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8 बच्चों को गोद लेकर परवरिश कर रही हैं यह ट्रांसजेंडर माँ

ट्रांसजेंडर, ऐसा लगता है यह शब्द हम आम लोगों की ज़िंदगी में कितना अकेला सा पड़ जाता है। हमको बस कुछ बातें ही याद आ जाती हैं इस नाम के साथ, जैसे- ट्रैफिक के सिग्नल, ट्रेन, बस, किसी की खुशियों में और कभी-कभी बस हाथों को फैलाए हुए। इन सब बातों का बस एक ही आधार है और वह है पेट की आग यानि भूख। यही भूख इस समुदाय के लोगों को दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर करती हैं।

दुनिया में ऐसे बहुत से समुदाय हैं, जिनके लिए दुनिया महज़ एक जंग के मैदान के समान है। जहां इन समुदाय के लोगों को हर नए दिन हालातों से जूझना पड़ता है। इनमें से एक है ट्रांसजेंडर समुदाय।

बच्चे पैदा करना ही माँ बन जाना नहीं है

दुनिया जानती है इनके बच्चे नहीं होते, ये कभी माँ नहीं बन सकते लेकिन आज मेरा लेख यह बताने की कोशिश करेगा कि महज़ बच्चे को पैदा करने से ही माँ नहीं बना जाता। सौभाग्य से आपके पास गर्भाशय है और आप जन्म देने के काबिल हैं लेकिन कहीं-ना-कहीं माँ बनने के लिए सिर्फ बच्चे पैदा करना ही ज़रूरी नहीं होता। उनका पालन-पोषण करना और एक अच्छी ज़िन्दगी देना उनका पेट भरना, यह सब भी एक माँ ही करती है।

आज हम ऐसे ट्रांसजेंडर की बात करेंगे जो एक नहीं, दो नहीं पूरे 8 बच्चों की माँ हैं। यकीन करना थोड़ा मुश्किल है लेकिन यह सच है। झारखंड के बोकारो के एक छोटे से गाँव रितुडीह में रहने वाली राजकुमारी समाज के लिए एक जीती-जागती मिसाल हैं। वो अनाथ बच्चों की माँ हैं और कई लड़कियों को भी उन्होंने अपनी मातृत्त्व की छाया में बड़ा किया है।

वो गाँव में घर-घर जाकर जहां कोई खुशी होती है, वहां से अपना नेग लेकर आती हैं और अपना और अपने बच्चों का जीवन चलाती हैं। यहां सोचने वाली बात यह है कि कहीं और से माँगकर उसका 75% वो अनाथ बच्चों पर ही खर्च करती हैं और उनका भरण-पोषण करती हैं।

क्या कहती हैं राजकुमारी?

राजकुमारी कहती हैं, “मेरी कमाई का बड़ा हिस्सा उन लोगों से आता है, जो मुझे अपने घरों में बुलाते हैं और घर में नवजात बच्चों या नव वधू की खुशी में पैसा देते हैं। कभी-कभी मैं स्ट्रीट डांस का आयोजन भी करती हूं। मेरी प्राथमिकता मेरे बच्चे हैं और वे ज़रूरतमंद लोग जिनको मेरी ज़रूरत है। कई बार लोग मुझे दानस्वरूप सामान देने की पेशकश करते हैं जैसे- दाल, चावल आदि लेकिन मुझे दान लेना पसंद नहीं। मैं कोई भी काम कर सकती हूं और शहर जाकर मैं कभी-कभी किसी की सेवा करके या घर में आया की तरह काम करके भी पैसे कमा लेती हूं।”

55 वर्षीय राजकुमारी आगे बताती हैं कि 10 वर्ष की उम्र में ही राजकुमारी को उनके पिता ने ट्रांसजेंडर होने की वजह से घर से बाहर निकाल दिया था। इतनी कम उम्र में उन्होंने बहुत कठिन समय देखा, बहुत संकट झेले और तकलीफों में दिन गुज़ारे।

राजकुमारी ऐसे लोगों में से हैं जिन्होंने दूसरों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और अपने जीवन के आराम को त्याग दिया। केवल इतना ही नहीं, राजकुमारी ने उन तीन लड़कियों का विवाह तक कराया जो कहीं झाड़ियों और कचड़ों में पाई गई थीं। जन्म के समय से लेकर शादी तक राजकुमारी ने ही इन लड़कियों की ज़िम्मेदारी उठाई। साथ ही सभी बच्चों को समाजिक सम्मान से भी नवाज़ा।

उन्होंने सन् 1984 के बाद से एक अंधे जोड़े के साथ-साथ अनाथ बच्चों की देखभाल करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। अब वह जोड़ा जीवित नहीं है लेकिन उनके बच्चे बड़े हो गए हैं और अपने परिवारों के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं।

कोरोना काल में राजकुमारी लोगों की मदद के लिए सामने आईं

उन्होंने पूरे 1 लाख का राशन गरीबों में बंटवाया। हम में से कितनों ने यह काम किया? हमारे पास तो जॉब भी है, सब कुछ है लेकिन शायद हमारे पास ऐसा दिल नहीं है जो किसी बेसहारा लोगों की मदद करने को आगे आए। सब समाज की ही देन है।

असमानता का बीज किसी और ने नहीं, बल्कि समाज ने ही बोया है मगर राजकुमारी जैसी ट्रांसजेंडर ने ऐसे लोगों के मुंह पर तमाचा मारा है, जो खुद को दुनिया का सबसे अव्वल और प्राकृतिक जेंडर “स्ट्रैट” मानते हैं। बाकी LGBTQAI+ समुदाय से सम्बंधित लोग उनके पैदा होने को पाप समझते हैं।

परोपकारी कार्यों के प्रति उनका पूर्ण समर्पण हमें सबक सिखाता है। उन बच्चों के लिए एक माँ की भूमिका निभाना, जो अपने ही माता-पिता द्वारा त्याग दिए गए थे, क्योंकि वे ट्रांसजेंडर थे। ऐसे इंसान के लिए तो जितने नमन किए जाएं वे भी बहुत कम हैं।


संदर्भ- द बेटर इंडिया

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