। गाँव में जितना काम मिलता है, उतना ही करते हैं, वरना गाँव से बाहर भी पहले काम करने जाया करते थे। तब हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी थी। अब तो बाहर काम बंद हो गया है। गाँव में लगभग 2 सप्ताह तक ही काम चलता है, फिर बंद हो जाता है, जिसके बाद हमें फिर दूसरे काम गाँव में ही ढूंढने पड़ते हैं। जैसे-तैसे करके लॉकडाउन में हम अपना घर चला रहे हैं।”

गाँव की समस्याओं का निराकरण है ज़रूरी

छत्तीसगढ़ के गाँव क्षेत्र में कई समस्याएं हैं, जिनका अभी तक हल नहीं हुआ है। हमारे गाँव में पढ़ने के लिए विद्यालय है, ग्राम पंचायत का निर्माण है, सीसी रोड का निर्माण है, नहाने के लिए तालाब का निर्माण किया गया है, फिर भी ऐसी कई समस्याएं हैं, जिनका निराकरण करना अति आवश्यक है।

इनमें से कुछ है रोज़गार की समस्या, पानी की समस्या और घर की समस्या। ये समस्याएं गंभीर हैं, क्योंकि इनके हल के बिना जीना मुश्किल हो जाता है। हमारे गाँव की पानी की समस्या को ग्राम पंचायत और ग्रामवासियों ने एक साथ आकर कुछ हद तक सुलझाया है।

इस कुएं से लोग बहुत खुश हैं और उन्हें राहत भी मिली है लेकिन भारत के ऐसे कई गाँव हैं, जिनकी स्थिति बिगड़ती जा रही है और जिन्हें नज़रअंदाज़ किया जा रहा है, जिससे समस्या और भी बढ़ती जाती है।

इस परिस्थिति को सुधारने के लिए गाँव की सभी समस्याओं को ग्राम पंचायत में होने वाली सभा में पेश करें और किसी भी समस्या को अनदेखा ना करें। किसी भी समस्या का समाधान ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए। कोशिश करने से ही समस्या का समाधान होता है। अगर भारत के गाँव कठिनाई में हैं, तो इसका असर पूरे देश पर होगा।


नोट: यह लेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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